कृष्णकांत
महामारी की दस्तक से सहमी हमारी जनता ने भी रोटी और परिवहन मांगा था. उस समय सरकार ने कहा कि दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत देखो. हजारों ट्रेंनें और बसों के बेड़े खड़े रहे, लोग पैदल भागकर जान गंवाते रहे. अंतत: जनता ने या तो खुद अपनी जान बचाई या जान गवां दी.
सरकार ने पहले कहा ताली बजाओ, फिर कहा दिया जलाओ. फिर कहा अब घर में रहो, 21 दिन में सब ठीक हो जाएगा. फिर कहा कि अब इसी के साथ जीना पड़ेगा. अब तक 30 लाख से ज्यादा केस हो चुके हैं और 56 हजार से ज्यादा लोग जान गवां चुके हैं.
इस सर्कस में कई करोड़ की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए. कोरोना काल के पहले ही करीब पौने चार करोड़ लोग अपना रोजगार गवां चुके थे. वह महानतम सर्कस नोटबंदी का दूरगामी असर था. सोने पर सुहागा ये मुआ कोरोना आ गया.
तमाम रिपोर्ट हैं कि बेरोजगारी 45-50 साल के उच्चतम स्तर पर है. अर्थव्यवस्था 1951 की स्थिति में चली गई है. बेरोजगारी के साथ गरीबी और भुखमरी बढ़ रही है. देश के सभी कोर सेक्टर या तो डूबने की हालत में हैं या फिर मंदी से जूझ रहे हैं. कोरोना संकट के दौरान सैकड़ों लोग भूख से, पैदल चलकर मरे हैं. इन मुसीबतों के दौर में हमारे प्रधानमंत्री जी मोर को दाना चुना रहे हैं.