नई दिल्लीः अफ़ग़ानिस्तान संकट के दौरान मारे गए पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीक़ी का परिवार इंसाफ के लिये इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट जाएगा। बता दें कि दानिश की पिछले साल अफगानिस्तान जंग में कवरेज के दौरान मौत हो गई थी। उस वक्त दानिश समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए कंधार में काम कर रहे थे। यहां अफगान सिक्योरिटी फोर्सेज और तालिबान के बीच जंग चल रही थी।
तालिबान पर आरोप
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि दानिश को तालिबान ने बेरहमी से मार दिया। उनके शरीर पर कई जख्म थे। सिद्दीकी उस वक्त जिंदा थे जब तालिबान ने उन्हें पकड़ा। तालिबान ने सिद्दीकी की पहचान की पुष्टि भी की थी। आरोप है कि तालिबान आतंकी दानिश और उनके साथियों को ले गए और बाद में बेरहमी से उनका कत्ल कर दिया।
तालिबान का ‘हत्या’ करने से इनकार
दूसरी तरफ, तालिबान ने दानिश के कत्ल से इनकार किया। तालिबान ने कहा- इस फोटो जर्नलिस्ट की मौत क्रॉस फायरिंग के दौरान हुई। दानिश ने उनसे कवरेज की मंजूरी नहीं ली थी। हमने कई बार कहा था कि अगर पत्रकार यहां आते हैं तो पहले हमसे मंजूरी लें। हम उन्हें सिक्योरिटी देते।
दिल्ली के रहने वाले थे दानिश
पुलित्जर अवॉर्ड विनर 38 वर्षीय दानिश दिल्ली के रहने वाले थे। दानिश जामियानगर के गफ्फार मंज़िल इलाक़े में रहते थे। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद यहीं से 2007 में पत्रकारिता की पढ़ाई की थी। परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। वह 2010 में रॉयटर्स से जुड़े थे।
2018 में मिला था पुलित्जर प्राइज
रोहिंग्या शरणार्थी समस्या पर फोटोग्राफी के लिए 2018 में रॉयटर्स की टीम ने पुलित्जर पुरस्कार जीता था। इस टीम में सिद्दीकी भी शामिल थे। उन्होंने दिल्ली दंगों को भी कवर किया था। इसके अलावा उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान श्मशान घाट की भी तस्वीरें क्लिक की थीं, जिन्होंने मानवीय संवोदना को झकझोर कर रख दिया था।