कृष्णकांत
भारत आजाद हो गया था. लेकिन आजादी के बावजूद भारत ऐसा देश था जिसे खाने के लाले पड़ते थे. 1965-66 अकाल पड़ा तो भारत को एक करोड़ टन से ज्यादा अनाज का आयात करना पड़ा था. लेकिन 80 के दशक तक भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया. इतिहासकार बिपिनचंद्र लिखते हैं, हरित क्रांति की सफलता ने भारत की भिखमंगे की छवि समाप्त कर दी. यह चमत्कार कैसे हुआ? आज कई दशक से भारत के अनाज भंडार भरे रहते हैं. हरित क्रांति की बात आत्मनिर्भर शब्द के बगैर पूरी नहीं होती. खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर कैसे बना?
नेहरू के पहले कार्यकाल से ही भारत में कृषि को आधुनिक बनाने के उपक्रम शुरू हुए. वैज्ञानिक और तकनीकी आधार मजबूत करने एवं संस्थागत सुधारों पर खास ध्यान दिया गया. सिंचाई परियोजनाएं, उर्जा परियोजनाएं, भाखड़ा जैसे बांध, कई कृषि विश्वविद्यालय, शोध प्रयोगशालाएं, कृषि संस्थान, खाद कारखाने, संयंत्र आदि की स्थापना की गई, जिन्हें नेहरू ने ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहा था.
इसी दौरान भूमि सुधार कार्यक्रम लागू किए गए. तीसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान नई कृषि रणनीति लागू हुई, जिसके लिए 15 जिले चुने गए. जीएस भल्ला के अनुसार, हरित क्रांति नेहरू के काल में नहीं हुई, लेकिन इसकी नींव नेहरू के काल में ही रख दी गई थी.
इंदिरा गांधी के कार्यकाल तक खाद्यान्न के लिए भारत अमेरिका और अन्य देशों पर निर्भर था. अमेरिका की कोशिश थी कि अनाज देने के बदले भूखे भारत को अपने इशारे पर नचाया जाए. लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ. न शास्त्री जी झुके, न इंदिरा गांधी झुकीं. दो युद्धों और दो अकाल के संकट के बीच शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया जिसे आक्रामकता से आगे बढ़ाया गया.
इंदिरा के कार्यकाल में उन्नत किस्म के बीज, कीटनाशक, खाद, ट्रैक्टर, इंजन, पंप, दवाएं, कृषि मशीनरी, कृषि शिक्षा कार्यक्रम इत्यादि पर काफी जोर दिया गया. कृषि में सरकारी निवेश तीन साल में ही बढ़ाकर दोगुना कर दिया गया. ये कार्यक्रम इतने तेज थे कि 1960 से लेकर 1971 के बीच पंपसेटों की संख्या 4 लाख से बढ़कर 24 लाख हो गई.
1967 से लेकर 1971 के बीच भारत के अनाज उत्पादन में 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. 1987-88 अकाल पड़ा, तब भारत ने बिना किसी विदेशी मदद के अकाल का सामना किया. 1967 से लेकर 1990 के बीच भारत में प्रति एकड़ उत्पादन में करीब 80 फीसदी की वृद्धि हुई. तीन से साढ़े तीन दशक में ऐसी स्थिति बन गई कि अब भारत को किसी से अनाज नहीं मांगना था.
यह चमत्कार इसी देश के किसानों ने किया था, लेकिन उसके लिए स्पष्ट नीतियां और कार्यक्रम बनाये गए थे. जब घर में आग लगी हो तो कुआं नहीं खोदते. पानी का इंतज़ाम करते हैं. महामारी के समय आत्मनिर्भरता का ज्ञान, आग लगते ही कुआं खोदने का उपक्रम करने जैसा है. कोई बताए कि आत्मनिर्भरता के भाषण के साथ कौन सा ऐसा कार्यक्रम घोषित हुआ और किस क्षेत्र में? जबानी सुर्रा छोड़ने से कुछ होने लगे तब तो मैं अकेले दुनिया पलट दूं, लेकिन उससे कुछ होता नहीं.
(लेखक युवा पत्रकार एंव कहानीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)