उत्तर प्रदेश विधानपरिषद की रिक्त हो रहीं 12 सीटों को लेकर राजधानी लखनऊ में विभिन्न दलों के नेताओं के बीच कपड़े फाड़ प्रतियोगिता शुरू हो गई है। सूबे की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के कोटे से विधायक/MLC बनने को लेकर तो फिर भी लॉबिंग/लाइज़निंग, संपर्क-संबंध, समर्पण, चटुकारिता तक ही मामला सीमित है क्योंकि वहां 12 में से 10 सीटें सीधे-सीधे और 11वीं सीट पर होने वाला ‘बड़ा सियासी खेल’ भी बीजेपी के हाथ में ही है। भारी बहुमत से सूबे की सत्ता पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी ही तय करेगी कि 11वीं सीट पर भी बीजेपी ही अपना परचम लहरायेगी या फिर बहुजन समाज पार्टी को दाना डालकर पर्दे के पीछे छिपे ‘ठगबंधन’ को बेनक़ाब कर डालेगी।
लेकिन अपनी स्थापना से लेकर मौजूदा हालात में सबसे बुरा दौर देख रही मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी के सामने बड़ा सियासी संकट है। रिक्त हो रही 12 सीटों में सबसे ज़्यादा सीटें समाजवादी पार्टी के हाथ से ही फिसलने जा रहीं हैं। छ साल पहले साल 2015 में जब ये सीटें चुनी गईं थीं तब सूबे में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार थी और सदन में भी उनके पास भारी बहुमत के चलते 12 में से 8 सीटें सपा के खाते में गईं थीं। इनमें आशू मलिक, अहमद हसन, अशोक वाजपेयी, चौधरी वीरेंद्र सिंह, रमेश यादव, रामजतन राजभर, साहब सिंह सैनी और सरोजनी अग्रवाल को समाजावादी पार्टी ने एमएलसी बनाया था।
साल 2017 में सत्ता परिवर्तन के साथ सत्ता के दबाव में तीन विधायकों ने तो तब ही पाला बदलकर इस्तीफा दे दिया था जो थे बाद में राज्यसभा जाने वाले अशोक वाजपेयी, दुबारा MLC बनने वाले चौधरी वीरेंद्र सिंह और पैदल होने वाली सरोजनी अग्रवाल। अशोक वाजपेयी और सरोजनी अग्रवाल की सीटों पर डिप्टी सीएम बनने वाले डॉ. दिनेश शर्मा और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रहे और वर्तमान में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को MLC बना दिया गया था जो अब अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। ख़ैर, अभी समाजवादी पार्टी में ही बचे पांच विधायकों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है जिनमें विधानपरिषद के वर्तमान अध्यक्ष रमेश यादव, सपा मुखिया अखिलेश यादव के क़रीबी पूर्व कैबिनेट मंत्री और रिटायर डीआईजी/प्रोमोटी IPS अहमद हसन, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की ‘आँखों के तारे’ आशू मलिक, रामजतन राजभर और साहब सिंह सैनी शामिल हैं।
अब समाजवादी पार्टी के सामने बड़ी समस्या ये है कि कुल हिस्से आ रही एक सीट पर कार्यकाल समाप्त कर रहे वो अपने किस विधायक को पुनः स्थापित करे और किसको पैदल करे या फिर किसी नए चेहरे को मौक़ा दे। जहां एक तरफ मात्र एक सीट की लड़ाई में विधानपरिषद के वर्तमान अध्यक्ष रमेश यादव भी पुनः दावेदारी ठोक रहे हैं वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव के क़रीबी पूर्व कैबिनेट मंत्री और रिटायर DIG/प्रोमोटी IPS अहमद हसन भी उम्र के आखिरी पड़ाव पर एक बार फिर और एमएलसी बनने की हसरत दिल में संजोये हैं।
सबसे ज़्यादा दिक्कत आ रही है सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव जी के बेहद क़रीबी और उनकी आँखों के तारे आशू मलिक के साथ। साल 2015 में आशु मलिक सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के ‘आशीर्वाद’ से बेहद ही विवादित परिस्थितियों में बहुत कम उम्र और भरी जवानी में पहली बार एमएलसी बने थे। अपने सियासी करियर और समाजवादी पार्टी में क़द को देखते हुये आशू मलिक भी एक बार फिर MLC बनने के ख़्वाहिशमंद हैं।
रामजतन राजभर और साहब सिंह सैनी के अलावा समाजवादी पार्टी के कुछ और भी नये चेहरे हैं जो विधानपरिषद सदस्यों के इस चुनावों में MLC/विधायक बनने की कपड़े फाड़ प्रतियोगिता में शामिल हैं जिनमें सपा मुखिया अखिलेश यादव के बेहद क़रीबी राजा महमूद के वारिस प्रोफेसर अली ख़ान महमूदाबाद भी शामिल हैं। इनके अलावा देवबंद से लेकर नदवा तक, अयोध्या से लेकर चित्रकूट तक, और दिल्ली से लेकर लखनऊ तक, समाजवादी पार्टी के तमाम नेता/अभिनेता सपा मुखिया के पीछे-पीछे अटैची लेकर घूम रहे हैं। कुछ ने तो दिल्ली से लेकर लखनऊ तक इतनी दौड़-भाग कर दी है कि तमाम मस्जिदों के उलेमाओं, मंदिरों के पंडितों, गुरुद्वारों के ग्रंथियों और चर्च के पादरियों के चरणों में लेट गये हैं। अब देखने वाली बात ये होगी विधानपरिषद सदस्यों के इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के हिस्से में आ रही महज़ एक सीट के अलावा बीजेपी और बीएसपी के कोटे से किन-किन माननीयों की क़िस्मत खुलकर विधानपरिषद के सदन तक पहुंच पाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)