नई दिल्ली/देवबंद: जमीअत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान को लेकर बड़ा बयान दिया है, उन्होंने कहा कि मौजूदा तालिबान भी हजरत शेख उल हिंद मौलाना महमूद उल हसन देवबंदी की तहरीक से जुड़े हैं। गुरुवार को देवबंद में स्थित अपने आवास पर कुछ मीडिया कर्मियों से बात करते हुए मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि भविष्य बताएगा कि तालिबान का तरीका ए कार सही है या नहीं, उन्होंने कहा कि अगर अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने के बाद तालिबान सभी लोगों के साथ इंसाफ और एक जैसा बर्ताव करेगा तो सारी दुनिया उनकी तारीफ करेगी, फिर हम भी उसके साथ हैं लेकिन अगर तालिबान की तरफ़ से नाइंसाफी की जाएगी तो कोई उनका साथ नहीं देगा।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि किसी भी सरकार को चलाने के लिए दो चीजें बुनियादी होती हैं एक मेल मिलाप और प्यार मोहब्बत, दूसरे देश में रहने वाले बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समाज के साथ एक जैसा सलूक करना, देश में मोहब्बत और अमन शांति स्थापित करना, साथ ही सभी लोग को अपनी सरकार में एक निगाह से देखना, लोग अपनी जान और माल को सुरक्षित समझे और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा समेत सभी जिम्मेदारियां सरकार उठाए। ऐसी सरकारें कामयाब हैं और कामयाब सरकारों की सारी दुनिया तारीफ करती है उसमें हम भी शामिल है।
तालिबान के लिए अच्छी राय रखना गलत
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि जो लोग यह कहते हैं कि हम तालिबान के लिए अच्छी राय रखते हैं वह गलत हैं क्योंकि हम तो किसी के बारे में कोई राय ही नहीं रखते हैं बल्कि भविष्य तय करेगा कि दुनिया उनके बारे में क्या राय रखती है वह अपनी सरकार में कैसे सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं के सम्मान जैसे काम करेंगे यही उनका भविष्य तय करेगा।
मौलाना अरशद मदनी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि देवबंद से तालिबान को जोड़ने का तरीका गलत है क्योंकि तालिबान असल में भारत की आजादी में रेशमी रुमाल की तहरीक चलाने वाले हजरत शेख उल हिंद मौलाना महमूद हसन देवबंदी की तहरीक से प्रभावित है, हजरत शेख उल हिंद की तहरीक देश की आजादी के लिए अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंची थी जहां “आजाद ए हिंद की पहली हुकूमत बनाई थी” जिसका अध्यक्ष महाराजा प्रताप सिंह को बनाया गया था। लेकिन शेख उल हिंद की तहरीक अधूरी रह गई थी जिसके बाद से वहां के लोगों ने शेख उल हिंद की इस तहरीक को आगे बढ़ाने का काम किया था, जैसे हम हिंदुस्तान में अंग्रेजों को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे और हमारे बुजुर्गों ने उसके लिए बड़ी लड़ाई लड़ी है ऐसे ही तालिबान भी किसी गैर की ताकत को अपने देश में बर्दाश्त नहीं करते और उसी के लिए वह लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे, मौलाना ने कहा कि यह लोग शेख उल हिंद जो असल में देवबंद के रहने वाले थे और उन्होंने देश की आजादी के लिए एक बड़ी तहरीक चलाई थी और बड़ी लड़ाई लड़ी थी, यह लोग उन्हीं की तहरीक से प्रभावित हैं।
उन्होंने कहा कि हालांकि अब शैखुल हिंद की तहरीक चलाने वाले असल लोग अफ़गानिस्तान में नहीं है लेकिन उनके पढ़े हुए और उनकी नस्लें और उनकी औलाद हैं। इसीलिए यह लोग हजरत शेख उल हिंद को अपना इमाम मानते हैं।
दारुल उलूम को तालिबान से जोड़ना गलत
एक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि किसी भी मामले को दारुल उलूम देवबंद से जोड़ना सही नहीं है क्योंकि दारुल उलूम देवबंद पूरी दुनिया के सामने खुली किताब है और यह पूरी दुनिया में अमन भाईचारे का संदेश देता है, हम जो पढ़ाते हैं वह सबके सामने है, हमारे सबक में कोई भी आए और देखें कि हम क्या पढ़ाते हैं और क्या शिक्षा देते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान को लेकर भारत सरकार का क्या नजरिया है और क्या डिप्लोमेसी है इससे हमारा कोई लेना देना नहीं है क्योंकि इस सियासी और सरकारी मामले पर सरकार को खुद फैसला करना है, लेकिन हम एक बात एक बार फिर साफ कर देना चाहते हैं कि हम यही कहेंगे की तालिबान का अमल ही उसका भविष्य तय करेगा, तालिबान धर्म, भाषा, और लिबास की बुनियाद पर नहीं बल्कि सभी के साथ एक जैसा सुलूक और एक जैसा बर्ताव करते हैं तो उसमें पूरी दुनिया उनकी तारीफ करेगी जिसमें हम भी उनके साथ हैं।