नई दिल्ली: जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यसमिति की बैठक इसके मुख्य कार्यालय 1-बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग, नई दिल्ली में मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई। इस मीटिंग में देश की वर्तमान स्थिति और क़ानून-व्यवस्था की गंभीर स्थिति पर गहिरी चिंता प्रकट की गई और साथ ही अन्य अहम मिल्ली और सामाजिक मुद्दों, आधुनिक शिक्षा, लड़के और लड़कियों के लिए स्कूल और कॉलेज की स्थापना विशेषकर लड़कियों के लिए दीनी माहौल में शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और समाज सुधार के तरीकों अथवा आधिकारिक एवं संगठन के कार्यों पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यसमिति के सदस्यों ने चर्चा में उठाए गए विषयों पर खुल कर अपने विचार और संवेदनशीलता व्यक्त की और कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद अपनी स्थापना से देश में सांप्रदायिक एकता और सहिष्णुता के लिए सक्रीय रही है, और देश में बसने वाले सभी धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक इकाइयों के बीच प्यार-मुहब्बत के जज़्बे को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर प्रयास करती आई है और कर रही है। वह आज भी इसी मूल नीति और उद्देश्य के लिए देश के बुद्धिजीवियों, सामाजिक संगठनों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से संबंध रखने वाले लोगों से आग्रह करती है कि वह अपने प्रभाव का प्रयोग करके देश के बिगड़ते हुए माहौल को बचाने का प्रयास करें जिसने देश की एकता, अखण्डता और सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर दिया है।
अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद ने कहा कि धर्म के नाम पर किसी भी तरह की हिंसा सवीकार्य नहीं हो सकती, उन्होंने कहा कि धर्म मानवता, सहिष्णुता और प्रेम का संदेश देता है इसलिये जो लोग इसका प्रयोग नफ़रत और हिंसा के लिए करते हैं वह अपने धर्म के सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते हैं और हमें हर प्रकार से ऐसे लोगों की निंदा और विरोध करना चाहिये। उन्होंने कहा कि घृणा और सांप्रदायिकता का बड़ा कारण यह है कि अधिकतर राजनेताओं में नफ़रत को बढ़ावा देकर सत्ता प्राप्त करने की हवस तीव्र हो गई है जिसके कारण सांप्रदायिकता और धार्मिक अतिवाद में असाधारण वृद्धि हुई है।
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ राजनेता बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के खि़लाफ़ लामबंद करने के लिए धार्मिक अतिवाद का सहारा लेने लगे हैं ताकि आसानी से सत्ता प्राप्त कर सकें और शासकों ने डर और भय की राजनीति को अपना आदर्श बना लिया है लेकिन मैं सपष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकार डर और भय से नहीं बल्कि नयाय से ही चला करती है। आज हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि यह देश किसी विशेष धर्म की विचारधारा से चलेगा या धर्मनिरपेक्षता के सिद्धानतों पर। उन्होंने कहा कि स्थितियां बहुत विस्फोटक होती जा रही हैं ऐसे में हमें एकजुट हो कर सामने आना होगा। मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि हमारा विरोध और हमारी लड़ाई किसी राजनीतिक दल से नहीं, केवल उन शक्तियों से है जिन्हों ने देश के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को रौंद कर अत्याचार और आक्रमकता का रास्ता अपना लिया है। लोगों के मन में तरह तरह के अनावश्यक मुद्दे उठा कर धार्मिक पागलपन पैदा करने का प्रयास हो रहा है मगर आशाजनक बात यह है कि तमाम षड़यंत्रों के बावजूद देश के अधिकांश लोग सांप्रदायिकता के खि़लाफ़ है। देश की स्थिति निसंदेह निराशाजनक है लेकिन हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस देश में एक बड़ी संख्या न्यायप्रिय लोगों की मौजूद है जो सांप्रदायिकता, धार्मिक अतिवाद और अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले अन्याय के खि़लाफ़ न केवल आवाज़ उठा रही है बल्कि निडर हो कर सच बोलने के साथ साथ उन सांप्रदायिकों के खि़लाफ़ अदालत भी जा रहे हैं।
मौलाना मदनी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के साथ जो कुछ होता आ रहा है यहां दोहराने की ज़रूरत नहीं है, नए नए मुद्दे उठा कर मुसलमानों को न केवल उकसाने का प्रयास हो रहा है बल्कि उन्हें अलग थलग कर देने का योजनाबद्ध षड़यंत्र हो रहा है, लेकिन इन सब के बावजूद मुसलमानों ने जिस धैर्य से काम लिया है वह एक उदाहरण है। इसके लिये देश का एक बड़ा न्यायप्रिय वर्ग उनकी प्रशंसा कर रहा है। उन्होंने कहा हमें आगे भी इसी तरह धैर्य से काम लेना होगा क्योंकि सांप्रदायिक शक्तियां आगे भी विभिन्न बहानों से उकसाने और भड़काने का प्रयास कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वाले हमारे बड़ों ने जिस भारत का सपना देखा था वह ऐसी नफ़रत और अत्याचार का भारत नहीं था। हमारे बड़ों ने ऐसे भारत का सपना देखा था जिसमें बसने वाले तमाम लोग जाति, पंथ और धर्म से ऊपर उठकर शांति और सद्भाव के साथ रह सकें।
