आईएएस बनने के अपने ख़्वाब के साथ महीनों से जेल में क़ैद है मसूद अहमद, अब टूट रहीं हैं उम्मीदें…

मसूद अहमद आईएएस अफसर बनकर देश और समाज की सेवा करना चाहता है, उसने अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिये इंग्लैंड की कार्डिफ मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से मिले स्कॉलरशिप के ऑफर को भी ठुकरा दिया। नेट की कठिन परीक्षा पास करने वाला यह होनहार छात्र अपने अधूरे ख्वाबों के साथ पिछले नो महीनों से यूपी की एक जेल में बंद है। क्या मसूद का ख्वाब पूरा हो पाएगा? पढ़िए हमारे संवाददाता  वसीम अकरम त्यागी की यह विशेष रिपोर्ट-

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उत्तर प्रदेश के हाथरस में वाल्मिकी समाज की एक युवती के साथ हुई दरिंदगी के बाद पीड़िता के गांव में  मीडिया, और राजनेताओं का जमावड़ा लगा था। पांच अक्टूबर 2020 को मसूद अहमद भी अपने तीन दोस्तों के साथ पीड़िता के घर जा रहे थे। लेकिन उन्हें रास्ते में ही पुलिस अधिकारियों ने रोक लिया, जिसके बाद वे उन्हें पुलिस चौकी ले जाया गया जहां उनसे उनके नाम और अन्य सवाल पूछे। मसूद के साथ उनके तीन दोस्त सिद्दीक कप्पन मोहम्मद आलम और अतीकुर्रहमान भी शामिल थे। लेकिन रास्ते में थाना मांट पुलिस ने यमुना एक्सप्रेसवे के मांट टोल प्लाजा पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। इसी वर्ष अप्रैल में इनके ख़िलाफ यूपी एसटीएफ ने चार्जशीट दाखिल की है।

कौन हैं मसूद अहमद

उत्तर प्रदेश के उत्तरपूर्वी इलाक़े बहराइच के रहने वाले मसूद अहमद कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) में छात्र नेता है। उनके भाई मोनीस अहमद कहते हैं कि “उस लड़की के साथ होने वाली दरिंदगी से वह (मसूद) बहुत स्तब्ध था। इसीलिये वह पीड़िता के परिवार के दुःख में शामिल होने और एक छात्र कार्यकर्ता के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिये हाथरस जा रहा था।”

जानकारी के लिये बता दें कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया PFI की छात्र शाखा है। इस संगठन पर अक्सर चरमपंथी संगठन होने के आरोप लगते रहे हैं, जबकि पॉपुलस फ्रंट ऑफ इंडिया इन आरोपों को खारिज करता रहा है। मसूद के साथ गिरफ्तार किये गये अन्य लोगों में उत्तर प्रदेश के ही 27 वर्षीय अतीक-उर रहमान और 30 वर्षीय मोहम्मद आलम और केरल के 41 वर्षीय पत्रकार सिद्दिक कप्पन भी शामिल हैं। मोनीस बताते हैं कि वे दो दिनों तक अपने भाई की ज़मानत के लिये काग़ज़ात इक्टठा करने में व्यस्त रहे, लेकिन यूपी पुलिस प्रशासन की योजना तो कुछ और ही थी। सात अक्टूबर को पुलिस ने ‘खुलासा’ किया कि गिरफ्तार किये गए चारों लोग यूपी में जाति आधारित हिंसा भड़काने की साजिश रह रहे थे। इसी आरोप में उन पर देशद्रोह की धारा तथा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लगा दिया। अक्सर ये धाराएं आतंकवाद जैसे संगीन मामलों के अभियुक्त पर लगाई जाती हैं। मोनीस कहते हैं जब उन्हें पता चला कि उनके भाई पर यूएपीए और देशद्रोह का मुक़दमा लगाया गया है तो इस खबर ने हम सभी को चकनाचूर कर दिया। वह (मसूद) अपराधी या आतंकवादी नहीं है, बल्कि सिर्फ एक छात्र कार्यकर्ता है जो अन्याय के विरुद्ध न्याय दिलाने के  लिए लड़ रहा था।

