मनीष सिंह
सर झुकाकर मान लो, जो अपराध किये हैं। कानून अपना काम कर रहा है। 18 धाराएं लगी तुम पर। हथियार रखना, दंगा भड़काना, राजद्रोह, हत्या का प्रयास, हत्या, और धर्म के आधार दुश्मनी और दंगा भड़काना। सारे आरोप प्रथमदृष्टया साबित होते हैं। ये एक तस्वीर ही मुकम्मल गवाह है। जरा देखो तो, एक हाथ मे कलम, दूजे में माइक, खुली जुबान…. क्या ये घातक हथियार नही हैं। क्या इन हथियारों के आगे तोप, तलवार और बंदूकों ने हार नही मानी है। स्वीकार करो… तुम्हारे हथियार बेहद खतरनाक हैं सफूरा।
और तुम बोलती रहीं- बुलंदी से, सरेआम, जुल्म के खिलाफ। क्या सामने खड़ी हथियारबंद टुकड़ी देखकर तुम्हें चुप नही हो जाना था?? लाठी एसिड और कट्टो से लैस देशप्रेमियो के झुंड देख, भाग खड़ा नही होना चाहिए था। ये हिमाकत कहां से लाती हो सफूरा? क्यो हमे ख़ौफ़ में डुबाती हो। यही तो राजद्रोह है।
वो कानून जिसकी मुखालफत “सारे धर्म, सारे इंसान बराबर है” कहे बगैर नही हो सकती… ये कह देना क्या धर्म के नाम पर दंगा भड़काना नही? फिर तुमने कैसे सोच लिया कि न्याय तुम्हारी रक्षा करेगा। तुमने सोच कैसे लिया, कि तुम आजाद नागरिक हो। तुम खतरनाक हो सफूरा, तुम्हे जेल में ही होना चाहिए। इसलिए तुम जेल में हो।
हमे डर लगता है सफूरा, ऐसी लड़कियों से.. जो डरती नही। डर लगता है ऐसे बच्चो से, जिनकी माएँ लोहे की होती हैं। हमारी बहने तो ऐसी नही, हमारी मातायें तो ऐसी नही। वो सिसक लेती हैं, आहें भरती हैं, मगर उफ नही करती। हमने उन्हें.. और उन्होंने हमें, जुल्म सहना सिखाया है। तो तुमने सहना क्यों नही सीखा सफूरा?
हमे पता है तुम शादीशुदा हो। लेकिन हम लांछन लगाएंगे। हमने देखा है, कि जब हर अस्त्र बेकार हो जाये, लो लांछन ही स्त्री को डरा पाता हैं। माना ये हमारा आखरी हथियार है।मगर इससे हम तुम्हें हराएंगे। हम हजारों है, लाखों है, रक्तबीज की तरह। तुम कहां तक लडोगी, हम थका देंगे तुम्हे।
जो अजन्मा बच्चा, तुम्हारी कोख में है, जो तुम्हारे साथ जेल में है। उसे भी तुम्हारे साथ बदनाम किया जाएगा। क्योकि डर तो हमें उससे भी लगता है.., बेहद लगता है। इसलिए कि अत्याचारी की जेल में आकार लिए एक शिशु को लीला रचते, तख्त पलटते, हमारी सत्ता को धूल धूसरित करते इतिहास ने देखा है। वो कंस का वक्त था। और आज भी उसी का है, सफूरा। और मत डराओ। हार मान जाओ.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)