नई दिल्ली: भारत का मुस्लिम समाज जबरदस्ती थोपे गए कुरीतियों को लेकर जागरूक हो चुका है। और ये समाज इंस्टेंट ट्रिपल तलाक, हलाला, बहुविवाह, हिजाब, तालीम, रोजगार, बच्चियों के महावारी शुरू होते ही विवाह और उसके बाद जनसंख्या को बढ़ाते कुपोषित बच्चों की फौज और इसके दुष्प्रभाव जैसे मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी मंथन और बदलाव चाहता है। इसके साथ ही मुस्लिम महिला बराबरी का हक भी चाहती हैं। उनका कहना है कि जिस प्रकार मंदिरों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों में पूजा, अर्चना, प्राथना करते हैं उसी प्रकार मस्जिदों में भी महिलाओं के नमाज का इंतजाम होना चाहिए। अल्लाह कि सीधी इबादत से आखिर मुस्लिम महिलाएं क्यों महरूम रहें? मुस्लिम महिलाओं को भी कम से कम जुमे के साथ साथ और ईद व बकरीद की नमाज पढ़ने का हक होना चाहिए, भले ही उनके पढ़ने का हिस्सा अलग हो लेकिन मस्जिद और ईदगाह में जो मौलाना नमाज पढ़ रहे होंगे उसका फायदा तो मिलेगा।
मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि आज फिर से समय आ गया है कि जिस प्रकार 1829 में राजा राम मोहन राय ने हिंदुस्तान की सती प्रथा को समाप्त किया था वैसे ही महावारी शुरू होते ही मासूम बच्चियों को शादी के नाम पर झोंक दिया जाता है उस पर कानून बना कर रोक लगाई जाए। क्योंकि जिस तरह सती प्रथा के नाम पर महिलाएं मार दी जाती थीं उसी प्रकार से बच्चियां मानसिक और शारीरिक रूप से मार दी जाती हैं। बच्चियों का न सिर्फ बचपन तबाह हो जाता है बल्कि जब तक उनमें मानसिक परिपक्वता आती है तब तक चार से छह बच्चे हो चुके होते हैं।
यह फाइंडिंग्स हैं मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की जिसने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लगभग 40 जिलों का दौरा किया है। इस दौरान मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की अलग अलग टीम सक्रिय रहीं जिनमें राष्ट्रीय संयोजक, सह संयोजक, मीडिया प्रभारी, अलग अलग प्रकोष्टों के प्रभारी तथा अन्य पदाधिकारी एवं राष्ट्रीय कार्यकर्ता शामिल थे। टीम में मंच की तरफ से बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ, मदरसा प्रकोष्ठ, युवा प्रकोष्ठ, मौलाना प्रकोष्ठ, मलंग प्रकोष्ठ, महिला प्रकोष्ठ के सदस्य एवं सदस्या मौजूद थे।
इस बीच विभिन्न जिलों में टीम की मुलाकात के आधार पर यह जानकारी निकली कि मुस्लिम महिलाओं, दनिश्वरों, बुद्धिजीवियों को महसूस हो रहा है कि इस्लाम में रिफॉर्म्स की सख्त ज़रूरत है। उलेमाओं का भी मानना है कि कुरानशरीफ में जिन बातों का जिक्र नहीं है उन्हें भी जबरदस्ती शरिया का हिस्सा बना कर भारतीय मुसलमानों के ऊपर थोपा गया है और अब वक्त है जहालत और रूढ़िवादिता को छोड़ तालीम को बढ़ावा देने का, कुरीतियों को छोड़ सुधारवाद का।
बड़ी तादाद में मुस्लिम समाज का मानना है कि जिस प्रकार तीन तलाक को लेकर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने समाज को जागरूक किया और फिर अदालत में इसके खिलाफ याचिका भी डाली गई उसी प्रकार विवाह की न्यूनतम उम्र को लेकर भी मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और सभ्य समाज जन आंदोलन खड़ा करे।
