नई दिल्लीः भारतीय जनता पार्टी के सबसे युवा लोकसभा सांसद तेजस्वी सूर्या ने दिल्ली चुनाव से पहले ध्रुवीकरण कराने के इरादे से विवादित बयान दिया था। तेजस्वी ने कहा था कि अगर एक जुट नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली पर मुग़लों का राज होगा। भाजपा सांसद के इस बयान पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि मुग़लों ने कभी मुगलों ने कभी हिंदू समाज व्यवस्था को नहीं छेड़ा.
दिलीप ने लिखा कि मुगलों के राज में ठाकुरों-ब्राह्मणों को कौन सी दिक्कत थी? अकबर के नवरत्नों में तानसेन और राजा बीरबल ब्राह्मण और राजा टोडरमल और राजा मानसिंह ठाकुर थे. पूरे राजपूताने में मुगलों के बनाए जमींदार ही राजा हुआ करते थे. जजिया भी हर जाति के लोग नहीं देते थे. मुगलों ने कभी हिंदू समाज व्यवस्था को नहीं छेड़ा. मुगलों के खिलाफ कभी बगावत नहीं हुई.
उन्होंने बबताया कि मुगलों के खिलाफ अकेली बगावत किसान राजा शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी राजे ने की. उनके विरोध का आधार धर्म नहीं था. सभी धर्मों के लोग शिवाजी राजे की सेना में थे. हिंदू जाति और समाज व्यवस्था को अंग्रेजों ने छेड़ा. सती प्रथा बंद करा दी. विधवा विवाह को मान्यता दे दी. सभी जातियों के लिए स्कूल खोल दिए. फौज में महारों और दलितों को रख लिया.
इंडिया टूडे के संपादक रह चुके दिलीप मंडल ने बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हो गया. ऐसा विद्रोह मुगलों के खिलाफ कभी नहीं हुआ. मुगल कभी गांव में घुसे ही नहीं. वहां जो चल रहा था, उसे उन्होंने चलने दिया. बाबरनामा में बाबर अपने बेटे हुमायूं को बताता है कि – भारत के रीति-रिवाजों में हमें नहीं पड़ना है. इनको अपने ढंग से जीने दो. ये हमें राज करने देंगे.
तो दिल्ली का हर शख्स मुसलमान होता
दिलीप मंडल ने भाजपा सांसद को जवाब देते हुए लिखा कि अगर मुगलों और दूसरे मुसलमान शासकों का मकसद इस्लाम का विस्तार करना होता तो दिल्ली शहर को मुसलमानों का शहर होने से कौन रोक सकता था? दिल्ली तख्त तो उनका ही था. लगभग 900 साल के मुसलमान शासन के बाद जनगणना होती है तो ये शहर हिंदू बहुल कैसे था? जनगणना, 1901 में ये शहर 74.1% हिंदू था.
उन्होंने लिखा कि मुसलमान शासकों ने हिंदू इलीट के साथ मिलकर राज किया. हिंदू इलीट के पास शासन करने के लिए नीचे की जातियां थीं. वे इतने से ही खुश थीं कि उनकी जाति सत्ता कायम है. मुगल या बाकी मुसलमान शासकों ने कभी समाज सुधार का काम नहीं किया. इसलिए उनके खिलाफ 1857 जैसी कोई क्रांति नहीं हुई.
दिलीप मंडल ने लिखा कि 1857 में क्रांति हो गई क्योंकि अंग्रेज हिंदू समाज में सुधार करने की गलती कर बैठे. सती बंद करा दी. विधवा विवाह शुरू करा दिया और तो और IPC लाकर हर जाति के लिए एक अपराध के लिए समान सजा का प्रावधान कर दिया. इस वजह से हर जातियों के लोगों को मृत्युदंड मिलने लगा.