ऐसे नहीं चलेगा कि जब मन करे, आप फौजियों का पोस्टर लगाकर वोट मांग लें, जब मन करे देशद्रोही और खालिस्तानी कह दें। रिटायर्ड फौजी देविंदर सिंह पाकिस्तान सीमा पर कारगिल युद्ध लड़े थे, अब दिल्ली सीमा पर किसानों के लिए सफाई कर रहे हैं। जिन हाथों में कभी मातृभूमि के लिए बंदूक थी, उन हाथों में आज पितृभूमि की सुरक्षा के लिए झाड़ू है। देविंदर सिंह का बेटा उपेन्दर जीत भी फौज में है और असम में तैनात है। उनके दादा और ताऊ भी फौज में थे।
जिनकी तीन पीढियां सरहद की सुरक्षा में खप गईं, उन्हें देशभक्ति और देशद्रोह का सर्टिफिकेट देने वाला कौन माई का लाल पैदा हो गया है इस देश में? वो गधे कौन थे जो इन किसानों को खालिस्तानी बता रहे थे? जिनके नाम 90 साल में सिर्फ दंगा कराने का रिकॉर्ड है, वे फ़ौजियों को प्रमाणपत्र देंगे? जो स्टुडियो में सिर्फ जहर उगलने के लिए जाने जाते हैं वे बताएंगे कि फौजी कौन हैं? जिनके बेटे आज पाकिस्तान और चीन सीमाओं पर तैनात हैं, उनके लिए ऐसी भाषा आपको महंगी पड़ सकती है।
किसान आंदोलन में रिटायर्ड फौजी हैं जो कभी सरहद पर अपनी जान की बाजी लगा चुके हैं। वहां वे बीवियां हैं जिनके पति सीमा पर अब भी तैनात हैं। वहां झाड़ू लगा रहा कोई बुजुर्ग रिटायर्ड सैनिक है। वहां लंगर पका रही मां किसी सैनिक की मां और सैनिक की पत्नी है। वे सरहद पे खड़े होकर हमारी जमीन बचाते हैं, वे आज अपनी जमीन, अपनी रोटी और अपने बच्चों का भविष्य बचाने उतरे हैं।
इस किसान आंदोलन के बारे में जिन्होंने अनाप-शनाप बका है, उन्होंने देश के प्रति अपराध किया है। उन्होंने सिखों की निष्ठा और उनके त्याग का अपमान किया है। वे किसानों के साथ जवानों को भी बदनाम करने के अपराधी हैं। वे असली देशद्रोही हैं।
ये मुल्क यहां के हर एक नागरिक से बनता है। ये देश चंद लुच्चों की जागीर नहीं है। मैं सोचता हूं कि अगर इन रिटायर्ड सैनिकों की जगह मैं होता तो सरकार और मीडिया की प्रतिक्रिया मुझे किसी लगती? यकीनन इनका व्यवहार आत्मा पर चोट करने वाला है।