फाइंडिंग्स के आधार पर मंच का मानना है कि अब समय आगया है कि विवाह की न्यूनतम उम्र की सीमा पर कानून बनना चाहिए। मंच का मानना है कि शरिया लॉ के नाम पर मुस्लिम पर्सनल लॉ मुस्लिम बच्चियों के मानसिक और शारीरिक अजमत से खिलवाड़ कर रहा है और इस पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन की जरूरत है क्योंकि इस्लामी लॉ बच्चियों में पीरियड (महावारी) शुरू होते ही उसे निकाह के योग्य मान लेता है। अब चाहे बच्ची की उम्र 11 या 12 वर्ष की क्यों न हों। ऐसे में 20 से 22 वर्ष की आयु तक पहुंचते पहुंचते लड़की चार से छह बच्चों की मां बन चुकी होती है। ऐसे में वो एक प्रकार से मानसिक और शारीरिक रूप से कुपोषित समाज ही तैयार कर रही होती है।
ऐसे में मंच का कहना है कि मुस्लिम समाज जो दीन और दुनियावी दोनों ही तालीम से जुड़े हैं उनके अंदर इस तरह के शरिया लॉ या इस्लामिक लॉ के ठेकेदारों को लेकर जबरदस्त आक्रोश है। उनका मानना है कि क्या मुस्लिम बच्चियां सिर्फ सेक्स टूल हैं जिनको शादी का अमली जामा पहना कर बड़े उम्र के लोग अपनी कामेक्षा की पूर्ति चाहते हैं? इसका कुप्रभाव यह होता है कि ये मासूम बच्चियां खुद बच्चे पैदा करने की मशीन बन कर रह जाती हैं। मंच के माध्यम से मुस्लिम समाज पूछता है कि जहालत को मुस्लिम पर्सनल लॉ और अनपढ़ लोग कब तक ढोएंगे? इसलिए अब मुस्लिम समाज समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड की बात भी उठने लगी है।
मुस्लिम समाज में कहा जाता है कि बच्चे पैदा करने से रोकना नहीं चाहिए.. क्योंकि अल्लाह ताला ने रिज्क देने का वादा किया है। मंच के माध्यम से मुस्लिम महिलाएं और सभ्य समाज ये बताना चाहता है कि यह हकीकत है कि अल्लाह ताला ने वादा किया है रिज्क (खाना/रोटी) यक़नन अल्लाह देगा लेकिन उन्होंने यह वादा नहीं किया है कि हलवा पूड़ी ही देगा। अर्थात 10 X 10 फिट के घर या झोंपड़ी में रहने वाले अगर अल्लाह का हवाला देकर यह कहते हैं कि अल्लाह की मर्जी से 10 बच्चे हो गए तो यह जहालत है। इंसान को अपनी हैसियत देख कर ही बच्चे पैदा करने चाहिए वरना बच्चों को हलवा पूड़ी की जगह कुपोषण ही नसीब होगा। जहां तक तालीम का मामला है वो भी अधिक बच्चों की स्थिति में अच्छी तालीम से दूर रहेंगे। और फिर जब तालीम ही नहीं होगी तो रोजगार के मौके भी बहुत कम बचेंगे। ऐसे में ग़रीब, भूखमरे, कुपोषित और बीमार समाज ही तैयार होंगे।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की टीम ने गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, रामपुर, देवबंद, बरेली, बिजनौर, शाहजहांपुर, संभल, बहराइच, कैराना, अलीगढ़, आगरा, कानपुर, लखनऊ, फैजाबाद, सहारनपुर, गोरखपुर, आजमगढ़, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, मऊ, देवरिया, देहरादून, हरिद्वार, उद्धम सिंह नगर इतियादी जिलों का दौरा किया है।
मुस्लिम मंच का कहना है कि फाइंडिंग्स को प्रमुखता से लेते हुए मंच मुस्लिम समाज के उत्थान और बदलाव के प्रति देश भर में जागरूकता अभियान और जन आंदोलन चलाएगा। मंच के विभिन्न प्रकोष्ठ अपनी भूमिका को निभाते हुए समाज के विभिन्न तबकों को साथ लेकर रिफॉर्म्स की योजना तैयार करेंगे। इन योजनाओं को क्रमबद्ध रूप से पूरे देश में अभियान के तौर पर चलाया जाएगा। इन योजनाओं में मुफ्तियों, मौलानाओं, इमामों, दनिश्वरो, डाक्टरों, प्रोफेसर, महिलाओं, छात्र, छात्राओं और समाज के अन्य लोगों से भी विचार मंथन किया जायेगा।