हिंदू राष्ट्र समर्थित दृष्टिकोण पर आधारित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जमीयत उलमा ए हिंद ने किया खारिज

नई दिल्ली: जमीयत उलमा ए हिंद के राष्ट्रीय राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना क़ारी उस्मान मंसूरपुरी की अध्यक्षता में संपन्न हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सम्मेलन ने केन्द्र सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति को खारिज कर दिया है। यह सम्मेलन जमीयत उलमा ए हिंद के नई दिल्ली में स्थित कार्यालय में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप ज़ूम के माध्यम से भी कई सदस्यों और आमंत्रितों को सम्मेलन की कार्यवाही में भाग लेने में सफलता प्राप्त हुई। कार्यकारिणी के सम्मेलन में विशेषकर नई शिक्षा नीति, इस्लामी मदरसों के खिलाफ नकारात्मक प्रचार, मदरसों में आधुनिक शिक्षा के लिए व्यवहारिक कार्यक्रम की तैयारी और सोशल मीडिया में इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ़ ज़हर उगलने जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ।

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जमीयत उलमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने देश के वर्तमान हालात विशेषकर भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा का सीएए को लागू करने से संबंधित वर्तमान बयान और इसी तरह आसाम सरकार की तरफ से सहायता प्राप्त मदरसों में धार्मिक शिक्षा की पाबंदी जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर विस्तार से प्रकाश डाला। राष्ट्रीय साधारण कार्यकारिणी ने इस तरह की सांप्रदायिक भेदभाव पर आधारित कार्यों पर तीव्र निंदा प्रकट करते हुए इसके ज़हरीले प्रदूषित प्रभाव के प्रभावों पर गौर किया।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में खासतौर से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विषय विचारणीय रहा। इससे संबंधित एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें इसको हिंदू धर्म और उसके तरीके को सारे नागरिकों पर जबरन थोपने वाला कदम बताया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि हमारे देश में वैचारिक और व्यवहारिक दोनों स्तर पर धार्मिक भेदभाव पूर्ण और परंपरागत सेकुलर व्यवस्था के बीच कशमकश इस वक्त अत्यधिक चरम सीमा पर है। हिंदू राष्ट्र समर्थित दृष्टिकोण ने राजनीतिक सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद अपने पुराने एजेंडे को एक-एक करके लगभग हर क्षेत्र में लागू करना शुरू कर दिया है। इस संबंध की महत्वपूर्ण कड़ी नई शिक्षा नीति है। देश में आमतौर पर शिक्षा स्तर को सुधारने और उद्योग धंधों, आर्थिक तरक्की के लिए शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन के लिए कुछ लाभप्रद और सकारात्मक कदमों के बावजूद धार्मिक भेदभाव की छाप इस पर इस कदर प्रभावी हुई है  कि  कमियों की निशानदेही में एतदाल कठिन हो गया है। सभ्यता व संस्कृति, राष्ट्रीयता, शारीरिक व मानसिक और स्वास्थ्य एवं एकता और समानता आदि के नाम पर नई शिक्षा नीति में ऐसे परिवर्तन किए गए हैं जिसका मूलभूत निशाना हिंदू धर्म और उसके तौर-तरीके को जीवन के हर क्षेत्र में समस्त नागरिकों पर जबरन थोपना है। जो कि अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की इस देश की आज़ादी और तरक्की में भागीदारी के इतिहास और मुश्रिकाना सोच के मुकाबले में तोहीद के अटल विश्वास पर, प्रत्यक्ष रूप से सिर्फ विवादित ही नहीं बल्कि उस पर अत्यधिक बर्बर हमला है।

इस परिदृश्य में सामूहिक जागरूकता की कोशिशों को जारी रखते हुए यह सम्मेलन नई शिक्षा नीति में शामिल धार्मिक  भेदभाव के  समस्त तत्वों को  रद्द करता है। और बिना किसी धार्मिक भेदभाव के न्याय प्रिय और सैकुलर तत्वों से अपील करता है कि अपने बच्चों के मासूम ज़हन को धार्मिक भेदभाव के प्रदूषण से बचाने के लिए हर संभव कदम उठाएं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने प्रस्ताव में मुसलमानों से अपील की है कि जमीयत उलमा ए हिंद की पारंपरिक पुरानी कोशिशों पर गंभीरता से अमल करते हुए ज़्यादा से ज़्यादा अपने स्कूल स्थापित करें। जहां इस्लामी वातावरण में आधुनिक शिक्षा उपलब्ध की जाए।

