‘लैला’ पर होना चाहिए ‘तांडव’ जिसमें भारतीय संविधान को मिटाकर आर्यव्रत की स्थापना की गई है

उदय राम चे

पिछले दिनों नेट फ्लिक्स पर एक वेब सीरीज लैला आयी। ये सीरीज प्रयाग अकबर की किताब लैला पर बनी है। ये फ़िल्म हिन्दू राष्ट्र की सत्ता को दर्शाती फ़िल्म है। भारत जिसका नाम अब भारत से बदलकर आर्यावर्त हो गया है। जैसे इलाहाबाद से प्रयागराज हो गया। वैसे ही भारत नाम इतिहास की काली गहरी खाइयो में दफना दिया गया है। आर्यावर्त जिसमें हिंदुत्व की सत्ता कायम हो चुकी है। जिसका संविधान अब धार्मिक है। लोकतंत्र खत्म हो चुका है और मनु स्मृति का कानून लागू हो चुका है। एक ऐसी क्रूर सत्ता जिसमें हिन्दुओं से अलग दूसरे धर्मों को कोई सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक अधिकार प्राप्त नही है। उनकी जिंदगी दोयम दर्जे की बना दी गई है। लेकिन क्या हिन्दू धर्म जो जातियों में बंटा हुआ धर्म है, क्या इस आर्यावर्त में सभी जातियों को बराबर अधिकार दिए गए है?

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लेकिन ऐसी समानता की बात सोचना भी आर्यावर्त के सविधान में देश द्रोह के अपराध में आता है। आर्यावर्त में दलितों व महिलाओ के हालात भी अल्पसंख्यको के बराबर ही है। आर्यावर्त में अंतरजातीय, अंतरधार्मिक विवाह गैरकानूनी बना दिये गए है, लड़की का सम्पति में अधिकार मांगना गैरकानूनी हो गया है। ऐसी महिला अपराधियो की शुद्धि के लिए आर्यावर्त में डिटेंशन सेंटर बनाये गए है। अगर वहाँ भी कोई महिला शुद्धि की परीक्षा पास करने में विफल हो जाती है तो उसको श्रम आवास में भेज दिया जाता है। श्रम आवास जो महिलाओं से अमीरों के घरों, प्राइवेट अस्पताल, शॉपिंग मॉल में काम करवाता है। इस काम के बदले महिला कैदियों को सिर्फ रोटी दी जाती है वो भी जानवरो जैसी लेकिन श्रम कारावास वाले काम के बदले पूरा पैसा पूंजीपतियों से लेते है।

प्रगतिशील बुद्विजीवियों, कलाकारो, पत्रकारों, लेखकों, रंगकर्मियों को आर्यवृत द्रोही समझा जाता है। ऐसे देश द्रोही अपराधियो को सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने की सजा धार्मिक भीड़ सार्वजनिक मौत के तौर पर देती है। भीड़ ऐसी हत्याओं के बाद जंगली जानवरों की तरह हुंवा-हुंवा कर खुशियां मनाती है। प्रगतिशील संगीत व फ़िल्म, ये आर्यावर्त की संस्कृति के खिलाफ है इसलिए देखना, दिखाना सत्ता के खिलाफ बगावत माना जाता है। मजदूर वर्ग को गन्दी बस्तियों में धकेल दिया गया है। ऐसी बस्तियों में जहां कूड़े के पहाड़ आसमान छू रहे है। अंतर जातीय व अंतरधार्मिक दम्पति से हुए बच्चों को मिश्रित बच्चे की संज्ञा दी गयी है। ऐसे बच्चों को बेचने का एक पूरा गिरोह पनप गया है। गिरोह ऐसे बच्चों को पिंजरे में कैद करके रखता है।

