बुलडोजर कार्रावाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली: शुक्रवार 10 जून को नबी ﷺ की शान में गुस्ताख़ी के ख़िलाफ यूपी में हुए विरोध प्रदर्शन में हिंसा हो गई थी। जिसके बाद उत्तर प्रदेश प्रशासन हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किये गए प्रदर्शनकारियों के मक़ानों को अवैध बताकर उन पर बुलडोज़र चला रहा है। बुलडोज़र की इस कार्रावाई के ख़िलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के रुख किया है। जानकारी के लिये बता दें कि भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा और भाजपा के दिल्ली प्रदेश के पूर्व मीडिया प्रभारी नवीन कुमार जिंदल द्वारा नबी ﷺ पर अपमानजनक टिप्पणी के बाद कानपुर शहर में विरोध प्रदर्शन हुआ था, इस प्रदर्शन में हिंसा हो गई थी, जिसके बाद पुलिस ने एकतरफा कार्रावाई करते हुए मुसलमानों को किया है।

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वहीं दूसरी ओर बीते तीन दिनों में कानपुर, इलाहाबाद और सहारनपुर शहर में प्रशासन ने हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किये गये मुसलमानों की संपत्ति को पर बुलडोज़र चलाना शुरू कर दिया है। सहारनपुर, कानपुर, इलाहाबाद में प्रशासन ने कई घरों को बुलडोजर ज़मींदोज़ किया है। प्रशासन की इस कार्रावाई की के ख़िलाफ जमीयत उलमा हिंद की कानूनी सहायता समिति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। याचिका में गुलजार आजमी को वादी बनाया गया है।

बुलडोज़र कार्रावाई के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दो अंतरिम याचिकाएं दायर कीं हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल, 2022 को उत्तर प्रदेश सहित मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और दिल्ली को नोटिस जारी कर बुलडोजर विध्वंस अभियान पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी।

जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर अंतरिम याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में बुलडोज़र की कार्रावाई पर नोटिस जारी किए जाने के बाद भी ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से बुलडोज़र की कार्रावाई की जा रही है, जिसे रोका जाना चाहिए। साथ ही उन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए जिन्होंने कानून का उल्लंघन कर मुसलमानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है.

जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से दायर की गई इस अंतरिम याचिका में कहा गया है कि कानून के मुताबिक किसी भी विध्वंस कार्रवाई से पंद्रह दिन पहले नोटिस दिया जाना चाहिए। साथ ही, उत्तर प्रदेश भवन नियमन अधिनियम, 1958 की धारा 10 के अनुसार, पार्टी को विध्वंस अभियान से पहले अपने विचार स्पष्ट करने का उचित मौका दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की धारा 27 के तहत किसी भी विध्वंस कार्रवाई से 15 दिन का पहले नोटिस देना आवश्यक है। वहीं, प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील करने का भी अधिकार है। लेकिन इसके बावजूद बुलडोजर चलाए जा रहे हैं।

याचिका में आगे कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून का उल्लंघन कर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से विध्वंस अभियान शुरू किया है, जिससे मुसलमानों में भय और दहशत का माहौल पैदा हो गया है. इसलिए अदालत, उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल बुलडोज़र कार्रावाई को रोकने का आदेश जारी करे. याचिका में कहा गया है कि यदि उन्हें अवैध भवनों को गिराना है तो वे कानून के अनुसार ऐसा करें। और कानून चाहता है कि पहले नोटिस दिया जाए और फिर अपने विचार को स्पष्ट करने का अवसर दिया जाए।

याचिका में आगे कहा गया है कि एक रात पहले नोटिस पोस्ट कर कई जगहों पर भारी पुलिस बल तैनात करके विध्वंसक की कार्रवाई की गई है, जिससे पीड़ित अदालत का दरवाजा भी नहीं खटखटा सके, साथ ही डर के इस माहौल में पीड़ित सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाने में भी असमर्थ हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों ग्रीष्म कालीन की छुट्टी की वजह से भी पीड़ित सुप्रीम कोर्ट तक आने में असमर्थ हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकील सारिम नवेद और कामरान जावेद ने सुप्रीम कोर्ट में अनुरोध किया है कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका को जल्द से जल्द सुनवाई के लिए अवकाश पीठ के समक्ष पेश किया जाए.