मोहम्मद इक़बाल
मलिक शहबाज़ उर्फ मैल्कम एक्स (Malcolm X, 1925 -1965) अमेरिका के मशहूर अश्वेत लीडर थे, उन्हें अश्वेत अमेरिकियों के अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने इस्लाम कबूल किया और 1964 में हज की यात्रा करने के लिए मक्का गए, हज यात्रा के दौरान उन्होंने एक पत्र में अपने संस्मरण को लिखा, हज यात्रा के एक साल बाद यानी 21 फरवरी 1965 को अमेरिका में एक भाषण समारोह के दौरान उनकी हत्या हो गयी, हज यात्रा के दौरान उनके द्वारा लिखे गए पत्र का हिंदी अनुवाद यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
मैंने कभी ऐसा हार्दिक आदर सत्कार और ज़बरदस्त उत्साह से भरपूर सच्चा भाईचारा नहीं देखा जैसा की इस प्राचीन पवित्र भूमि में सभी रंग और नस्ल के लोगों द्वारा व्यवहार में लाते हुए देख रहा हूँ, जो की इब्राहीम, मुहम्मद(स) और पवित्र ग्रन्थ में वर्णित दुसरे पैगम्बरों का घर है। पिछले हफ्ते से मैं बिलकुल अवाक् और सम्मोहित हो चुका हूँ यहाँ की शालीनता को देख कर जो मेरे चारों ओर सभी रंग के लोगों द्वारा व्यवहार में लाया जा रहा है।
मुझे पवित्र शहर मक्का के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ, मैंने एक नौजवान मुहम्मद की रहनुमाई में काबा की सात बार परिक्रमा की, मैंने ज़म-ज़म के कुएं का पानी पिया, मैंने अल-सफा और अल-मरवा पहाड़ियों के बीच सात बार इधर से उधर दौड़ लगाई, मैंने प्राचीन नगर मिना में इबादत किया और मैंने अराफात की पहाड़ी पर इबादत की, जहाँ दुनिया के कोने कोने से आये हुए लाखों हज यात्री थे, वे सब अलग-अलग रंग के थे नीली आँखों वाले गोरों से लेकर काली तवचा वाले अफ्रीकन तक, लेकिन हम सब एक ही तरह की धार्मिक क्रिया में भाग ले रहे थे जोकि एक ऐसी एकता और भाईचारे को प्रदर्शित कर रहा था जिसके बारे में मैं अमेरिका में रहते हुए समझता था की श्वेत और और अश्वेत के बीच में ऐसी एकता असंभव है। अमेरिका को इस्लाम समझने की ज़रूरत है क्यूंकि यही एक ऐसा धर्म है जिसने अपने समाज से नस्लीय समस्या को मिटा दिया है।
पूरे मुस्लिम दुनिया के अपने सफ़र के दौरान मैं उन लोगों से मिला, बात किया, यहाँ तक की उनके साथ खाना खाया जिन्हें अमेरिका में गोरा माना जाएगा, लेकिन उनके दिमाग से श्वेत मानसिकता को इस्लाम धर्म द्वारा मिटा दिया गया था, मैंने सभी रंग और नस्लों द्वारा दुसरे रंग और नस्ल की परवाह किये बिना ऐसा निष्कपट और सच्चा भाईचारा व्यवहार में लाते हुए कभी नहीं देखा।
शायद आप मुझसे ऐसी बातें सुनकर हैरान हो गये होंगे लेकिन इस तीर्थयात्रा में जो मैंने देखा, जो अनुभव किया उसने मुझे इस बात के लिए मजबूर किया की मैं अपने पिछले सोचने के तरीक़े को फिर से तय करूँ और अपने कुछ पुराने निष्कर्ष को एक तरफ़ किनारे रख दूं, ये मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं था, मेरे दृढ निश्चय के बावजूद मैं हमेशा एक ऐसा आदमी रहा हूँ जो तथ्यों का सामना करने की कोशिश करता है और अपने नए अनुभव और नयी जानकरी की रौशनी में जीवन की सच्चाई को स्वीकार करता है।
