कफ़ील भाई घोटकी वाले, राइट आर्म लेफ़्ट आर्म स्पिन बॉलर सुनते हैं एक बार कफ़ील भाई से बेनजीर भुट्टो ने पूछा वे उनके लिए क्या कर सकती हैं. कफ़ील भाई बोले मुझे अपने हैलीकॉप्टर पर दस्तखत कर लेने दीजिए. बेनजीर बोलीं कुछ और मांग लीजिए. कफ़ील भाई ने कुछ नहीं माँगा. चुपचाप लौट आए.
पाकिस्तान के ट्रक अब कला की दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं. उनके ऊपर पेन्ट से की गई बारीक चित्रकला के अध्ययन के लिए संसार भर से शोधार्थी आने लगे हैं. बेल-बूटों की लाजवाब कारीगरी के पसमंजर में शीरीं-फरहाद और सोहनी-महीवाल के जोड़े सबसे आम थीम होते हैं. इनकी जगह कभी-कभार नामचीन्ह लोगों के चेहरे बना दिए जाते हैं. इन चेहरों में क़ायदे-आज़म जिन्ना से लेकर इमरान खान और नूरजहाँ से लेकर ब्रूस ली तक होते हैं. आज के दौर में ट्रकों पर पेंटिंग करने वाले हैदर अली तो अंतर्राष्ट्रीय सेलेब्रिटी का दर्ज़ा रखते हैं और एक बड़ी गाड़ी रंगने के दो से पांच लाख तक वसूलते हैं.
इस ट्रक आर्ट की जड़ें भारत के रामपुर में मानी जाती हैं जहाँ सबसे पहले 1940 के दशक में ट्रकों और बसों पर चित्रकारी शुरू हुई हुई थी. विभाजन के बाद इस कला के सबसे बड़े फ़नकार पाकिस्तान चले गए जहाँ उसने अकल्पनीय ऊंचाइयां हासिल कीं. यह काम भारत में भी होता आया है लेकिन उसका स्तर अभी तक अपेक्षाकृत बचकाना ही है.
1980 के दशक में सिंध, पाकिस्तान के लोगों ने गौर करना शुरू किया कि सड़कों पर दिन-रात दौड़ते रहने वाले कुछ रंगबिरंगे ट्रकों के पीछे एक दस्तखत दिखाई देने लगे. ट्रक को रंगने के बाद उसके पीछे अपना नाम दर्ज करने वाला उस पहले कलाकार का खासा लंबा नाम होता था – कफ़ील भाई घोटकी वाले, राइट आर्म लेफ़्ट आर्म स्पिन बॉलर – लिखा दिखने लगा था. धीरे-धीरे इन ट्रकों की संख्या बढ़ने लगी और जिज्ञासु लोगों ने ट्रकों के ड्राइवरों से पूछना शुरू कर दिया कि ये कफ़ील भाई हैं कौन और ये राइट आर्म लेफ़्ट आर्म स्पिन बॉलर क्या बला है.
बहुत से ड्राइवरों को तो मालूम तक नहीं था कि उनके ट्रकों पर कफ़ील भाई के हस्ताक्षर हैं. स्थानीय सिंधी अखबारों के सहाफियों ने ने इस बाबत छानबीन की तो उन्होंने पाया कि कफ़ील भाई घोटकी के एक अति साधारण परिवार में जन्मे एक युवा क्रिकेटर और बेहद प्रतिभावान चित्रकार थे. उनके पिता खलील अहमद सिद्दीकी झांसी से पाकिस्तान आये थे जहाँ 1958 में कफ़ील पैदा हुए.
1970 के दशक के अंतिम और 1980 के दशक के शुरुआती वर्षों में उन्हें लगता था कि वे दुनिया के इकलौते गेंदबाज़ हैं जो दाएं हाथ से घातक ऑफ स्पिन गेंदबाजी कर सकने के साथ बाएं हाथ से वैसी ही खतरनाक लेग स्पिन फेंक सकते थे. इंग्लैण्ड के खलीफा स्पिन गेंदबाज जिम लेकर कफ़ील भाई के रोल मॉडल थे जिन्होंने एक टेस्ट में 19 विकेट लेने का अविश्वसनीय कारनामा अंजाम दिया था. अखबारों में छपने वाले जिम लेकर के फोटोग्राफ्स को देखकर उन्होंने जिम लेकर का पोर्ट्रेट भी बनाकर अपने कमरे में टांग रखा था.
