मोदी सरकार का वेंटीलेटर घोटाला!

दो दिन पहले ख़बर आई हैं कि मोदी जी के पीएम केयर्स फंड में वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग  10,990 करोड़ रुपये आए थे, जबकि खर्च 3,976 करोड़ रुपये ही किए गए. 3,976 करोड़ रुपये में से सरकारी अस्पतालों में 50,000 ‘मेड-इन इंडिया’ वेंटिलेटर की खरीद के लिए कुल 1,311 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, यह कुल खर्च की एक तिहाई रकम है.

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हमे महामारी की शुरूआत मे बताया गया था कि पीएम केयर्स फंड से कुल 2000 करोड़ रुपए नए वेंटिलेटर की खरीद के लिए आवंटित किए जाएंगे ताकि 50000 नए वेंटिलेटर खरीदे जा सकें. वेंटीलेटर खरीद का सबसे बड़ा ठेका भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को दिया गया. इस पब्लिक सेक्टर कंपनी को कुल 30000 वेंटिलेटर बनाने थे. बाकी के पांच ठेके हिंदुस्तान लाइफकेयर लिमिटेड नाम की ​सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के माध्यम से दिए गए. ( अभी इसी कंपनी को सरकार ने बेचने की निविदा निकाल दी है ) इसके जरिए एलाइड मेडिकल को 350, एएमटीजेड बेसिक को 9500, एएमटीजेड हाई एंड को 4000, एग्वा को 10000 और ज्योति सीएनवी को 5000 वेंटिलेटर बनाने थे.

कारवां ने वेंटीलेटर की इस खरीद पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी उसके अनुसार एचएलएल ने वेंटिलेटर के स्पेशिफिकेसन को लेकर 9 बार बदलाव किए. आखिरकार दो किस्म के वेंटिलेटरों का आर्डर दिया गया. पहले लो एंड वेंटिलेटर थे और दूसरे थे हाई एंड वेंटिलेटर. दोनों किस्म के वेंटिलेटरों की कीमत में भी कई गुने का अंतर है.

वेंटिलेटर के परिक्षण के लिए एक नई कमिटी बनाई गई थीं. इसे नाम दिया गया ‘जॉइंट टेक्नीकल कमिटी’.  इस कमिटी ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, एग्वा हेल्थ केयर, एएमटीजेड, और एलाइड के बनाए वेंटिलेटर को डेमो के लिए मंगवाया. इस सब कंपनियों ने जॉइंट टेक्नीकल कमिटी के सामने अपने वेंटिलेटरों का प्रदर्शन भी किया. लेकिन इस प्रदर्शन के बारे में जॉइंट टेक्नीकल कमिटी का क्या मूल्यांकन रहा,  इसके बारे में एचएलएल ने जानकारी देने से मना कर दिया. जॉइंट टेक्नीकल कमिटी ने पहले तो एएमटीजेड और ज्योति सीएनसी के वेंटिलेटर खारिज कर दिए थे लेकीन बाद में एएमटीजेड और ज्योति सीएनसी के वेंटिलेटर को भी पास कर दिया गया.

ज्योति सीएनसी के धमन-3 वेंटिलेटर तो बहुत ही खराब क्वालिटी के निकले यह कंपनी आरके विरानी परिवार की है जो सूरत में एक आभू​षण कंपनी चलाती हैं विरानी ने ही मोदी को 10 लाख रुपए का एक मोनोग्राम वाला सूट गिफ्ट किया जो 2015 में सुर्खियों में रहा. ज्योति के अलावा भी ऐसी कंपनियों को ठेके दिए गए जिनका वेंटीलेटर निर्माण मे कोई एक्सपीरियंस नही था. लगभग तीस हजार वेंटीलेटर विभिन्न राज्य सरकारो को डिलीवर किए जा चुके है  आज हालत यह है कि पीएम केयर्स से खरीदे गए वेंटिलेटर किसी भी राज्य में ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. इसके चलते डॉक्टरों को गंभीर कोविड मरीजों को संभालने में अक्सर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.एनेस्थेटीस्ट और आईसीयू के डॉक्टरों को पीएम केयर्स वाले वेंटिलेटर पर बिलकुल भरोसा नहीं है.वह एक-दो घंटे सही चलते हैं और बाद में चलना बंद हो जाते हैं. ये वेंटिलेटर पर्याप्त  टाइउल वॉल्यूम नहीं दे पा रहे हैं. न ही यह जरूरी प्रेशर बना पा रहे हैं. कई बार ये वेंटिलेटर चलते-चलते बंद हो जा रहे हैं जो मरीजों के लिए बहुत खतरनाक है.

कर्नाटक सरकार को एक स्कीम निकालनी पड़ी ताकि उसके पास पड़े वेंटिलेटरों को इस्तेमाल में लाया जा सके. सरकार ने घोषणा की कि कोई भी निजी अस्पताल इन वेंटिलेटरों को लोन पर ले सकता है. लेकिन कोई भी प्राइवेट हॉस्पिटल ऐसे घटिया प्रोडक्ट को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं हैं. मोदी सरकार ने पीएम केयर के तेरह सौ करोड़ रूपए कबाड़ सामान को खरीदने में लगा दिए हैं. इस खरीद का एक भी वेंटिलेटर ठीक से काम नहीं कर रहा है.

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)