पिछले ग्यारह दिन तक मुस्लिम दुनिया में रहने के दौरान मैंने उनके साथ एक ही प्लेट में खाना खाया, एक ही गलास में पानी पिया और एक ही कालीन पर सोया जिनकी आँखें नीली से भी नीली थी और जिनके बाल भूरे से भी भूरे थे और जिनकी त्वचा श्वेत से भी श्वेत थी और बिलकुल उन्ही शब्दों, उन्ही हरकतों में और उन्ही कर्मों में जैसे के गोरे मुस्लिम करते थे मैंने वही संजीदगी महसूस किया जो मैं नाइजेरिया, सूडान और घाना के काले मुस्लिमों के साथ महसूस करता रहा हूँ।
हम सब सच्चे भाई थे क्योंकि एक खुदा के विश्वास ने गोरे होने के एहसास को उनके दिमाग, उनके रवय्ये और उनके व्यवहार से मिटा दिया था, मैं देख सकता हूँ की शायद अगर गोरे अमेरिकी एक खुदा के अकीदे को अपनाएंगे तब शायद वो भी इंसानी एकता की इस हकीक़त को कबूल कर पाएंगे और दूसरों के रंग भेद के कारण उसका आकलन करना, रुकावट डालना और नुकसान पहुँचाना छोड़ देंगे, नस्लवाद ने अमेरिका को लाइलाज कैंसर की तरह त्रस्त कर रखा है, तथाकथित गोरे अमेरिकी इसाईयों के दिल इस विनाशकारी समस्या के निवारण के लिए ज्यादा खुले होने चाहिए शायद ये अमेरिका को आने वाली तबाही से बचा सकता है बिलकुल ऐसी ही तबाही जर्मनी में नस्लवादियों द्वारा लायी गयी जिसके नतीजे में जर्मनी खुद जर्मनों के हाथों तबाह हो गया।
इस पवित्र भूमि पर गुज़ारा गया प्रत्येक लम्हा मुझे उस बात को गहराई से समझने में सक्षम बनाता जा रहा है जोकि अमेरिका के काले और गोरों के बीच में हो रहा है।
अमेरिकी अश्वेतों को नस्लीय दुश्मनी के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता वो सिर्फ उस नस्लवाद की प्रतिक्रिया दे रहे है जो अमेरिकी गोरों द्वारा चार सौ साल से जान बूझ कर किया जा रहा है लेकिन जैसा के नस्लवाद अमेरिका को आत्महत्या की तरफ़ ले जा रहा है मैं अपने अनुभव के आधार पर ये विश्वास करता हूँ के गोरे नौजवान जो कालेज और युनिवरसिटी में पढाई करते हैं, उनमे से कुछ सच्चाई की राह पर चलेंगे नस्लवाद अमेरिका को जिस अवश्यम्भावी तबाही की ओर ले जा रहा है उससे सिर्फ यही चीज़ बचा सकती है।
मुझे इससे पहले कभी इतना सम्मानित नहीं किया गया, कौन उस बेपनाह आशीर्वाद पर विश्वास करेगा जो एक अमेरिकी नीग्रो को यहाँ मिला हैं। कुछ रातें पह्ले एक व्यक्ति जिसे अमेरिका में गोरा कहा जाएगा, जो संयुक्तराष्ट्र राजनयिक, राजदूत और राजा का सहयोगी भी है उसने मुझे अपना होटल सुइट दिया, अपना बिस्तर दिया, यहाँ के शासक प्रिंस फैसल मेरे जेद्दाह में मौजूद होने से अवगत हो चुके थे।
अगले दिन सुबह सवेरे प्रिंस फैसल के बेटे ने ख़ुद आकर मुझे बताया की उनके पिता के हुक्म से मैं राज्य अतिथि बनाया गया हूँ, डिप्टी चीफ़ प्रोटोकॉल ऑफिसर मुझे खुद हज कोर्ट के बाहर तक लेकर गए, शैख़ मुहम्मद हरकून ने खुद मेरे मक्का विज़िट करने का अनुमोदन किया, उन्होंने अपना हस्ताक्षर और मुहर लगाकर मुझे इस्लाम पर दो किताब दी और कहा की वो अमेरिका में मेरे दावती काम के लिए दुआ करेंगे।
मुझे एक कार, एक ड्राइवर और एक गाइड दिया गया, जिसने इस पवित्र भूमि के यात्रा की मेरी खवाहिश को मुमकिन बनाया, जिस शहर में भी मैं गया वहां सरकार की तरफ़ में मेरे लिए एयर कंडीशन क्वार्टर और नौकरों की सुविधा दी गयी, मैं ख्वाब में भी कभी नहीं सोच सकता था के कभी मुझे इतना सम्म्मानित किया जायेगा, ऐसा सम्मान अमेरिका में किसी नीग्रो को नहीं मिलता बल्कि एक राजा को मिलता हैं। सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है जो सारी दुनिया का रब है।
(मोहम्मद इक़बाल के फेसबुक वॉल से)