नई दिल्लीः धर्मांतरण पर जम्मू-कश्मीर से लेकर दिल्ली तक सियासत गरमाई हुई है। हिंदुवादी संगठन जहां इसे साजिश के तौर पर देख रहे हैं, वहीं अब इस मामले में वकील एंव पॉलिटिकल एक्टिविस्ट कवल प्रीत कौर ने इसे खारिज करते हुए कहा है कि यह निजी मामला है लेकिन नेता इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में लगे हैं। कवल प्रीत ने अपने सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी लिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण महिलाओं की सहमति और पसंद है। इस पूरे विवाद में महिलाओं की आवाज की घोर उपेक्षा की गई है। इसमें शामिल महिलाओं की सहमति जानने के लिए किसी ने कोई प्रयास नहीं किया।
कवल प्रीत ने लिखा कि 28 वर्षीय दलमीत कौर नाम की महिला ने अपने वीडियो में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने 2014 में एक कश्मीरी मुस्लिम शख्स से शादी की और 2012 में अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन किया। उसने वीडियो में उन धमकियों का भी उल्लेख किया है जो उसे मिली थीं। कवल प्रीत ने कहा कि उसका धर्म परिवर्तन और विवाह कानूनी है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए। वह अपने जीवन को जिस तरह से चाहती है उसे जीने के लिए उसे छोड़ दिया जाए है।
कोई विवरण भी तो पेश करें
All India Students’ Association (AISA) की उपाध्यक्ष ने कहा कि यदि किसी अन्य मामले में जबरन धर्म परिवर्तन का मामला हो, जिस पर सिख समुदाय के नेता बार-बार जोर दे रहे हैं तो महिला के बयान को ध्यान में रखा जाना चाहिए। अगर उसमें उसने कहा कि उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया, अपहरण किया गया और उस पर बंदूक तान दी गई तो आरोपी को गिरफ्तार किया जाना चाहिए क्योंकि यह हिंसा के बराबर है। हालाँकि, नेताओं द्वारा ऐसा कहीं भी कोई विवरण नहीं दिया गया है, सिवाय उस व्यक्ति के जो 60+ होने और जबरन धर्मांतरण के रैकेट के समान बयानबाजी के अलावा, कोई विवरण नहीं दिया गया, और 18 वर्षीय महिला की शादी आज समुदाय के नेताओं द्वारा एक सिख व्यक्ति से कर दी गई है! महिला से यह जानने का कोई प्रयास नहीं किया गया है कि वह क्या चाहती है और क्या वह पहले के विवाह या वर्तमान विवाह के लिए सहमत है।
कवल प्रीत ने कहा कि सिख समुदाय ने ऐतिहासिक रूप से जबरन धर्मांतरण के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और यहां तक कि धर्म की स्वतंत्रता के लिए शहादत भी दी है, इसलिए ये सिख समुदाय के नेता उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों की तरह “लव जिहाद” कानूनों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। ऐसा करके वे वे बड़े पैमाने पर समुदाय, महिलाओं और समाज के साथ अन्याय कर रहे हैं। ये कानून केवल अंतरधार्मिक विवाहों को अपराध घोषित करने और मुस्लिम पुरुषों को आतंकित करने के लिए हैं। इन कानूनों का जबरदस्ती धर्मांतरण को रोकने से कोई लेना-देना नहीं है। यह अंतर्धार्मिक विवाहों को अस्वीकार करने के लिए हैं।
बेतुकी है परिजनों की सहमति की मांग
कवल प्रीत कौर ने कहा कि विवाह में माता-पिता की सहमति लेने की मांग गलत और बेतुकी है। एक महिला अपने फैसले लेने के लिये खुद स्वतंत्र है। भारत का संविधान उसे अत्यंत गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीवन का अधिकार प्रदान करता है। व्यक्ति की जाति, वर्ग, लिंग और आस्था के बावजूद वह जिसके भी साथ रहना चाहती है उसे अपनी इच्छा से चुन सकती है। स्वयं महिला को छोड़कर किसी को भी विवाह में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। परिवार, समुदाय, राज्य हितधारक नहीं हैं और उन्हें कभी नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिखों और मुसलमानों की एकता बहुत आगे तक जानी है और जो नेता इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं- उनसे सावधान रहने की जरूरत है।