मौलाना अहमदुल्लाह शाह फैज़ाबादीः जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ़ मुसलमानों को जिहाद के लिये…

ध्रुव गुप्त

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आज 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की वर्षगांठ पर हम याद करते हैं स्वाधीनता संग्राम के असंख्य विस्मृत नायकों में एक मौलाना अहमदुल्लाह शाह फैज़ाबादी को जिन्हें इतिहास में वह दर्ज़ा नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे। फ़ैजाबाद के ताल्लुकदार घर में पैदा हुए मौलाना साहब अपने शुरुआती दिनों में अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ़ क्रांतिकारी पर्चे लिख कर गांव-गांव बांटा करते थे। 1857 के जंग-ए-आजादी का एक बेशकीमती दस्तावेज ‘फ़तहुल इस्लाम’ है जिसे मौलाना साहब ने सिकंदर शाह, नक्कार शाह, डंका शाह आदि कई नामो से खुद लिखा था। इस पत्रिका में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान लिखते हुए अवाम से जिहाद की गुज़ारिश की गयी है, जंग के तौर-तरीके समझाए गए हैं और देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने की सिफारिश की गई है।

इस पत्रिका के असर से अंग्रेजी हुकूमत इस क़दर ख़ौफ़ खाती थी कि उसने 1856 में मौलाना साहब की तमाम गतिविधियों पर रोक लगा दी। पुलिस की चौतरफा निगरानी के बावजूद उनकी सक्रियता कम नहीं हुई तो 1857 में फ़ैजाबाद से गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने लखनऊ और शाहजहापुर जजिलों में घूम-घूमकर लोगो को अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद करना शुरू कर दिया। जंग-ए-आज़ादी के दौरान उन्हें विद्रोही स्वतंत्रता सेनानियो की बाईसवीं इन्फेंट्री का प्रमुख बनाया गया। यह क्रांतिकारियों का वह दस्ता था जिसने चिनहट की प्रसिद्ध लड़ाई में हेनरी लारेंस के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना को बुरी तरह पराजित किया था।

चिनहट की ऐतिहासिक जंग के बाद ब्रिटिश इंटेलिजेंस और पुलिस मौलाना फैज़ाबादी को उनके जीते जी नही पकड़ पाई। जनरल कैनिंग ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पचास हज़ार रुपयों का ईनाम घोषित किया था। अवाम में वे इतने लोकप्रिय थे कि लोग उन्हें गिरफ्तार कराने की सोच भी नहीं सकते थे। लोगों का मानना था कि मौलाना साहब में कोई ईश्वरीय शक्ति है जिसके रहते अंग्रेज उन्हें पकड़ ही नहीं सकते। दुर्भाग्य से इनाम के लालच में उनके मित्र और पुवायां के अंग्रेजपरस्त राजा जगन्नाथ सिंह ने 15 जून 1858 को खाने पर आमंत्रित कर उन्हें धोखे से गोली मारी और उनका सिर काटकर अंग्रेज़ जिला कलक्टर के हवाले कर दिया। जंगे आज़ादी का वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन फिरंगियों के लिए जश्न का दिन था। अंग्रेज अफसरों और पुलिस ने अवाम में दहशत फैलाने की नीयत से मौलवी साहब का कटा सिर शहर में घुमाया और शाहजहांपुर की कोतवाली में नीम के एक पेड़ पर लटका दिया।

इतिहासकार होम्स ने उत्तर भारत में अंग्रेजी शासन का सबसे ख़तरनाक दुश्मन मौलवी अहमदुल्लाह शाह को बताया है। ब्रिटिश अधिकारी थॉमस सीटन ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ विद्रोही की संज्ञा दी। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार मालीसन ने लिखा है -‘मौलवी असाधारण आदमी थे। विद्रोह के दौरान उनकी सैन्य क्षमता और रणकौशल का सबूत बार-बार मिलता है। उनके सिवाय कोई और दावा नहीं कर सकता कि उसने युद्धक्षेत्र में कैम्पबेल जैसे जंग के माहिर उस्ताद को दो-दो बार हराया था। वह देश के लिए जंग लड़ने वाला सच्चा राष्ट्रभक्त था। न तो उसने किसी की धोखे से हत्या करायी और न निर्दोषों और निहत्थों की हत्या कर अपनी तलवार को कलंकित किया। वह बहादुरी और आन-बान-शान से उन अंग्रेजों से लड़ा, जिन्होंने उसका मुल्क छीन लिया था।’ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की सालगिरह पर आज मौलाना अहमदुल्लाह शाह फैज़ाबादी को खिराज़-ए-अक़ीदत!

(लेखक पूर्व आईपीएस अफसर हैं)