मौलाना मोहम्मद अली जौहरः भारत की आज़ादी के लिये अंग्रेज़ों से आख़िरी सांस तक लड़ने वाला महान स्वतंत्रता सेनानी

तौहीद तो यह है कि ख़ुदा हश्र में कह दे, यह बंदा दो आलम से ख़फ़ा मेरे लिए है मौलाना मोहम्मद अली जौहर की यह शायरी सिर्फ़ उन्हीं दिनों का नतीजा है, जब वह स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के कारण  जेल में बंद थे। मौलाना मोहम्मद अली जौहर के जीवन पर अगर नज़र डालें तो भारतीय इतिहास में उनका सबसे बड़ा कारनामा ख़िलाफ़त तहरीक है। यह वह तहरीक थी, जो तुर्की के मुसलमानों के समर्थन में शुरू की गई थी लेकिन बाद में इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का रूप धारण कर लिया। यही वह प्लेटफार्म था, जहां से महात्मा गांधी ने अपनी राजनीतिक शुरुआत की।

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ख़िलाफ़त तहरीक ने हिंदुओं और मुसलमानों को अंग्रेज़ों के विरुद्ध ला खड़ा किया। दोनों ही संप्रदायों ने बड़े जोश और जज़्बे के साथ अंग्रेज़ों के ख़िला़फ कड़े क़दम उठाने शुरू किए, ताकि भारत को आज़ाद कराया जा सके। इसके लिए मौलाना ने हर तरह की यातनाएं सहीं। वह मरते दम तक अंग्रेज़ों से इस बात के लिए लड़ते रहे कि या तो देश आज़ाद करो या फिर मरने के बाद दो गज़ ज़मीन अपने देश में दे दो। वह किसी गुलाम देश में मरना नहीं चाहते थे। इतिहास गवाह है कि उन्होंने अपना वचन पूरा करके दिखा दिया।

Maulana Jauhar
1930 की गोलमेज कांफ्रेंस में मौलाना मोहम्मद अली जौहर के संबोधन का अंश

एक पत्रकार की हैसियत से मौलाना ने एक महान कारनामा अंजाम दिया। उन्होंने दो अख़बार निकाले कामरेड और हमदर्द। कामरेड अंग्रेज़ी का अख़बार था, जबकि हमदर्द उर्दू का। कामरेड एक ऐसा अंग्रेज़ी अख़बार था, जिसका लोहा अंग्रेज़ भी मानते थे। उसके महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेज़ कामरेड की कॉपी अपने दोस्तों के लिए बतौर तोहफ़ा लंदन ले जाते थे। इस अख़बार को निकालने का मक़सद दरअसल अंग्रेज़ों को भारतीय जनता की समस्याओं से अवगत कराना था।

दूसरा अख़बार हमदर्द था, जिसे मौलाना जौहर ने भारतीय जनता और ख़ासकर मुसलमानों के प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए निकालना शुरू किया था। मौलाना का यह सिद्धांत था कि कोई भी ख़बर बिना प्रमाण के प्रकाशित न की जाए। मौलाना अख़बार में विज्ञापन छापने के कड़े विरोधी थे। अगर वह चाहते तो ऐसा करके बहुत पैसा कमा सकते थे, लेकिन उन्होंने आर्थिक लाभ के बजाय पत्रकारिता के सिद्धांतों को वरीयता दी।

हम यह कह सकते हैं कि मौलाना जौहर ने साहित्य, राजनीति एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में जो कुछ भी विरासत छोड़ी, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उनके बिना भारतीय इतिहास पूरा नहीं हो सकता। ज़रूरत इस बात की है कि उन पर पुन: अध्ययन किया जाए और मौलाना को उनका सही मुक़ाम दिया जाए। मौलाना मोहम्मद अली जौहर एक महान स्वतन्त्रता सेनानी, जिन्हें भुला दिया गया। आज यौम-ए-पैदाइश है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)