टूटते ख़्वाब बिखरती उम्मीदें

मसूद अहमद का परिवार, दोस्त और साथी छात्र कार्यकर्ता उन्हें एक ऊर्जावान युवा छात्र नेता बताते हैं। वे बताते हैं कि मसूद भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल होकर समाज की सेवा करना चाहते थे। लेकिन अब उन्हें अब डर है कि देश की धीमी न्यायिक प्रक्रिया के सामने अपनी बेगुनाही साबित करने से पहले उन्हें ‘नौकरशाह’ बनने के अपने ख्वाब को पूरा करने में देर न हो जाए। तक़रीबन आठ साल पहले, मसूद अहमद दिल्ली स्थिती केंद्रीय विश्विद्यालय जामिया मिलिया इस्लामिया में पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिये दिल्ली आए थे। यहीं से उन्होंने खुद को कैंपस की छात्र राजनीति में शामिल कर लिया। मसूद के साथी बताते हैं कि, अहमद पढ़ाई के अलावा अपना अधिकांश समय विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों की समस्याओं से अवगत कराने में लगाते थे। इतना ही नहीं वे ओखला क्षेत्र की झुग्गियों में जाकर ग़रीब बच्चों को पढ़ाई के प्रति जागरुक भी किया करते थे। मसूद ने जामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद कई वेब पोर्टल्स के लिये भी काम किया, लेकिन यूपीएससी के एग्ज़ाम की तैयारी के लिये उन्होंने 2016 में फिर से जामिया का रुख किया और स्नातकोत्तर में दाख़िला ले लिया। 2018 में अपना दूसरा स्नातकोत्तर पूरा करने के बाद, मसूद अहमद ने खुद को कैंपस की राजनीति अलग कर लिया और भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

यूपीएससी के लिये ठुकरा दी इंग्लैंड की स्कॉलरशिप

मोनीस बताते हैं कि उनके भाई मसूद अहमद भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाना चाहता है। इसके लिये उसने इंग्लैंड की कार्डिफ मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के लिये मिलने वाली स्कॉलरशिप को भी ठुकराकर सिविल सर्विस की तैयारी में लगा हुआ था, हालांकि उसकी दोस्त हरमीत कौर ने इस स्कॉलरशिप को स्वीकार कर लिया जिसकी बदौलत अब वे इंग्लैंड में पढ़ाई कर रही हैं। हरमीत, मसूद के बारे में बात करते हुए बताती हैं कि “वह गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा करना चाहता था।”

मुस्लिम होने की वजह से बनाया गया निशाना

तीन भाईयों में सबसे छोटे मसूद अहमद की 51 वर्षीय मां चांद बीबी अपने बेटे की गिरफ्तारी के बाद से इबादत में लगी हुई हैं, उनका ज्यादातर वक्त अपने रब की इबादत में अपने बेटे की रिहाई के लिये दुआ मांगने में गुजर रहा है। चांद बीबी हर सप्ताह आने वाले सोमवार का बेसब्री से इंतज़ार करतीं हैं, क्योंकि महामारी के चलते जेल में लोगों से मुलाक़ात भी बंद हो गई है। इसलिये जेल प्रशासन लगभग हर सोमवार को मसूद अहमद को उनकी मां से मोबाइल पर बात करा देता है। चांद बीबी बताती हैं कि यह बातें मात्र दो मिनट या उससे भी कम समय के लिये होती हैं। वे कहती हैं कि हाथरस कांड से ध्यान हटाने के लिये यूपी सरकार ने उनके बेटे और उसके दोस्तों को “बलि का बकरा” बनाया है। क्योंकि अब यह एक चलन बन गया है कि किसी भी संवेदनशील मुद्दे से ध्यान हटाने के लिये किसी मुसलमान का नाम उछाल दिया जाए।

