लव जिहाद’ लॉ पर गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि जब तक ये साबित नहीं हो जाता कि लड़की को लालच देकर फंसाया गया है, तब तक किसी व्यक्ति के खिलाफ लव जेहाद कानून के तहत FIR दर्ज नहीं की जा सकती. संविधान की रक्षा के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की संघर्ष जारी: मौलाना महमूद असद मदनी

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने लव जिहाद कानून (Love Jihad Law) पर राहत की उम्मीद लगाए गुजरात सरकार (Gujarat Government) को बड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और कहा है कि वह हाई कोर्ट के फैसले में दखल नहीं दे सकता. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले का परीक्षण करने का फैसला किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि जब तक ये साबित नहीं हो जाता कि लड़की को लालच देकर फंसाया गया है, तब तक किसी व्यक्ति के खिलाफ लव जेहाद कानून के तहत FIR दर्ज नहीं की जा सकती.


दरअसल, पिछले साल अगस्त में “लव जिहाद” विरोधी कानून को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने लव जिहाद कानून की कुछ धाराओं को लागू करने से रोक दिया था. हाईकोर्ट ने ये फैसला जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनाया था. जमीयत ने इस कानून पर रोक लगाने की मांग की थी. गुजरात सरकार ने 15 जून 2021 को कथित लव जिहाद को रोकने के लिए ‘गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021’ लागू किया था.

गुजरात हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि इस कानून के प्रावधान उन पर लागू नहीं हो सकते हैं जिन्होंने अंतर-धार्मिक विवाह में बल या धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं दिखाया. कोर्ट ने कहा था कि जब तक ये साबित नहीं हो जाता कि लड़की को लालच देकर फंसाया गया है, तब तक किसी व्यक्ति के खिलाफ FIR दर्ज न की जाए.

अदालत ने ये भी फैसला सुनाया था कि वयस्कों के बीच स्वतंत्र सहमति और प्रलोभन या धोखाधड़ी के बिना अंतर-धार्मिक विवाह को “गैरकानूनी रूपांतरण के उद्देश्य से विवाह नहीं कहा जा सकता.” अदालत ने एक याचिका के जवाब में अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें 2021 के संशोधन को चुनौती दी गई थी.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने आज अदालत के फैसले पर कहा कि असली लड़ाई संविधान में निहित व्यक्तिगत और धार्मिक स्वतंत्रता के अस्तित्व की है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के संविधान में हर व्यक्ति को अपने धर्म और आस्था के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन हाल ही में कुछ राज्य सरकारों ने इसे ख़त्म करने की कोशिश की है, जिसे हरगिज़ नहीं होने दिया जाएगा