पूर्व सपा सांसद का तंज ‘न कभी संघ में रहे, न ही जनसंघ में रहे, मुँह बोले पापा हैं सावरकर’

नई दिल्लीः हिंदुत्व की राजनीति के जनक माने जाने वाले विनायक दामोदर सावरकर का आज जन्मदिन है। सावरकर के जन्मदिन पर भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता उन्हें याद कर रहे हैं। वहीं सपा के पूर्व सांसद ने तंज करते हुए कहा कि सावरकर मुंह बोले पापा हैं। समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद रहे जावे अली ख़ान ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि न कभी संघ में रहे, न ही जनसंघ में रहे,मुँह बोले पापा हैं सावरकर ।

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पूर्व सांसद ने योग गुरु बाबा रामदेव के उस बयान पर तंज किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें किसी का बाप भी गिरफ्तार नहीं कर सकता। जावेद अली ख़ान ने कहा कि बाप अरेस्ट नहीं करता, कोतवाल करता है, कोतवाल तो संइया है,फिर डर काहे का।

टूलकिट विवाद पर क्या बोले

किसान आंदोलन के दौरान चला टूलकिट विवाद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। जिस पर समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद जावेद अली ख़ान ने भी मोर्चा खोला है। उन्होंने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि पहले बड़े झंझट थे विरोध करने के लिये सड़क,बाज़ार, चौराहा, मैदान,कचहरी, डीएम, कमिश्नर, वीसी, मंत्रालय, विधानसभा, जीपीओ, हजरतमहल, संसद भवन, रामलीला मैदान, जन्तर मन्तर, बोट क्लब, जाना पड़ता था। कई बार शांतिपूर्ण और कई बार भगदड़, पत्थरबाज़ी या लाठीचार्ज होता था। कम से कम तीन चार दिन विरोध प्रदर्शन के लिए लोगों को मोबलाइज़ करते, फिर गला फाड़ कर चार छ: घंटे धूप में नारेबाज़ी करते, कभी सही सलामत और कभी पिटेकुटे प्रदर्शन से लौटकर प्रेस विज्ञप्ति तैयार करते, समाचारपत्रों के दफ़्तर दफ़्तर जाकर बड़ी विनम्रतापूर्वक विज्ञप्ति बाँटी जाती, डेस्क प्रभारी को भाई साहब कहकर छपने की सारी संभावनाएँ सुनिश्चित की जाती, फिर रात भर करवटें बदलते सुबह होने और अख़बार आने का इन्तज़ार होता। पहले पन्ने पर ध्यान दिये बग़ैर तीसरे या चौथे पन्ने को छाना जाता, कभी कुछ पंक्तियों,  कभी एक कॉलम, कभी-कभी फ़ोटो से सब्र करना पड़ता ।फिर पूरे दिन यह जानने की उत्सुकता रहती कि स्थानीय के अलावा दूसरे संस्करण में छपा या नहीं। शाम को अख़बार से खबर ब्लेड द्वारा ध्यानपूर्वक तराशकर सफ़ेद काग़ज़ पर चस्पाँ कर प्रेस कटिंग की फाइल में नत्थी की जाती थी।

लेकिन फ़ेसबुक, ट्विटर आने के बाद हमने विरोध के पारम्परिक तरीक़े छोड़ फ़ेसबुक, ट्विटर पर लिखकर विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया । इस कर्तव्य का निर्वाह अक्सर हम बिस्तर पर लेटकर या सोफ़े पर बैठ करते हैं। अगले ही पल सब मित्रों को हमारे द्वारा की गई क्रान्ति की खबर लग जाती है हौंसला अफजाई करने वाले और मुँह बिचकाने वाले कुछ ही देर में सामने होते हैं।

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर लिखकर विरोध करना नये ज़माने का नया चलन है इसके द्वारा किया गया विरोध लोकतांत्रिक भी है और अहिंसक भी। ऐसा विरोध हमें आत्म संतुष्टि देता है और शासक वर्ग को न चिन्तित करता है न विचलित बल्कि उसे सुहाता है। फ़ेसबुक, ट्विटर जैसे माध्यम शासक वर्ग के लिए सेफ़्टी वाल्व का काम करते हैं इसलिए निश्चिंत रहिए फ़ेसबुक ट्विटर बन्द नहीं होने वाले!