मसूद अहमद के वकील मधुबन चतुर्वेदी, चांद बीबी की बातों से सहमती जताते हुए उनकी बात को और विस्तार से बताते हैं। मधुबन के मुताबिक़ मसूद के खिलाफ जो मामले बनाए गए हैं उनका कारण मसूद का भाजपा और आरएसएस का मुखर विरोधी होना है। मधुबन के मुताबिक़ छात्र राजनीति करते हुए मसूद ने आरएसएस और भाजपा के ख़िलाफ मुखर होकर आवाज़ उठाई है, इतना ही नहीं मसूद ने सोशल मीडिया पर भी एक दूसरे के पर्याय बने इन दोनों संगठनों की आलोचना की है। मधुबन चतुर्वेदी ने मसूद को लेकर यूपी पुलिस पर भी मसूद को प्रताड़ित करने के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि पुलिस हिरासत में “आईपीएस स्तर के पुलिस अधिकारियों ने मसूद को लात मारी, थप्पड़ मारा और गालियां दीं।

वकील को भी नहीं दिखाया आरोप-पत्र

मसूद अहमद के वकील ने यूपी एसटीएफ पर भी गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि इसी वर्ष दो अप्रैल को उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने मसूद अहमद, सिद्दीक कप्पन, अतउर्रहमान, मोहम्मद आलम और चार अन्य लोगों के खिलाफ मथुरा की एक अदालत में पांच हज़ार पन्नों का आरोप पत्र दायर किया है। मधुबन का कहना है कि आरोपियों के वकीलों को अभी तक इस आरोप पत्र की देने के बजाय सिर्फ 22 पृष्ठ का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। मधुबन का यह भी कहना है कि जिन 55 लोगों को उनके मुवक्किल के खिलाफ गवाह बनाया गया है उनमें से 44 पुलिस अफसर हैं। सैफन पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों को ‘कहानी’ बताते हुए कहते हैं कि  “पुलिस की मंशा कहानी गढ़कर यह सुनिश्चित करने की है कि अहमद लंबे समय तक सलाखों के पीछे रहे।”

कोर्ट से नहीं मिली परीक्षा की इज़ाजत

मसूद की फेसबुक और इंस्टाग्राम वॉल उनके द्वारा किये गये सामाजिक कार्यों से भरी पड़ी है। उनकी वॉल पर असम और केरल में बाढ़ के दौरान किये गये सामाजिक कार्यो के प्रमाण के रूप मे उनकी बहुत सी तस्वीरें हैं। मसूद के भाई मोनीस बताते हैं कि मसूद नेट की परीक्षा पास कर चुका है, लेकिन वह जीआरएफ के लिये एक बार फिर से नेट का एग्ज़ाम देना चाहता था, मगर अदालत ने उसे परीक्षा में बैठने की इज़ाजत नहीं दी। मोनीस के मुताबिक़ मसूद का परीक्षा केंद्र लखनऊ में था लेकिन परीक्षा में बैठने के लिये कोर्ट से इज़ाजत ही नहीं मिली। मोनीस बताते हैं कि जेल प्रशासन ने मसूद को किताबें भी मुहैय्या नहीं करा पाईं हैं, इससे मसूद की पढ़ाई का काफी नुक़सान हो रहा है।

जेल में सुरक्षा को लेकर आशंका

तक़रीबन 9 महीने से जेल में बंद मसूद अहमद के परिजनों जेल में उनकी सुरक्षा का डर सता रहा है। मसूद के परिजनो का कहना है कि मसूद की मुस्लिम पहचान और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के कारण, उन्हें राष्ट्र-विरोधी के रूप में देखा जाता है। इसी बाबत मसूद के भाई मोनीस ने प्रधानमंत्री कार्यालय, यूपी के मुख्यमंत्री कार्याल के साथ-साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखकर सुरक्षा की गुहार लगाते हुए अहमद की रिहाई की मांग की है। मोनीस ने इस पत्र के माध्यम से मांग की है कि जेल में बंद मेरे भाई की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, उनसे मेरी मुलाकात करवाई जाए, उन पर दर्ज तमाम मुकदमे वापस लिए जाएं, जेल में रहने की वजह से मसूद अहमद की पढ़ाई-लिखाई बर्बाद हो रही है। वह यूजीसी नेट की परीक्षा क्वॉलीफाई कर चुका था, यूपीएससी की तैयारी के साथ साथ पीएचडी में एडमिशन के लिए पढ़ाई कर रहा था, इसलिए उसकी पढ़ाई और भविष्य को देखते हुए उसको जल्द रिहा किया जाए।

सभार- टू सर्किल नेट