लैला का डर

लैला फ़िल्म देख कर मेरे डर के मारे रोंगटे खड़े हो गए है। क्या हमारे बच्चों को, हमारी आने वाली नश्लो को ऐसा क्रूर मुल्क देखना पड़ेगा? क्या हमारी आने वाली नस्लें गुलाम बन जाएंगी, उनको पिंजड़ों में कैद करके रखा जाएगा या जानवरो की तरह जंजीरों में जकड़ कर रखा जाएगा? क्या उनसे सिर्फ रोटी की कीमत पर काम करवाया जाएगा? रोटी भी सिर्फ इसलिए ताकि वो मालिको की सेवा करने के लिए जिंदा रह सके। वो जिंदा रह सके मालिको के खेत व फैक्ट्रियों में खटने के लिए, सच में ऐसे मुल्क की कल्पना करके डर के मारे शरीर कपकँपा रहा है।  क्या लैला फ़िल्म को सिर्फ एक कल्पना या बुरा सपना मान कर नजरअंदाज किया जा सकता है? अगर ये कल्पना नही सच है तो क्या इसी आर्यावर्त के लिए हमारे पुरखो ने जालिम राजाओ से, जागीरदारों से, अंग्रेजो से लड़ते हुए कुर्बानियां दी थी? क्या इसी आर्यवृत के लिए भगत सिंह व उसके कॉमरेड्स  साम्राज्यवाद, सामंतवाद से लड़ते हुए शहीद हुए थे? अगर सिर्फ कल्पना होती लैला फ़िल्म की कहानी तो कोई बात नही थी। लेकिन जब हम वर्तमान की फासीवादी सत्ता के फैसलो को देखते है, जब इन फैसलो का मूल्यांकन करते है तो हम हमारे मुल्क को अंधेरे की तरफ जाते हुए देखते है, आर्यावर्त की क्रूर सत्ता की तरफ जाते हुए देखते है। मुल्क का भविष्य लैला फ़िल्म में दिखाई आर्यावर्त की सत्ता से कई गुणा ज्यादा क्रूर होने जा रहा है।

वर्तमान की हमारी सत्ता जो लोकतंत्र के सवैधानिक ढांचे से चुन कर आई है। लेकिन वो हमारे सविधान को धीरे-धीरे लोकतांत्रिक सविधान से मनुस्मृति के सविधान में बदल रही है। आर्यावर्त में मनु महाराज का सविधान हजारो साल पुराना न होकर आधुनिक रंग-रूप में लागू किया जायेगा। हिन्दू सत्ता की बात जरूर की जाएगी। लेकिन वो धर्म के लिबास में लिपटी कार्पोरेट सत्ता होगी। आवाम को कार्पोरेट का गुलाम और मुल्क के जल-जंगल-जमीन पर कार्पोरेट के कब्जे के लिए धार्मिक सत्ता का इस्तेमाल किया जाएगा। हमसे पहले भी साम्राज्यवादी पूंजी बहुत से मुस्लिम मुल्कों में ये फार्मूला सफलता से लागू कर चुकी है। हमारे मुल्क भारत को भी आर्यावर्त बनाने में साम्राज्यवादी ताकते हमारी सत्ता की पीठ पर खड़ी है।

अब 2021 चल रहा है। फिल्मकार ने आर्यावर्त सत्ता की कल्पना 2048 में की है। फिल्मकार 27 साल बाद ऐसी सत्ता की कल्पना कर रहा है। आज शायद आप सबको भी लैला की कहानी कल्पना लग सकती है। आप ऐसी धार्मिक सत्ता के क्रूर शासन की कल्पना को सीरे से नकार सकते हो। आप इस फ़िल्म को बकवास कहकर खारिज कर सकते हो। आप मेरे इस डर को आमिर खान की पत्नी किरण राव के डर की तरह बकवास करार दे सकते हो। लेकिन वर्तमान की फासीवादी सत्ता के फैसले आर्यावर्त का ढांचा बना चुके है। बस अब इस ढांचे में दरवाजे, पलस्तर, डेकोरेशन, करना बाकी है। मुल्क का बहुमत आवाम गुलामी के बेड़ियों से कुछ कदम की दूरी पर ही खड़ा है। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (NRC) जिसके तहत धीरे-धीरे बहुमत मुस्लिमो को नागरिकता से बाहर किया जाएगा। उसके बाद नागरिकता से बाहर हुए मुस्लिमों को डिटेंशन सेंटरों में भेजा जाएगा। ये डिटेंशन सेंटर ही लैला फ़िल्म के श्रम कारावास केंद्र है। जहां ऐसे लोगो से सिर्फ रोटी की कीमत पर फैक्ट्रियों व खेती में काम करवाया जाएगा। सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) जो NRC का ही हिस्सा है। NRC में जगह न बना सके मुस्लिमों को CAA  के तहत मुस्लिमो को नागरिकता ही  नही दी जाएगी।

लव जिहाद कानून

लव जिहाद कानून जिसके तहत अंतरधार्मिक शादी पर बैन किया गया है। अंतरधार्मिक व अंतरजातीय शादियों से धर्म व जात की रूढ़िवादी बेड़िया टूटती है। ऐसी शादियों से धर्मो व जातियों में व्याप्त भेदभाव का खात्मा होता है। ऐसी शादियों से मानव एकता मजबूत होती है। मानव एकता मजबूत होने से लुटेरी कौम डरती है। इस मानव एकता को रोकने के लिए ही वर्तमान सत्ता ने लव जिहाद कानून बनाया है। लव जिहाद का सबसे ज्यादा शिकार मुस्लिम ही बनने वाले है।

