नई दिल्ली/रांचीः झारखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को अल-कायदा संगठन की गतिविधियों में कथित संलिप्तता के मामले में एंटी-टेरर यूएपी अधिनियम के तहत आरोपी बनाए गए एक मौलाना कलीमुद्दीन मुजाहिरी को जमानत दे दी है। न्यायमूर्ति कैलाश प्रसाद देव की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, “अल-कायदा संगठन की किसी भी गतिविधि में याचिकाकर्ता की भागीदारी के संबंध में कोई भी सामग्री एकत्र नहीं की गई है और न ही जांच अधिकारी ने किसी भी ऐसे संगठन द्वारा याचिकाकर्ता को दिए गए धन के संबंध में कोई भी सामग्री एकत्र की है, जो गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल था।”
अदालत ने कलीमुद्दीन मुज़ाहिरी को जमानत देते हुए कहा, ”इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता एक मौलाना है, जिसका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है, यह अदालत याचिकाकर्ता को जमानत देने की इच्छुक है।” तथ्यात्मक पृष्ठभूमि याचिकाकर्ता ने बिष्टुपुर पी.एस में दर्ज केस नंबर 21/2016 के संबंध में ज़मानत के लिये अर्जी लगाई थी। यह मामला भारतीय दंड सहिंता की धारा 121, 121 (ए), 124 (ए), 120-बी, 34 रिड विद आम्र्स एक्ट की धारा 25 (1-बी) , 26, 35 , यूएपीए की धारा 16, 17, 18, 18-बी, 19, 20, 21, 23 और सी.एल.ए एक्ट की धारा 17 के तहत दर्ज किया गया था।
क्या थे आरोप
याचिकाकर्ता पर लगाए गए आरोपों के मुताबिक़, सह-अभियुक्त अहमद मसूद अकरम एस.के और अब्दुल रहमान उर्फ कटकी याचिकाकर्ता से उसके घर साकची मदरसा में से गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप था कि उन्हें जिहादी के रूप में देश विरोधी कार्य करने के लिए गुजरात से कुछ पैसे मिले थे। याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता एक मौलाना है और जांच के दौरान कोई ऐसी सामग्री नहीं मिली,जिससे याचिकाकर्ता के खिलाफ राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के संबंध में अपराध साबित हो सके।
वकील ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का मामला अन्य सह-अभियुक्तों से पूरी तरह से अलग है। यह प्रस्तुत किया गया कि उन्हें इस आधार पर अभियुक्त बनाया गया है, कि उनके घर में, बैठक आयोजित की गई थी और इस आधार पर भी कि याचिकाकर्ता के पास गुजरात से पैसा आया था। हालांकि, यह तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता को देश विरोधी काम करने के लिए भेजे गए धन के संबंध में कोई जांच की गई थी। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि वह हज करने के लिए सरकार से अनुमति लेने के बाद तीन बार सऊदी अरब गए थे और इसके लिए सरकार से सब्सिडी भी ली गई है।
तर्क दिया गया कि रिकार्ड पर कोई भी ऐसी सामग्री नहीं लाई गई थी जो यह साबित करें कि याचिकाकर्ता कभी भी सऊदी अरब में किसी चरमपंथी संगठन से मिला था। अंत में, यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को 22 सितम्बर 2019 को गिरफ्तार किया गया था। इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है क्योंकि याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है। दूसरी ओर, राज्य के वकील ने जमानत की प्रार्थना का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने अपना अपराध को स्वीकार किया है कि सह-अभियुक्त उसके घर आते थे, जहां वे अल-कायदा के नेटवर्क के विस्तार के मुद्दों पर मिलकर चर्चा करते थे। कोर्ट का आदेश न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि स्थानीय पुलिस द्वारा इसकी जांच की गई थी। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि, ”जांच अधिकारी ने किसी भी ऐसे संगठन द्वारा शामिल था।” कोर्ट ने आगे कहा, ”इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता एक मौलाना है, जिसका कोई पुराना आपराधिक रिकार्ड नहीं है, यह न्यायालय याचिकाकर्ता को जमानत देने का इच्छुक है। याचिकाकर्ता को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के लिए 25,000 रुपये के बेल बांड व दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर बिष्टुपुर पीएस केस नंबर 21/2016 व जीआर नंबर 246/2016 के संबंध में जमानत पर रिहा कर दिया जाए।”
सभार लाईव लॉ