मज्द इस्माइल अल-मशहरावी: फ़लस्तीन के तबाह शहर में उम्मीदों की ईंटें लगाने वाली महिला

मज्द इस्माइल अलमशहरावी का जन्म फलस्तीन और इजरायल की सीमा से सटी गजा पट्टी में हुआ। उनका बचपन दुनिया के तमाम खुशहाल बच्चों से बिल्कुल अलग था। वह बम-धमाकों और लोगों के रोने-चीखने की आवाजें सुनकर बड़ी हुईं।  इलाके में चारों तरफ निराशा और नाराजगी का माहौल था। गजा में लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी अपनी जिंदगी बचाना। कोई नहीं जानता था कि अगले पल क्या होना वाला है? पता नहीं, कहां बम गिर जाए और शवों के ढेर लग जाएं?

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मज्द इस्माइल अलमशहरावी की खुशनसीबी थी कि दुश्वारियों के दौर में भी परिवार ने उन्हें पढ़ने-लिखने का मौका दिया। बीच-बीच में हिंसा की वजह से स्कूल बंद हो जाते थे, लेकिन सीजफायर होते ही मज्द इस्माइल अलमशहरावी को स्कूल जाने का मौका मिल जाता। उन्हें किताबों से बड़ा प्यार था। हालांकि कई लोगों ने आपत्ति की कि इतना पढ़कर क्या करोगी, पर परिवार ने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया। उन्होंने इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ गजा से सिविल इंजीनिर्यंरग में डिग्री हासिल की। कॉलेज में लड़के ज्यादा थे। लड़कियां तो बस गिनती की थीं। कई लोगों ने उनकी हंसी उड़ाई। मगर मज्द इस्माइल अलमशहरावी ने इन तमाम बातों को नजरंदाज किया।

नाउम्मीदी को किया खत्म

इस बीच हिंसा की वजह से गजा के लोगों की जिंदगी ठप सी पड़ गई। लोग बिजली और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे थे। रोजगार और शिक्षा के हालात भी बदतर थे। युवाओं में कुंठा चरम पर थी। मज्द इस्माइल अलमशहरावी लोगों में पनप रही नाउम्मीदी को खत्म करने को बेताब थीं। पढ़ाई के दौरान उन्होंने देश-दुनिया में हो रही घटनाओं को बारीकी से समझने की कोशिश की, ताकि कुछ समाधान खोजा जा सके। मज्द इस्माइल अलमशहरावी कहती हैं, हमने अंधेरे का दंश सहा है। हजारों लोगों को बिजली नसीब नहीं थी। लोग शरणार्थी शिविरों में जिंदगी गुजारने को मजबूर थे। मैं हालात बदलना चाहती थी, पर नहीं जानती थी कि यह सब कैसे होगा?

साल 2014 में भड़की हिंसा ने एक बार फिर गजा में तबाही मचा दी। मज्द इस्माइल अलमशहरावी ने बमबारी में तमाम मकानों को ढहते हुए देखा। अपनों को खोने के बाद लोगों का रोना-चीखना भी सुना। लोग टेंट में जीने को मजबूर थे। रात के समय कई मोहल्ले तो कब्रिस्तान जैसे नजर आते थे। मज्द इस्माइल अलमशहरावी एक रात सड़क पर चुपचाप चली जा रही थीं। चारों तरफ अंधेरा था। खंडहर बन चुके मकानों को देखा, तो मन में ख्याल आया कि क्यों न इन ध्वस्त मकानों को दोबारा बनाया जाए। इस काम के लिए उन्होंने कुछ पढ़े-लिखे युवाओं की टीम बनाई। मज्द इस्माइल अलमशहरावी बताती हैं, मैंने बेघर लोगों को खुले आसमान के नीचे सोते देखा। तब सोचा कि मैं इनके लिए क्या कर सकती हूं? हमारे पास सीमेंट और मौरंग नहीं थी। हमने छह महीने मेहनत की। कांच के पाउडर और मिट्टी से ईंट बनाने की कोशिश की। वह प्रयास बेकार गया। मगर राख और मलबे से ईंट बनाने का प्रयोग सफल हुआ।

चेहरे पर लौटी खुशी

साल 2015 में उन्होंने ग्रीनकेक नाम की संस्था बनाई और राख व मलबे से ईंट बनाने का काम शुरू कर दिया। मलबे से बनी ईंट काफी मजबूत थी और इसकी लागत भी कम थी। इलाके के लोगों ने उनका साथ दिया। बड़ी मात्रा में मलबा जमा किया गया और लाखों नई ईंटें बनाई गईं। तमाम नए मकान बनने लगे। पूरे गजा इलाके में यह प्रयोग चल पड़ा। मज्द इस्माइल अलमशहरावी कहती हैं, मैं इन ईंटों को ग्रीन केक कहती हूं, क्योंकि इनसे प्रदूषण नहीं होता है। इसकी वजह से तमाम लोगों को रोजगार मिला। लोगों के चेहरे पर खुशी देखने को मिली।

मकान के बाद अंधेरा वहां की बड़ी दिक्कत थी। तमाम घरों में बिजली नहीं थी। जहां बिजली के कनेक्शन थे भी, तो वहां दिन भर में मुश्किल से तीन घंटे ही बिजली आती थी। मज्द इस्माइल अलमशहरावी अंधेरी गलियों में रोशनी बिखेरने को बेताब थीं। अपनी टीम के लोगों से बात की। बिजली पैदा करना तो उनके बस में नहीं था, इसलिए सौर ऊर्जा का आइडिया आया। 2017 में उन्होंने इस दिशा में काम शुरू किया। सोलर लाइट तैयार करने के लिए कच्चा माल नहीं था। प्रोफेशनल्स से बात की, तो सुझाव मिला कि कच्चा माल चीन से मंगवाया जा सकता है। उन्होंने सोलरबॉक्स नाम की कंपनी बनाई और काम शुरू कर दिया। चीन से सामान मंगवाकर गजा की जरूरत के हिसाब से सोलर लाइट तैयार की गई। यह प्रयोग बेहद कामयाब रहा। शुरुआत 15 परिवारों से की गई। बाद में शरणार्थी शिविरों में भी सोलर लाइट पहुंचाई गई।

मज्द इस्माइल अलमशहरावी कहती हैं, सोलर किट महंगी थी, इसलिए हमने तीन घरों में एक किट देने का तरीका निकाला। हमने लोगों को समझाया कि वे मिल-बांटकर बिजली का इस्तेमाल करें। यह देखकर अच्छा लगता है कि गजा में अब लोगों की जिंदगी बदल रही है। साल 2018 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ क्रिएटिव बिजनेस वुमेन का खिताब मिला। मज्द इस्माइल अलमशहरावी कहती हैं, हमारी कोशिशों की वजह से गजा में महिलाओं के प्रति नजरिया बदला है। हम लोगों को यही समझाना चाहते हैं कि शिक्षा के जरिए आप तमाम मुश्किलों को आसान बना सकते हैं। उम्मीद बनाए रखिए, हालात बदलेंगे।

सभार हिंदुस्तान, प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी