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जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी बोले, मुसलमान-मुसलमान बोल कर हो रहे बहुत सारे वाकयात…

नई दिल्लीः जमीअमत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि आज की तारीख में आमतौर पर मुसलमान एजुकेशनली और सोशली बैकवर्ड हैं, फिर उसे एलियनेट कर दिया गया है, मुसलमान-मुसलमान बोल कर बहुत सारे वाकयात हो रहे हैं लगातार। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की या पूरे देश की बात करें, तो ये बहुत दुखद है और ये स्थिति अचानक नहीं बनी है। निश्चित तौर पर इसमें 75 साल लगे हैं।

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मौलाना मदनी ने ईटीवी भारत को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि धर्म के नाम पर विभाजन तो सच्चाई है, लेकिन जो भारत का मुसलमान भारत में रह गया था, उसमें से ज़्यादातर 99।99 फीसदी लोग मजदूर वर्ग के लोग थे तो पिछले 75 सालों में मुसलमानों ने बहुत सी उपलब्धियां भी हासिल की हैं। अपनी मेहनत से साइंस में, नेचुरल साइंस में, मेडिकल में, शिक्षा के क्षेत्र में, व्यापार में बहुत कुछ हासिल किया है। ये शिकायत अपनी जगह जायज़ है कि बराबरी के मौके हमें नहीं मिले। इसके बावजूद पूरे उपमहाद्वीप के मुसलमानों से अगर तुलना करें, तो भारत के मुसलमानों ने किसी से कम हासिल नहीं किया है, बल्कि ज़्यादा ही किया है।

80-20 बयान पर क्या बोले

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि एक भारतीय नागरिक को जो मौके मिलते हैं, जो इंसाफ मिलता है, जो उसका अधिकार बनता है, वो मिलना चाहिए, इसलिए नहीं कि वो मुसलमान है, इसलिए उसको कोई स्पेशल चीज़ मिले बल्कि इसलिए कि वो भारत का नागरिक है और अगर वो कमज़ोर है, तो भारत, भारत के लोग, भारत का सिस्टम उसे मजबूत करें। उनकी मज़बूती भारत की मज़बूती है। वो कमज़ोर होगा, एलियनेट होगा, साइडलाइन किया जाएगा या कम्युनल लाइन्स पर उसे बांटा जाएगा, तो ये भारत का नुकसान है, 80 और 20 की बात को मैं बहुत दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं। ये मुसलमान के लिए भी अच्छा नहीं है, दूसरों के लिए भी अच्छा नहीं है। ये देश के लिए भी अच्छा नहीं है।

मुसलमानों ने किसी मुस्लिम को लीडर नही माना

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि आज़ादी के बाद से लेकर आज तक आप देख लीजिए। मुसलमानों ने किसी मुसलमान नेता को अपना लीडर नहीं बनाया। इसी को लोग शिकायत भी करते हैं कि ये तो फंसे हुए हैं तथाकथित सेक्युलर पार्टियों के चक्कर में। इससे इनका तुष्टीकरण हो जाता है, फायदा होता नहीं है, ग़लत इस्तेमाल होता है, तो आप उन्हें ईमानदारी से लेकर तो देखिए। ताली तो दोनों हाथ से बजती है। ये मुसलमानों के लिए और मुल्क के लिए भी अच्छा नहीं है कि किसी एक पार्टी को हराने के लिए एक जगह वोट करें तो जिसके पास मुसलमान जा सकता है, लेकिन जा नहीं रहा है, उसको भी तो लेने की एक गंभीर कोशिश करनी है। वो कब की गई? कभी कोई गंभीर कोशिश की गई ? अगर हो तो मुझे इस बात का अटूट विश्वास है कि मुसलमान वहां भी जा सकता है।