श्रम कानूनों में बदलाव

श्रम कानूनों में बदलाव जिसके अनुसार अब उद्योग मालिक मजदूर से आठ घण्टे की बजाए बारह घण्टे काम करवा सकता है। चौदह साल से कम उम्र के बच्चे भी अपने माँ-बाप के साथ उधोग में काम कर सकते है। मतलब सीधा है बाल श्रम को मोदी सरकार कानूनी वैधता दे चुकी है। मन की बात में महान मोदी बाल श्रम की वैधता पर बात कर चुके है।

तीन कृषि कानून

तीन कृषि कानून जिसको वर्तमान सत्ता अपनी महान उपलब्धी बता रही है। ये कृषि कानून बहुमत आवाम को गुलामी की तरफ ले जाएंगे। सत्ता द्वारा लुटेरे पूंजीपति को नमक के भाव सार्वजनिक उपक्रम, जल, जंगल, पहाड़ बेचने के बाद अब सबसे आखिरी में बची हुई खेती की जमीन व जमीन से पैदा हुआ खाद्दान्न जो मुल्क के बहुमत तबके की जीवन रेखा है इसको भी कार्पोरेट के हवाले करने के लिए ये तीन कानून सत्ता लेकर आई है। गाय-गोबर के नाम पर हत्याएं, धार्मिक पहचान के आधार पर हत्याएं, ऐसे पुलिस अफसरों की हत्याएं जो सविधान की रक्षा के लिए धर्म की सत्ता के खिलाफ आवाज थे उनकी हत्याएं आर्यावर्त के निर्माण में हो चुकी है।

खुली जेल में श्रम करते गुलाम

आर्यावर्त की सत्ता में बड़े-बड़े हजारो एकड़ के खेत होंगे। खेत के चारों तरफ मजबूत कटिंले तारों की मजबूत बाड़ होगी। खेत का मालिक जो लुटेरा पूंजीपति जो आर्यावर्त सत्ता का समान्नित नागरिक होगा जिसके खेत की अपनी सैनिक टुकड़ी होगी। ऐसे खेत में नागरिकता खो चुके या सजा पाए व्यक्तियों से गुलाम की तरह काम करवाया जाएगा। ऐसे ही फैक्ट्रियों में भी काम करवाया जाएगा। आर्यावर्त कि सत्ता में फैक्ट्रियों या खेत में मजदूर नही, गुलाम होंगे।

भविष्य का आर्यावर्त जिसका ढांचा बनकर तैयार हो चुका है। इस ढांचे को तैयार किया है मुल्क के बहुमत आवाम ने महान मोदी के अंधराष्ट्रवाद के नशे में चूर होकर। ऐसी क्रूर सत्ता के लिए मुल्क का बहुमत आवाम जिम्मेदार है जिसने धर्म-जाति के नशे में ऐसी क्रूर विचारधारा को सत्ता में बैठाया।

ऐतिहासिक किसान आन्दोलन

वर्तमान में चल रहा महान ऐतिहासिक किसान आंदोलन जिसमे मजदूर भी शामिल है चाहे मजदूरों की संख्या कम हो। मजदूर-किसान की इस सांझी एकता के इस आंदोलन ने जरूर आर्यावर्त के ढांचे को नुकसान पहुंचाया है। इस आन्दोलन ने भारत से आर्यावर्त की तरफ जा रहे मुल्क को ब्रेक डाउन करने का काम जरूर किया है लेकिन पूरी तरह रोक दिया हो ऐसा भी नही है। आर्यावर्त कि क्रूर धार्मिक तानशाही सत्ता को आने से रोकने के लिए वर्तमान की फासीवादी सत्ता के सभी जनविरोधी फैसलो CAA, NRC, श्रम कानून बदलाव, तीनो कृषि कानून, लाल डोरा मुक्त गांव, लव जिहाद, निजीकरण, उदारीकरण व ग्लोबलाइजेशन की सभी नीतियों के खिलाफ मजबूती से जन गोलबन्दी बनाकर ही आर्यावर्त की क्रूर सत्ता को आने से रोक सकते है।

(लेखक सोशल एक्टिविस्ट एंव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)