इसी तरह राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सम्मेलन में इस्लामी मदरसों के खिलाफ़ कुछ मंत्रियों की तरफ से नकारात्मक प्रचार और साम्प्रदायिक टिप्पणियों निंदनीय बताते हुए इससे संबंधित स्वीकृत प्रस्ताव में कहा गया कि यह बात किसी भी छुपी नहीं है कि दीनी मदरसों में मानवीयता और राष्ट्रीय एकता की शिक्षा दी जाती है और अच्छे विचारों से विद्यार्थियों को सुसज्जित किया जाता है। मदरसों से जुड़े लोगों का देश की आज़ादी में प्रमुख योगदान रहा है और आज भी मदरसे के लोग विभिन्न मैदानों में देश और कौम की तरक्की के लिए अपनी अत्यधिक महत्वपूर्ण सेवाएं पेश कर रहे हैं। लेकिन यह बात निंदनीय है कि वर्तमान में कुछ मंत्रियों की तरफ से बेबुनियाद नकारात्मक टिप्पणियां की गई हैं जो अत्यधिक साम्प्रदायिक और भेदभाव है।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी जमीअत उलमा ए हिंद इस पर तीव्र भर्त्सना करती है और सरकार से अपील करती है कि वह देश की धर्म निरपेक्ष मूल्य और धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का  हनन करने वाली विचारधारा का साहस न बढ़ाए। इस्लामी मदरसों के विद्यार्थियों को आधुनिक आवश्यकताओं से परिचित करने और मदरसों को अपनी परंपरा पर बाकी रखते हुए एन आई एस बोर्ड से जोड़ने जैसी समस्याएं भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विचारणीय रहीं। इस संबंध में राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने प्रस्ताव में कहा कि अगरचे मदरसों के पाठ्यक्रम में आधुनिक शिक्षा के विषयों को शामिल करना कठिन है लेकिन देश में ओपन स्कूली व्यवस्था ने ऐसी राष्ट्रीय संभावनाएं पैदा कर दी हैं कि दीनी मदरसे अपने पाठ्यक्रम को पूर्व की तरह अपनी परंपरा पर कायम रखते हुए विद्यार्थियों के लिए उचित स्तर पर आधुनिक शिक्षा का प्रबंध कर सकते हैं। इस पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी जमीअत उलमा ए हिंद ने इस संबंध में उचित व्यवहारिक कार्यक्रम तैयार करने के लिए निम्नलिखित लोगों पर आधारित कमेटी का गठन किया है जो मदरसों के लिए उनकी सुरक्षात्मक दृष्टिगत भविष्य के लिए एक माह में अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर जो जहर फैलाया जा रहा है उसका जवाब देने के लिए भी एक कमेटी गठित की गई। जो इस्लाम विरोधी प्रचार प्रसार के तोड़ के लिए व्यवहारिक कार्यक्रम तय करेगी। कमेटी के कन्वीनर मौलाना नियाज़ अहमद फारूकी होंगे। जब के सदस्य मौलाना सद्दीकुल्लाह  चौधरी, मौलाना मुफ़्ती सलमान मंसूरपुरी, मौलाना सलमान बिजनौरी, मौलाना शमसुद्दीन बिजली हैं ।इसके अलावा यह भी तय हुआ कि प्रबंध कमेटी के सम्मेलन 12 सितंबर 2019 के अनुसार सारी इकाइयों को जमीयत सद्भावना मंच स्थापित करने का प्रतिबद्ध बनाया जाए। कार्यकारिणी सम्मेलन में उत्तरी पूर्वी दिल्ली दंगों के सिलसिले में विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई। जिस पर संतोष प्रकट किया गया। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने निकट भविष्य में इस दुनिया को छोड़ जाने वाले प्रमुख व्यक्तियों को शोक श्रद्धांजलि प्रकट की और उनके परिवार वालों के लिए दुआएं की।

इस सम्मेलन में अध्यक्ष जमीयत उलमा ए हिंद मौलाना क़ारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी और महासचिव मौलाना महमूद मदनी के अलावा मौलाना मुफ़्ती अबुल कासिम नोमानी, मोहतमिम दारुल उलूम देवबंद, (जूम एप के माध्यम से) मुफ़्ती मोहम्मद सलमान मंसूरपुरी जामिया कासमिया शाही मुरादाबाद, मौलाना कारी शौकत अली वेट, मुफ़्ती मोहम्मद राशिद आजमी दारुल उलूम देवबंद, मौलाना सलमान बिजनौरी दारुल उलूम देवबंद, मौलाना अली हसन मजाहीरी, मुफ्ती जावेद इकबाल किशनगंजी,  मौलाना नियाज़ अहमद फारूकी, शकील अहमद सैयद, मौलाना  सिद्दीकुल्लाह  चौधरी, डॉक्टर सायीदुद्दीन नांगलोई, मुफ़्ती अब्दुल रहमान नौगांवा सादात, मुफ्ती शमसुद्दीन बिजली बेंगलुरु, मुफ़्ती मोहम्मद अफ्फान मंसूरपुरी, मुफ्ती अहमद देवला, मौलाना आक़िल गढ़ी दौलत और मौलाना हकीमुद्दीन कासमी शरीक हुए। जबकि जूम के माध्यम से मौलाना रहमतुल्लाह कश्मीरी, मौलाना बदरुद्दीन अजमल, मुफ्ती हबीबुर्रहमान इलाहाबाद, हाफ़िज पीर शब्बीर अहमद हैदराबाद, मौलाना मोहम्मद रफीक मजाहीरी, हाजी मोहम्मद हारून भोपाल, हाफिज नदीम सिद्दीकी महाराष्ट्र, मौलाना मुफ़्ती इफ्तिखार अहमद कर्नाटक, मौलाना रफीक मजाहिरी गुजरात, मौलाना अब्दुल कादिर आसाम, मौलाना शेख मोहम्मद याहिया आसाम, मौलाना मोहम्मद जाबिर कासमी उड़ीसा, क़ारी अय्यूब ने भाग लिया।