कश्मीर: मस्जिदों से आई आवाज़, आतंकवाद के डर से घर छोड़कर न जाएं ग़ैर मुस्लिम, मिलकर करेंगे आतंकवाद का मुक़ाबला

कश्मीर में गैर-मुसलमान दहशत में हैं, लेकिन उम्मीद की रोशनी भी दिख रही है। कश्मीर के गैर मुस्लिमों को सुरक्षा का भरोसा दिलाने के लिए जगह-जगह मुस्लिम समाज आगे आ रहा है और प्रदर्शन में हिस्सा ले रहा है। मुस्लिम आतंक के खिलाफ बोल रहे हैं। आतंकवाद के शिकार लोगों के परिजन का दुःख बांटने उनके घर जा रहे हैं। श्रीनगर की दो प्रमुख मस्जिदों ने मुस्लिमों से आगे आने और गैर-मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा करने की अपील की है।

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इमामों ने जुमा के ख़ुतबा (संदेश) में विशेष रूप से श्रीनगर के इलाके में गैर-मुस्लिमों के पड़ोसियों से उनकी रक्षा करने और कश्मीरी पंडितों से पलायन नहीं करने की गुजारिश की है। श्रीनगर के लाल चौक पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन भी हुआ। इसमें अलग-अलग इलाकों के मुस्लिमों ने हिस्सा लिया। इनमें खिलाड़ी, सरकारी कर्मचारी, वरिष्ठ नागरिक और अन्य लोग शामिल थे। सभी ने हत्याओं की कड़ी निंदा की और हत्याओं को आतंकवादियों द्वारा कश्मीर के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास करार दिया।

प्रदर्शनकारियों ने सभी गैर-मुस्लिमों से गुजारिश की है कि वे पलायन न करें। आतंकियों के मंसूबों को सफल न होने दें। कश्मीर के सरकारी कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन में से एक इजैक का प्रतिनिधि मंडल कश्मीरी पंडितों के इलाकों में जाकर लोगों को हिम्मत बंधा रहा है। कमेटी के अध्यक्ष रफीक राथर ने कहा कि ये हत्याएं हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने के खिलाफ हैं।

राथर ने कहा कि कश्मीरी पंडित और कश्मीरी मुस्लिम सैकड़ों सालों से मिलजुल कर रहे हैं। हमारे सांस्कृतिक मूल्य जीवित रहेंगे। हम इन्हें कट्टरपंथियों की गतिविधि का शिकार नहीं होंगे। बारामुला में कश्मीरी पंडितों से बात करते हुए प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि मुश्किल के इस वक्त में हम मुसलमानों के घर और दिल आपके लिए खुले हैं।

अब तक 28 लोगों ने गंवाई जान

कश्मीर में इस साल 28 लोगों की जान आतंकवादियों द्वारा ली गई है। इनमें बड़ी तादाद मुसलमानों की है। मृतकों में 21 मुस्लिम हैं, जबकि सात ग़ैर-मुस्लिम हैं। पिछले दिनों कश्मीर में सिख टीचर की आतंकवादियों द्वारा हत्या कर दी गई थी, जिसके ख़िलाफ लोगों का गुस्सा देखने को मिला था।