गीतकार जावेद को पत्रकार ने लगाई फटकार, कहा ‘कल को कहेंगे शराब पीकर और सूअर खा कर भी ईमान पर क़ायम हैं’

नई दिल्लीः मशहूर गीतकार और पूर्व राज्यसभा सांसद जावेद अख़्तर अपने विवादित ट्वीट के कारण विवादों में घिर गए हैं। बता दें कि जावेद ने हाल ही मे एक ट्वीट करके लाउडस्पीकर पर अज़ान बैन करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि एक वक्त तक मौलाना लाउडस्पीकर को हराम बताते रहे लेकिन अब अज़ान लाउडस्पीकर पर देते हैं। लाउडस्पीकर पर अज़ान बंद होनी चाहिए।

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उनके इस ट्वीट पर युवा पत्रकार ज़ैग़म मुर्तज़ा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि जावेद अख़्तर के बयान पर ज़्यादा चिल्ल्ल पौं न करें। उनको सीरियस लेकर जितना आप विरोध करेंगे, आप उनकी आमदनी में इतना ही इज़ाफा करेंगे। आपकी जानकारी के लिए स्किल इंडिया कार्यक्रम के तहत उनकी पत्नी की एनजीओ को सरकारी भुगतान की ताज़ा किस्त हाल ही में मिली है।

ज़ैग़म ने बताया कि इसके अलावा खुद जावेद साहब कई सरकारी संस्थानों में फिल्म मेकिंग और प्रोडक्शन की क्लास ले रहे हैं इन कई का भुगतान अभी बाक़ी है। और हां, मिजवान वेलफेयर सोसायटी के बैनर तले 2011 और 2012 के शबाना आज़मी के फैशन शो की सीएजी ऑडिट का मसला अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। समझ लीजिए, जब तक उनके पास एक भी सरकारी प्रोजेक्ट है या सरकारी भुगतान समय से मिल रहा है वो कहेंगे कि मै अकेला मुसलमान हूं जो शराब पीकर और सूअर खा कर भी ईमान पर क़ायम हूं.

युवा पत्रकार ने कहा कि अगर उनका भुगतान अटक जाएगा या सरकारी प्रोजेक्ट नहीं रहेगा तो इस्लाम… सॉरी… उनका सेकुलरिज्म ख़तरे में आ जाएगा। इसलिए आप अपना ईमान उन पर ज़ाया न करें। किसी को भी फालतू फुटेज देने से पहले बैकग्राउंड चेक ज़रूर कर लिया करें। किसी की हराम कमाई का ज़रिया बनकर उनके गुनाह में हिस्सेदार न बनें।

ज़ैग़म ने लिखा कि लाउडस्पीकर और डीजे मानव इतिहास की सबसे वाहियात वैज्ञानिक खोज हैं। इन्होंने गले की शीरी, दिमाग़ के सुकून और इबादत की ख़ूबसूरती का क़त्ल कर दिया है। इस से भी ज़्यादा एक दूसरे को सुनाने की होड़, अपनी आवाज़ ज़्यादा बुलंद रखने की ज़िद और मज़हब में चिल्लर चिंटुओं के दख़ल ने मज़हब को रूहानी से मशीनी में तब्दील कर दिया है। आपकी बात में तर्क है या आप सही बात कर रहे हैं तो उसके लिए चिल्लाना नहीं पड़ता। शाइस्तागी क़ायम रहनी चाहिए।

उन्होंने लिखा कि ऊंची आवाज़ में मंदिर के माइक पर बजने वाले फिल्मी भजन, टीटू एंड पार्टी टाईप अंग्रेज़ी धुन वाले जगराते, कांवरियों के दिल दहलाने वाली आवाज़ के साथ बजते डीजे, आमने सामने दो घरों में एक साथ लाउडस्पीकर पर होने वाली अलग अलग मजलिस और मिलाद, बारह वफात के जुलूस के भोंपू, रमज़ान में एक गली में ख़बरदार करते 4 अलग अलग ख़लीफा, एक ही गांव या मुहल्ले के 5 मस्जिद में 1-1 2-2, मिनट के फासले से शुरू हुई आपस में ही टकराती अज़ान की आवाज़ें मज़हब का बुनियादी उसूल नहीं इंसान का बिना फ़िज़ूल ड्रामा हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में ये धर्म से ज़्यादा जिहालत का नतीजा है।

ज़ैग़म ने लिखा कि यूरोप में ऐसे हरकतें नहीं होती, यहां तक कि सभ्य इस्लामी देशों में भी। मिस्र के तमाम शहरों में सेंट्रलाइज़ृड अज़ान होती है। यानि पूरे शहर में जगह जगह चौराहों पर लगे स्पीकर एक ही मस्जिद से जुड़े हैं एक मुल्ला जी अज़ान देते हैं और सभी फिरक़े उसे मान लेते हैं। ईरान और मध्य एशिया के तमाम मुल्कों में मस्जिद में स्पीकर हैं लेकिन छत पर लाउडस्पीकर नहीं है। कतर, तुर्की में भी सेंट्रलाइज्ड अज़ान अपनाई जा रही है या फिर भोंपू की जगह सौम्य, सभ्य स्पीकर ले रहे हैं। ये क्रांति भारत में आने में अभी कई बरस लगेंगे क्योंकि हमारी जिहालत का स्तर थोड़ा ऊंचा है और हमें नीची आवाज़ दुश्मन की भी पसंद नहीं.