कृष्णकांत
मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम ने एक ट्वीट किया है. कमलनाथ से पहले एमपी में इनकी सरकार थी. जो मांगें इस ट्वीट में हैं, इन्हीं मांगों को लेकर किसानों ने मंदसौर में प्रदर्शन किया तो शिवराज जी की पुलिस ने गोली चला दी. छह किसान मारे गए थे. एक बूढ़े किसान का बेटा मारा गया था, वह विक्षिप्त सा हो गया था. लाल पगड़ी बांधे, विक्षिप्तता में क्या क्या बकता हुआ वह बुजुर्ग इतना बेचैन था कि क्षण में उठता, क्षण में बैठ जाता, रोने लगता. मुझसे पूछा, ‘मेरा बेटा तो मजदूरी के लिए गया था, उसे क्यों मार दिया? बोलो बाबू जी, उसे क्यों मार दिया?’
मेरे पास कोई जवाब नहीं था. मैं सिर झुकाए लौट आया. उस परिवार की मिट्टी की दीवारें शायद और बुरे दिनों की गवाह बन गई होंगी. वह बुजुर्ग और विक्षिप्त चेहरा मैं आज तक नहीं भूला हूं. जिन पुलिस वालों ने निहत्थे किसानों पर गोलियां चलाई थीं, मेरी जानकारी में उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. जब छह किसानों की सरकारी हत्या का मामला गर्माया तो शिवराज जी खुद ही धरने पर बैठ गए थे. वे किसके खिलाफ धरने पर बैठे थे, यह आज तक रहस्य है.
जो विपक्ष में होता है उसे किसानों की बहुत चिंता होती है. जो सत्ता में होता है, वह किसानों पर गोली चलाता है, फसलों के उचित दाम नहीं देता, मंडियां नहीं खुलवाता, सब्सिडी नहीं देता, मुआवजा नहीं देता. देश में हर साल तकरीबन 15 हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं, इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. नेता के ढाई घंटे लंबे भाषण से किसान के जीवन पर कोई फर्क नहीं पड़ता. हर साल जितने किसान मरते हैं, उतनी लाशें एक साथ आपके सामने आ जाएं तो आप पागल हो जाएंगे. लेकिन इस त्रासदी के बारे में सोचने का समय किसी के पास नहीं है. जाहिलों को अभी हिंदू मुसलमान की चिंता है.
(लेखक युवा कहानीकार एंव पत्रकार हैं)