RSS प्रमुख को मौलाना अरशद मदनी का जवाब, ‘भारत में इस्लाम हमलावरों से नहीं मुस्लिम व्यापारियों द्वारा पहुंचा’

मैसूर/नई दिल्ली: भारत में इस्लाम हमलावरों द्वारा नहीं बल्कि अरब मुस्लिम व्यापारियों द्वारा फैला। उन्हीं के चरित्र एवं कर्म को देखकर भारत के लोग प्रभावित हुए और उन्होंने किसी डर और लालच के बिना इस्लाम स्वीकार कर लिया। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने यह बातें कर्नाटक में मैसूर से सटे ज़िला गोडागो के सदापुर में आयोजित एक कार्यक्रम में कही, मौलाना अरशद मदनी यहां बाढ़ पीड़ितों के लिये जमीअत उलमा-ए-हिंद द्वारा बनाए गए मकानों की चाभियां सौंपने पहुंचे थे।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह बात सरासर आधारहीन और ऐतिहासिक रूप से ग़लत है कि भारत में इस्लाम हमलावरों के साथ आया, भारत में मुसलमान सौ दो सौ साल से नहीं बल्कि 1300 वर्ष से आबाद हैं। इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि भारत और अरब के बीच इस्लाम के आगमन से पूर्व व्यापारिक संबंध रहे हैं, लेकिन इस्लाम के आगमन के बाद कुछ मुस्लिम व्यापारी अरब से कश्तियों द्वारा केरल पहुंचे और यहीं आबाद हो गए, उनके पास कोई सेना और शक्ति नहीं थी बल्कि यह उनका चरित्र और नैतिकता ही थी जिससे प्रभावित हो कर यहां के स्थानीय लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।

उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास की पुस्तकों में केरल के ही कुछ राजाओं का भी उल्लेख मिलता है, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया। एक राजा के बारे में यह उल्लेख भी है कि उसने जब चाँद को दो टुकड़े करने का चमत्कार देखा तो आश्चर्यचकित रह गया, अपने दरबार के ज्योतिषयों से उसने इस बारे में पूछा तो उन्होंने जो कुछ बताया उसे सुनकर उसके दिल में अरब जाकर पैगम्बर मुहम्मद से मिलने की ललक पैदा हुई। इसलिये उसने अपना राजपाट दूसरों की निगरानी में देकर नाव द्वारा अपनी यात्रा का आरंभ किया लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई। केरल में भारत की सबसे प्रथम मस्जिद अब भी मौजूद है। मौलाना मदनी ने कहा कि मुहम्मद बिन क़ासिम की घटना तो उसके बहुत बाद की है।

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सिंध में राजा दाहिर की पराजय के बाद जिन लोगों ने मोहम्मद बिन क़ासिम से शरण मांगा उन्हें शरण दी गई, इसलिये उनमें से बहुत से लोगों ने मुसलमानों के इस व्यवहार से प्रभावित हो कर इस्लाम स्वीकार कर लिया, इसके लिए किसी प्रकार की ज़ोर ज़बरदस्ती की गई हो इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है और फिर यह भी है कि ज़ोर ज़बरदस्ती द्वारा किसी को मुसलमान नहीं किया जा सकता।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना मदनी ने आगे कहा कि हम समझते हैं कि यह इस देश की विशेषता है कि पिछले 1300 वर्ष से यहां हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के साथ प्रेम और भाईचारे के साथ रहते आए हैं, लेकिन अब कुछ लोग प्रेम और एकता के इस पक्के संबंध को तोड़ देना चाहते हैं, वो नफ़रत और ग़लतफ़हमियों को बढ़ावा दे रहे हैं, डर और भय का माहौल पैदा करके एक विशेष वर्ग के विरुध टकराव की स्थिति पैदा की जा रही है और अब हालात यह हैं कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लोग डर और भय के साये में जीवन व्यतीत करने पर विवश हैं, ऐसे लोगों को शायद यह बात मालूम नहीं है कि यह देश एकता और प्रेम से ही आबाद रह सकता है और अगर नफ़रत और टकराव की राजनीति की गई तो फिर यह देश बर्बाद हो जाएगा।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा था कि भारत में इस्लाम आक्रांताओं को माध्यम से पहुंचा। मौलाना अरशद मदनी ने इसी मार्फत मैसूर में विस्तृत से सही जानकारी देने की कोशिश की है।