शैलेश अस्थाना
वाराणसीः सुर साम्राज्ञी लता दी का बनारस से गहरा रिश्ता था, वह अपने जीवन काल में एक ही बार बनारस आ सकी थीं लेकिन फिर यहां आने का उनका बहुत सपना था, जो पूरा न हो सका। लता दी को बनारसी साड़ियां बहुत पसंद थीं, वह यहां के साड़ी निर्माता व व्यवसायी सगे भाइयों अरमान व रिज़वान के यहां की बनी साड़ियां ही पहनती थीं, इस बीच उनके परिवार से ऐसा खास रिश्ता बन गया कि दोनों भाई उन्हें मां ही कहते थे और वे भी उन्हें अपना बेटा मानती थीं, अक्सर पूरे परिवार से उनकी बातचीत होती थी, और तीज-त्योहारों पर वह उन्हें व उनके परिवार के लोगों को कपड़े-उपहार भेजती रहती थीं। अभी उनके स्वास्थ्य के लिए अरमान ने बीती 20 जनवरी को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में उनके नाम से बाबा का अभिषेक भी करवाया था। उनके निधन की खबर सुनकर पूरा परिवार शोकाकुल है, सुबह से ही लोगों का फोन उनके यहां आ रहे हैं।
अरमान बताते हैं लता दी से उनका संपर्क वर्ष 2015 की मई में हुआ, जब उनके व्यक्तिगत सहायक महेश राठौर उनके परिवार के अन्य सदस्यों और भाई हृदय मंगेशकर के साथ काशी यात्रा पर आए थे। तब लता दी के लिए साड़ियां खरीदने के लिए वह गौरीगंज स्थित उनकी दुकान पर पहुंचे। उसी समय उनकी पसंद जानने के लिए अरमान से मोबाइल फोन से लता दी से बात कराए। बातचीत के क्रम में लता दी ने उन्हें साड़ियां लेकर मुंबई आने को कहा। एक माह बाद वह साड़ियां लेकर मुंबई स्थित उनके घर प्रभुकुंज अपार्टमेंट पहुंच गए। बताते हैं कि बातचीत के दौरान उन्हें लता दी के स्नेह में मां की छवि और सरलता नजर आई और भावावेश में उन्हें मां बोल दिया। फिर तो मां-बेटे का यह रिश्ता स्थायी बन गया। लगभग हर महीने और कभी-कभी हफ्ते में उनसे बात हो जाया करती थी, साल में तीन-चार बार मुंबई जाने पर उनसे मुलाकात कर आशीर्वाद लेना अरमान और रिज़वान की दिनचर्या बन गई। पूरा परिवार उनके स्नेह की छाया प्राप्त करने लगा। ईद-बकरीद हो या होली-दीवाली, या फिर घर में बेटे बेलाल या बेटी बुशरा का जन्मदिन लता दी उनके लिए उपहार जरूर भेजतीं। अजमेर के ख्वाजा का तवर्रुख रखी रहती थीं, जब भी वे मुंबई जाते, उन्हें जरूर खिलाती थीं। रिज़वान की मां, दोनों भाइयों की बेगमों को अपनी बहू मानती थीं और बातचीत में उनके बेटों-बेटियों को अपने पोते-पोतियां। ऐसी बहुत सी पारिवारिक बातचीत की क्लिप उनके मोबाइल फोन में आज भी सुरक्षित है।
लता दी के दिए चेकों को भुनाया नहीं, सभी रखे हैं सुरक्षित
अरमान और रिज़वान लता दी को इन सात वर्षां में लगभग 100 साड़ियां भेज चुके हैं। इन साड़ियों में से कुछ वे स्वयं के लिए मंगवाती थीं तो कुछ दूसरों को उपहार स्वरूप देने के लिए। इनके बदले लता दी के दिए गए चेकों को दोनों भाइयों ने भुनाया नहीं, बल्कि लेमिनेशन कराकर उनकी निशानी मान सुरक्षित रख लिया है। अरमान की पत्नी ने उनकी दी हुई घड़ी को बकायदा उसी तरह केस में सुरक्षित ही रखा है अब तक, जबकि अरमान खुद को मिली घड़ी लगाते हैं।
कई बार किया काशी चलने का आग्रह, मगर पूरा न हो सका सपना
अरमान बताते हैं कि लता मां से कई बार काशी चलने का आग्रह किया, वह भी चाहती थीं मगर अपने स्वास्थ्य को देखते हुए वह काशी न आ सकीं। बोलीं, व्हील चेयर पर बैठकर जाना उन्हें पसंद नहीं।
एक जनवरी को हुई थी आखिरी बातचीत
अरमान की लता दी से नववर्ष के दिन आखिरी बात हुई थी, तब भी उनकी तबीयत खराब थी। अरमान ने उन्हें नववर्ष की शुभकामना देने के लिए फोन किया था, उन्होंने भी पूरे परिवार को शुभकामना दी। स्वास्थ्य के बारे में पूछने पर बताया कि ठीक नहीं है, लेकिन अब पहले से सुधार है।
20 जनवरी को अरमान ने कराया बाबा का अभिषेक
लता दी के स्वास्थ्य की कामना से अरमान ने बीते 20 जनवरी को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में उनके असली नाम हृदया मंगेशकर के नाम से बाबा का अभिषेक कराया था। उनके पीए महेश राठौर ने अभिषेक के लिए सुर साम्राज्ञी का वास्तविक नाम हृदया मंगेशकर और गोत्र कश्यप लिखकर भेजा था।
कल हुई बात तो महेश ने कहा, सब ठीक है
अरमान रूंधे गले से बताते हैं कि कल जब मां के स्वास्थ्य का समाचार सुन महेश भाई को फोन लगाया तो उन्हाेंने बताया कि हां, वेंटीलेटर पर हैं लेकिन घबराने की कोई बात नहीं, सब ठीक है।
कोविड प्रोटोकाल के कारण नहीं जा सके अंतिम संस्कार में
सुबह सुर साम्राज्ञी के निधन का समाचार सुनते ही अरमान ने मुंबई जाकर अंतिम दर्शन की योजना बना ली। उनके व्यक्तिगत सहायक महेश राठौर से बात हुई तो उन्होंने कहा कि कोविड प्रोटोकाल के कारण बहुत की कम संख्या में लोगों के शामिल होने की योजना बनाई गई है, शाम को 4.30 बजे अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा, इसलिए आपके आने का कोई फायदा नहीं है। अब अरमान अपने घर पर ही परिवार के साथ रात में एशा की नमाज के बाद उनकी रूह की मगफिरत के लिए दुआख्वानी करेंगे। सोमवार को परिवार के साथ फातिहा पढ़ेंगे।
सभार जागरण