हिजाब को लेकर मौलाना मदनी ने कहा कि कुछ तथाकथित पढ़े-लिखे लोग गलत धारणा बना रहे हैं कि इस्लाम में हिजाब की पाबन्दी नहीं है और कुरान में हिजाब का जिक्र नहीं है, जबकि ऐसा नहीं है. पवित्र कुरान और हदीस में हिजाब पर इस्लामी दिशानिर्देश हैं की शरीयत के अनुसार हिजाब अनिवार्य है।
जहां तक संवैधानिक मुद्दे का सवाल है, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अल्पसंख्यकों को जो इख़्तियारात हासिल हैं उस के कारण मुस्लिम छात्रों को हिजाब पहनने से रोकना अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 25 गारंटी देता है कि देश के प्रत्येक नागरिक को धर्म, धार्मिक पालन और पूजा की पूर्ण स्वतंत्रता है, भारत का कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है लेकिन यह सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है।मौलाना मदनी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब ये नहीं है कि कोई भी व्यक्ति या समूह अपनी धार्मिक पहचान प्रकट न करे । हाँ ये बात धर्मनिरपेक्षता में ज़रूर है की हुकूमत किसी विशेष धर्म की पहचान को तमाम नागरिकों पर ना थोपे। हिजाब कुरान और सुन्नत पर आधारित एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि एक प्राकृतिक और तर्कसंगत आवश्यकता भी है।
मौलाना मदनी ने कहा कि शिक्षा को बढ़ावा देने पर जमीअत उलमा-ए-हिंद का ध्यान पहले दिन ही से रहा है। मदरसों की स्थापना के साथ साथ आधुनिक और तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले ग़रीब और ज़रूरतमंद छात्रों को जमीअत उलमा-ए-हिंद और मौलाना हुसैन अहमद मदनी चैरीटेबल ट्रस्ट देवबंद 2012 से लगातार मैरिट के आधार पर चुने जाने वाले छात्रों को स्कालरशिप दे रही है। उल्लीखनीय है कि पिछले शिक्षा सत्र के दौरान 656 छात्रों को लगभग एक करोड़ रुपये की स्कालरशिप दी गई, जिसमें हिंदू छात्र भी शामिल थे। यह इस बात का प्रमाण है कि जमीअत उलमा-ए-हिंद धर्म के आधार पर कोई काम नहीं करती। इसी स्कीम के अंतर्गत इस वर्ष भी स्कालरशिप दी जाएगी।
मौलाना मदनी ने कहा कि हमें ऐसे स्कूलों और कॉलिजों की अति आवश्यकता है जिनमें दीनी माहौल में हमारे बच्चे उच्च आधुनिक शिक्षा किसी रुकावट और भेदभाव के बग़ैर प्राप्त कर सकें, उन्होंने क़ौम के प्रभावशाली लोगों से आग्रह भी किया जिनको अल्लाह ने धन दिया है अधिक से अधिक लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग ऐसे स्कूल और कॉलेज बनाएं जहां बच्चे दीनी माहौल में आसानी से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें। मौलाना मदनी ने कहा कि हमें जिस तरह मुफ़्ती, उलमा और हाफिज़ों की ज़रूरत है उसी तरह प्रोफ़ेसर, डाक्टर, इंजीनियर आदि की भी ज़रूरत है। दुर्भाग्य यह है कि जो हमारे लिए इस समय अति महत्वपूर्ण है उस ओर मुसलमान विशेषकर उत्तर भारत के मुसलमान ध्यान नहीं दे रहे हैं। आज मुसलमानों को अन्य चीज़ों पर ख़र्च करने में तो रुची है लेकिन शिक्षा की ओर उनका ध्यान नहीं है। यह हमें अच्छी तरह समझना होगा। देश की वर्तमान स्थिति का मुक़ाबला केवल शिक्षा ही से किया सकता है।
जमीअत उलमा-ए-हिंद देश के हर नागरिक से भी यह अपील करती है कि वो सांप्रदायिकत शक्तियों के झूठे और गुमराह करने वाले प्रोपेगंडे के झांसे में न आएं और देश की स्थिति को बेहतर बनाने में अपना अपना योगदान दें और अपने पूर्वजों की पुरानी परंपराओं को न छोड़ें। जमीअत उलमा-ए-हिंद इस अवसर पर उन सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और संस्थानों से भी आग्रह करती है जो देश में धर्मनिरपेक्ष और क़ानून के शासन में यक़ीन रखते हैं, वह सांप्रदायिक शक्तियों के खि़लाफ़ एकजुट होजाएं। जमीअत उलमा-ए-हिंद का यह दृढ़ विश्वास है कि देश के विकास, समृद्धि और सुरक्षा की कुंजी आपसी भाईचारा, सहिष्णुता और धार्मिक सद्भाव में तिहित है, इसके बिना हमारा देश भारत विकास के रास्ते पर नहीं चल सकता। कार्यसमिति की कार्रवाई माननीय अध्यक्ष की दुआ पर संपन्न हुई। बैठक में माननीय अध्यक्ष के अतितिक्त जिन सदस्यों ने भाग लिया उनके नाम यह हैंः- मुफ़्ती सैयद मासूम सचिव जमीअत उलमा-ए-हिन्द, मौलाना अब्लु अलीम फ़ारूक़ी उपाध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिन्द लखनऊ, मौलाना असजद मदनी देवबंद, मौलाना अबदुल्लाह नासिर बनारस, मौलाना अशहद रशीदी मुरादाबाद, मुफ़्ती ग़यासुद्दीन हैदराबाद, फ़ज़लुर्रहमान क़ासमी मुंबई। इसके इलावा विशेष आमंत्रित के रूप में मौलाना मुहम्मद मुस्लिम क़ासमी दिल्ली, मौलाना मुहम्मद ख़ालिद क़ासमी हरियाणा, मौलाना अबदुल क़य्यूम क़ासमी मालेगांव, मौलाना हबीबुर्रहमान क़ासमी जोधपुर, मौलाना मुहम्मद राशिद राजिस्थान, मौलाना बदर अहमद मुजीबी पटना शामिल हुए।