नांदेड़ के हजूर साहिब से करीब 4100 सिख श्रद्धालु पंजाब लौटे और इनमें से 795 कोरोना पॉजिटिव पाए गए. इन श्रद्धालुओं को लॉकडाउन के दूसरे फेज में पंजाब लाया गया. ये केस मई के पहले हफ्ते में सामने आये. जब यह रिपोर्ट सामने आई तब तक 1800 की रिपोर्ट आनी बाकी थी. यह रिपोर्ट 4 मई की है.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने 6 मई को कहा कि कोरोना मामलों की संख्या और ज्यादा बढ़ेगी क्योंकि अगले 3-4 हफ्तों में करीब 20,000 अंतर्राष्ट्रीय और 12,000 घरेलू प्रवासियों के लौटने की उम्मीद है. जाहिर है कि ये सब भारत के नागरिक हैं और इन्हें अपराधी बताने का अधिकार किसी को नहीं है. आने जाने के प्रशासनिक मैनेजमेंट पर सवाल हो सकते हैं.
पिछले 48 दिनों से देश के लाखों लाख मजदूर शहरों से गांवों की ओर भाग रहे हैं. उनके लिए भी किसी ने जमात जैसा कुछ नहीं कहा, जो कि उचित भी है. फिर जमात और उसमें शामिल मुसलमान अपराधी या उससे बढ़कर भी कैसे हो गए?
मुजफ्फरपुर से बीजेपी सांसद अजय निषाद ने कहा है कि ‘जमात के सदस्यों से ‘आतंकवादियों’ की तरह निपटा जाना चाहिए’. क्यों? इसकी क्या वजह है? बीजेपी के नेता ऐसे ऐतिहासिक संकट के दौर में भी ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या इसलिए कि लोग नफरत के कारोबार में बिजी रहें और कोई सरकार की नाकामी एवं मरते हुए लोगों पर सवाल न पूछे?
बीजेपी की सियासत हिंदू मुस्लिम घृणा पर आधारित है, क्या सिर्फ इसलिए पूरे देश के नागरिकों को आपस में एक दूसरे से घृणा करनी चाहिए? जमात का कार्यक्रम जब हुआ था, उसके करीब दो हफ्ते बाद लॉकडाउन हुआ. पुलिस थाने के बगल में जमावड़ा था. लेकिन पुलिस प्रशासन पर सवाल न करके जमात पर सवाल हुआ. बाद में शुरुआती जांच में ही पुलिस ने कहा कि मौलाना साद के आडियो से छेड़छाड़ की गई थी. इसी आधार पर उन्हें राष्ट्रीय अपराधी घोषित कर दिया गया था.
भारत में मुसलमान भी अल्पसंख्यक हैं और सिख भी. फिर मुसलमान ही निशाना क्यों हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि वे सिखों की तरह मजबूत नहीं हैं? और अगर जमात ने इतना बड़ा अपराध किया था कि उसके लिए सारे जमातियों को आतंकी मान लिया जाए तो इसी दिल्ली में मौलाना साद पकड़े क्यों नहीं गए? क्या देश के 140 करोड़ लोग सच में इतने ही उल्लू हैं जितना बीजेपी समझती है? या लोग इनकी चालें समझ नहीं पा रहे हैं?
(लेखक युवा पत्रकार एंव कहानीकार हैं)