कानपुर: मुस्लिम समाज की पहल सफलता की ओर मस्जिदों में हुए 45 फीसदी निकाह, खर्च पर भी लगी लगाम

ईद के बाद से अब तक हुए कुल निकाह में 45 फीसदी से ज्यादा मस्जिदों में पढ़ाए गए हैं। खासतौर से सितंबर माह के बाद इसमें तेजी आई है। इसके लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और स्थानीय स्तर पर सुन्नी उलमा काउंसिल ने बड़े स्तर पर अभियान चलाया था। उलमा-ए-कराम इस नतीजे के बाद तहरीक की कामयाबी पर खुश हैं।

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आमतौर पर मुस्लिम समाज में अरबी माह मोहर्रम, चेहल्लुम और रमजान माह (मसलकी आधार पर अपवाद छोड़ कर) को छोड़ कर पूरे वर्ष शादियां होती हैं। केवल मौसम के पीक सर्दी, गर्मी और बरसात के दौरान शादियों की तादाद कुछ कम हो जाती है। पर सादगी से निकाह के चलते मौसमों का पीक भी अब बेअसर हो चला है। शादियां दिसंबर-जनवरी में भी बड़ी संख्या में हो रही हैं।

दिन में हो जाते हैं निकाह

मस्जिदों में दो तरह के निकाह हो रहे हैं। एक तो वह जो सादगी से शादी की तहरीक में शामिल हैं और दूसरे वह जिनके यहां शाम को समारोह का आयोजन हो रहा है लेकिन निकाह दिन में ही मस्जिद में कुछ लोगों की मौजूदगी में पढ़वा लिए जाते हैं। दोनों ही तरह के निकाह की संख्या वर्ष 2019 के मुकाबले 2021 में तेजी से बढ़ी है। रबी उल अव्वल या ईद जैसे अरबी माह में शहर में औसतन 13-15 हजार निकाह होते हैं। इस आधार पर पीक माह में छह से सात हजार निकाह मस्जिदों में पढ़ाए जा रहे हैं।

खर्च पर भी लगी लगाम

शहरकाजी मौलाना मुश्ताक मुशाहिदी का कहना है कि जाजमऊ में हुई एक शादी में जब से फिजूल खर्ची पर निकाह पढ़ाने से इनकार किया तब से काफी बदलाव आया है। बैंड, आतिशबाजी में कुछ कमी आई है। बेतहाशा दहेज, दहेज का दिखावा करना जैसी बातें भी कम हुई हैं। पूरे समाज में एक साथ बदलाव नहीं आ सकता। कोशिश जारी है।

हर निकाह मस्जिद में हो

शहर काजी हाफिज मामूर अहमद जामई का कहना है कि शहर में किस माह कितनी शादियां होती हैं, उसका एक स्थान पर पंजीकरण न होने से सही संख्या का आकलन नहीं हो सकता। फिर भी जो मुहिम पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से चल रही है उसका असर देखने में आया है। 40-45 फीसदी निकाह शहर की मस्जिदों में हो रहे हैं। पूरी तरह कामयाबी तब मिलेगी जब हर निकाह मस्जिदों में और सादगी के साथ हो।

वर्ष 2022 का रखा है टार्गेट

सुन्नी उलमा काउंसिल के महामंत्री हाजी मोहम्मद सलीस का कहना है कि अच्छी बात यह है कि सभी शहर काजी इस मुहिम को अपने-अपने स्तर पर महत्व दे रहे हैं। अब बिरादरियों के बीच जाकर सादगी से निकाह का पैगाम देना है। बिरादरियों में इसकी शुरुआत हुई तो वर्ष 2022 के आखिर तक सभी निकाह मस्जिदों में होना मुमकिन हो सकता है। यही टार्गेट भी है।

सभार हिंदुस्तान