पिछले सात साल में हर चुनाव हार चुके जितिन प्रसाद का कद कितना बड़ा है? चर्चा है कि कांग्रेस अपने नेताओं को नहीं रोक पाती और उसके नेता पार्टी छोड़कर नुकसान कर जाते हैं। कांग्रेस को इन्हें रोकना भी क्यों चाहिए? यूपीए के दो कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रह चुके जितिन प्रसाद की राजनीतिक बिसात इतनी है कि हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में अपनी भाभी तक को चुनाव नहीं जिता सके। वे 2014 में लोकसभा चुनाव हारे और तब से लगातार हार रहे हैं। पहले लोकसभा में आप उन्हें वाकओवर दे सकते हैं कि मोदी लहर में वे नहीं टिक सके। लेकिन वे 2017 में विधानसभा भी हार गए। 2019 में वे फिर से लोकसभा चुनाव हारे और इतना बुरा हारे कि जमानत जब्त हो गई।
उन्हें हाल में बंगाल कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था। बंगाल चुनाव में कांग्रेस को उन्होंने कहां पहुंचाया है, ये आपने देखा ही। यूपी पंचायत चुनाव में जितिन की भाभी राधिका प्रसाद चुनाव नहीं जीत सकीं। अब कहा जा रहा है कि वे कांग्रेस में अपनी उपेक्षा से खफा थे। जैसे कि कांग्रेस उनसे अपेक्षा कर लेती तो वे सरकार बनवा देते! यही हाल मध्य प्रदेश में सिंधिया का था। अपनी खुद की लोकसभा सीट हारने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनना चाह रहे थे। उन्होंने कांग्रेस की सरकार गिरा दी, भाजपा में चले गए, लेकिन क्या भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया? सिंधिया कांग्रेस से एक असंभव डिमांड कर रहे थे। वह पार्टी बदलकर भी पूरी नहीं हुई। हां, आप ये कह सकते हैं कि सिंधिया की हालत जितिन प्रसाद के मुकाबले लाख गुना बेहतर है।
अब ऐसे लोगों को कांग्रेस मनाए और रोके भी तो इनका करे क्या? कांग्रेस के समर्थनविहीन नेता ही कांग्रेस की सबसे बड़ी मुसीबत हैं। पदलोलुपता में वे न तो अपनी जगह खाली कर रहे हैं, न ही कुछ कर पाने की हालत में हैं। कांग्रेस को उन सारे नेताओं से मुक्ति ले लेनी चाहिए जो सियासत में दगे कारतूस हो चुके हैं और पार्टी के लिए बाधा बन रहे हैं। कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी इसमें 50 कदम आगे है। वह जितना आक्रामक विपक्ष के साथ है, उतना ही पार्टी के भीतर भी है। जो बाधा है वह तुरंत बाहर हो जाता है। कांग्रेस उन्हें ढोती रहती है। अपनी पंचायत सीट न बचा पाने वाले जितिन के जाने से नुकसान कितना होगा, असली मसला ये नहीं है। असली संकट ये है कि कांग्रेस ऐसे लोगों को ढो रही है जो अपना भी भला नहीं कर पा रहे हैं। फिर वे पार्टी के लिए क्या करेंगे?
बाकी जितिन प्रसाद यूपी में कितने बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं, इसका अंदाजा इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि वे ब्राह्मण परिषद बनाकर भी न कांग्रेस को चर्चा में ला सके, न ब्राह्मणों का ही कोई भला कर सके और न ही खुद कोई चुनाव जीत सके। वे किस पार्टी में जाएं, ये उनका निजी फैसला है, लेकिन जितिन प्रसाद को आज मीडिया में उनकी बिसात से ज्यादा आंका जा रहा है।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)