उन्होंने घोटकी की अनेक लोकल टीमों के लिए अपने नगर के धूसर मैदानों पर अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरा. वे गेंदबाजी तो दोनों हाथों से कर लेते थे लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी गेंदों में ज़रा भी स्पिन पैदा नहीं होती थी और बल्लेबाज़ उनकी बढ़िया धुनाई किया करते. गेंदबाज़ का काम होता है पिच को दोष देना और कफ़ील भाई ने भी यही किया और नाराज़ होकर अपनी किस्मत चमकाने कराची चले गए. कराची में उनकी प्रतिभा को पहचानने को एक भी क्लब सामने नहीं आया और लम्बे इंतज़ार के बाद वे हताश होकर वापस घोटकी आ गए. उनकी शिकायत रही कि पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड में उनकी प्रतिभा को समझ तक पाने की कूव्वत नहीं थी.
घोटकी में कफ़ील भाई का ज़्यादातर समय हाईवे से लगे पेट्रोल पम्पों पर गुज़रने लगा. इन पम्पों के आसपास के ढाबे और होटल कराची और पेशावर के बीच औद्योगिक माल, गन्ना और गेहूं वगैरह ढोने वाले ट्रकों के ड्राइवरों-क्लीनरों से आबाद रहा करते थे.
हालांकि जैसी कि परम्परा चल चुकी थी, इनमें से ज़्यादातर ट्रकों पर तमाम तरह के चित्र बने रहते थे. कफ़ील भाई उन ट्रकों की शिनाख्त करते जिन पर कलाकारी नहीं की गयी होती थी और उनके ड्राइवरों को फ़ोकट में उनकी गाड़ियों पर कलाकारी करने का प्रस्ताव देते थे. बदले में वे सिर्फ पेंट और ब्रशों की मांग किया करते.
ड्राइवरों को उनका काम पसंद आने लगा और कफ़ील भाई ने मैडम नूरजहां और घोड़ों से लेकर लेडी डायना तक के चित्र सिंध के ट्रकों पर उकेरना शुरू किये. चित्रों के नीचे उनके गौरवपूर्ण हस्ताक्षर होते – कफ़ील भाई घोटकी वाले, राइट आर्म लेफ़्ट आर्म स्पिन बॉलर.
1987 तक उर्दू मुख्यधारा के कुछेक अखबार वगैरह उन पर लेख छाप चुके थे और ड्राइवरों में अपनी गाड़ियों पर उनके हस्ताक्षर करवाने का क्रेज़ बन गया था. लेकिन कफ़ील भाई अपनी सेवा के बदले अब भी किसी तरह की फीस नहीं वसूलते थे. वे पेंट और ब्रश के अलावा ढाबों पर मिलने वाली एक चाय भर के बदले इस काम को किया करते. उन्होंने अपने हस्ताक्षर में अब यह भी जोड़ दिया – मशहूर-ए-ज़माना स्पिन बॉलर कफ़ील भाई का सलाम!
उनकी रोजी-रोटी कैसे चलती थी मालूम नहीं लेकिन उनके सुबह-शाम के खाने का बंदोबस्त उन ढाबों के जिम्मे था जिनके बगल में खड़े ट्रकों पर वे चित्रकारी करते थे.
1992 में उनकी ख्याति अपने चरम पर पहुँच गयी थी जब एक फ्रांसीसी कला पत्रिका ने उनकी ट्रक-कला को अपने पन्नों पर जगह दी. इसके बाद कुछेक फ्रेंच पर्यटक घोटकी आये भी और उन्होंने कफ़ील भाई को फ्रांस आ कर वहां के ट्रकों पर चित्र बनाने की दावत दी. कफ़ील भाई ने एक शर्त रखी कि उन्हें फ्रांस के ट्रकों पर भी अपने हस्ताक्षर करने की छूट होगी. फ्रेंच पर्यटकों में कहा कि वे इसकी गारंटी नहीं दे सकते. इतना सुनना था और कफ़ील भाई ने साफ़ मना कर दिया.
कफ़ील भाई तीस से ऊपर के हो चुके थे और एक दिन उन्होंने पेन्टिंग करना छोड़ दिया. अपने कुछ प्रशंसकों से उन्होंने थोड़ी रकम उधार ली और फर्नीचर की एक दुकान खोली. इस नए धंधे से थोड़ा बहुत पैसा बनाने के बाद उन्होंने शादी करने का फ़ैसला किया. 2000 की शुरुआत में उन्होंने दुकान बंद की, सारा सामान बेचा और कराची चले गए. समय के साथ उनके हस्ताक्षरों की तरह उनका नाम भी जनस्मृति से अदृश्य होता चला गया.
कफ़ील भाई का सिर्फ एक धुंधला सा फोटो उपलब्ध है जिसे आप देख रहे हैं. इसे 1989 में खींचा गया था.