ज़रा याद करो क़ुर्बानी: कैप्टन हनीफ़ुद्दीन ऑपरेशन थंडरबॉल्ट का नायक, जिसने तुरतुक पहाड़ियों पर गाड़ा झंडा

मोहम्मद उमर

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“कैप्टन हनीफ” आपको ऑपरेशन थंडरबॉल्ट की ज़िम्मेदारी दी जाती है-भारतीय सेनातीन मई 1999 को वायरलैस होता है, दुशमन कारगिल की चोटियों पर कब्ज़ा करने के लिए घुसपैठ कर रहा है, ख़बर मिलते ही भारतीय सेना हरकत में आती है, हालांकि यह जंग इतनी आसान नही थी क्योंकि दुश्मन हमले की तैयारी में ऊपर पहाडियों पर छुपकर, हथियारों से लदा हुआ खड़ा था जबकि मौसम का मिज़ाज भी माइनस डिग्री पर ऊफान मार रहा था। पर इनको वापस खदेड़ना भी सेना की ज़िम्मेदारी थी जिसके लिए अलग-अलग ऑपरेशन बनाकर फौज के आला अधिकारियों को इसकी कमान सौंप दी गयी।

इन्हीं में एक ऑपरेशन का नाम थंडरबॉल्ट था जिसको 11वीं राजपुताना राइफल्स के कैप्टन हनीफुद्दीन (हनीफ) लीड कर रहे थे। कैप्टन हनीफ ने अपने साथ, एक जूनियर कमीशन अधिकारी व तीन अन्य रैंक अफसरों के साथ इस ऑपरेशन को आगे बढ़ाया और महज़ दो दिनों चा और पांच जून तक तुरतुक के आस-पास की पहाड़ियों पर भारतीय सेना का झंडा गाड़ दिया, साथ ही पूरे क्षेत्र को अपना नियंत्रण में करते हुए 6 जून 1999 को 18,000 फीट की ऊंचाई तक इनकी टुकड़ी पहुंच चुकी थी जिसका उद्देश्य यंहा से भी घुसपैठियों को खदेड़ना व उनकी गतिविधियों पर नज़र रखना था,जो अब पहले से ज़्यादा खतरनाक था लेकिन कैप्टन हनीफ और उनके फौजी साथियों का हौंसला हर मुश्किल समय से टकरा जाने के लिए बेखौफ था इसलिए पहाड़ो की ऊचाईयों तथा माइनस डिग्री का तापमान भी इनके इरादों हिला नही पाया।

6 जून को कैप्टन हनीफ, अपनी यूनिट के साथ उन उंचाई वाले पहाडों पर बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे, लेकिन उनकी गतिविधियां दुश्मन की नज़र में आ गई जिसे उसने भांपते हुए ऊपरी क्षेत्र से गोलीबारी शुरू कर दी, इसके जवाब में भारतीय सेना ने भी बेहिसाब गोलियाँ चलाई।

सिपाहियों की सुरक्षा के लिए फिक्रमंद थे कैप्टन

कैप्टन हनीफ अपने सिपाहियों की सुरक्षा के लिए ज़्यादा फ़िक्रमंद थे जिसके लिये उन्होंने सेना को सुरक्षित ठिकाने की ओर जाने का इशारा किया और खुद सामने आकर दुश्मन के हमले का जवाब दिया, जिससे ध्यान भटकाया जा सके और उनकी सैनिक टुकड़ी सुरक्षित ठिकाने तक पहुंच जाए। कैप्टन हनीफ ने लगातार गोलियां चलाते हुए पाकिस्तानी फौज को ऊपर ही रोके रखा, पंरतु गोलियां खत्म होते ही दुश्मन उनपर हावी होने लगा और एक घिरे हुए सैनिक का अंत या तो दुश्मन की क़ैद होती या मौत, कैप्टन हनीफ के नसीब में शहादत आई और यह वीर योद्धा अपने वतन की मोहब्बत के ख़ातिर,बर्फ से लदे उन पहाडों पर शहीद हो गया।

कारगिल युद्ध के दौरान सेना अध्यक्ष रहे जनरल वेद प्रकाश मलिक ने इनकी मां हेमा अज़ीज़ के पास जाकर शहादत की ख़बर दी, साथ ही कैप्टन के शरीर को भी नहीं लाए जाने का कारण ज़ाहिर करते हुए बताया कि पहाड़ के ऊपरी हिस्सों पर बैठे दुश्मन लगतार फायरिंग कर रहे हैं, जिसपर उनकी माँ ने देशभर के शोकसंतप्‍त परिवारों की तरह धैर्य का परिचय देते हुए कहा, ”सैनिक के रुप में हनीफ ने, गर्व और समर्पण भाव से देश की सेवा की, उसके शौर्य की इससे बड़ी गाथा नहीं हो सकती कि वह दुश्‍मन से लड़ते हुए शहीद हुआ”।

ठीक डेढ़ महीने बाद उस इलाके को जीतकर कैप्टन हनीफ के शरीर को वापस लाया गया, जिसे दिल्ली में पूरे मिलिट्री सम्मान के साथ दफनाया और भारत सरकार द्वारा वीर चक्र से सम्मानित करते हुए, तुरतुक क्षेत्र जहां वो शहीद हुए थे, उसका नाम हनीफुद्दीन सब सैक्टर रखा गया साथ ही राजधानी दिल्ली के मयूर विहार इलाके की एक सड़क का नाम भी आज उनके सम्मान में कैप्टन हनीफुद्दीन है। कारगिल को जीतने के लिए शहीद हुए उन सभी शहीदों को सलाम जिन्होनें अपने मुल्क की हिफाज़त करते हुये शहादत पाई।