नई दिल्लीःजमीयत उलेमा-ए-हिंद का महा अधिवेश आज से जमीयत उलेमा के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के अध्यक्षता में नई दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में आरंभ हुआ। महाधिवेशन का पूर्ण सत्र रविवार को आयोजित होगा जिसमें हजारों की संख्या में लोगों के भाग लेने की उम्मीद है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महा सचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने आज सेक्रेटरी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
ये प्रस्ताव हुए पारित
देश में बढ़ते नफरती अभियान और इस्लामोफोबिया की रोकथाम पर विचार.मंथन कर जमीयत ने कहा कि आज हमारे देश में इस्लामोफोबिया और मुसलमानों के विरुद्ध नफरत और उकसावे की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यह सब सरकार की आंखों के सामने हो रहा है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनोंए भारत की सिविल सोसायटियों की रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद सत्तासीन लोग न केवल इन घटनाओं की रोकथाम के प्रति अनिच्छुक हैं बल्कि कई भाजपा नेताओंए विधायकों और सांसदों के नफरत भरे बयानों से देश का माहौल लगातार जहरीला होता जा रहा है। जिसके कारण देश की आर्थिक और व्यापारिक हानि के अतिरिक्त देश की ख्याति भी प्रभावित हो रही है।
इन परिस्थितियों में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द देश की संप्रभुता और ख्याति को लेकर भारत सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती है कि वह तुरंत ऐसे उपायों पर रोक लगाएए जो लोकतंत्रए न्याय और समानता की आवश्यकताओं के विरुद्ध हैं और इस्लाम से शत्रुता पर आधारित हैं। नफरत फैलाने वाले तत्वों और मीडिया पर बिना किसी भेदभाव के कठोर कार्रवाई की जाए। विशेषकर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट और उचित टिप्पणियों के बादए इस संबंध में लापरवाही बरतने वाली एजेंसियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए और उपद्रवियों को दंडित किया जाए। विधि आयोग की सिफारिशों के अनुसार हिंसा के लिए उकसाने वालों को विशेष रूप से दंडित करने के लिए एक अलग क़ानून बनाया जाए और सभी अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामाजिक.आर्थिक रूप से अलग.थलग करने के प्रयासों पर रोक लगाई जाए।
जमीयत ने कहा कि देश में समरसता को बढ़ावा देने के लिए नेशनल फाउंडेशन फॉर कम्युनल हार्मनी ; (National Foundation for Communal Harmony) और नेशनल इंटेगरल काउंसिल (National Integral Council) को सक्रिय किया जाए और इसके तहत सह.अस्तित्व से संबंधित कार्यक्रम और प्रदर्शन आयोजित किए जाएं। विशेषकर सभी धर्मों के प्रभावशाली लोगों की संयुक्त बैठकें और सम्मेलन आयोजित किए जाएं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का यह महाधिवेशन सभी न्यायप्रिय दलों और राष्ट्र हितैषी व्यक्तियों से अपील करता है कि वह प्रतिक्रियावादी और भावनात्मक राजनीति के बजाय एकजुट होकर चरमपंथी और फासीवादी शक्तियों से राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मुकाबला करें और देश में भाईचाराए आपसी सहिष्णुता और न्याय की स्थापना के लिए हर संभव प्रयास करें।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द मुस्लिम युवाओं और छात्र संगठनों को विशेष रूप से सतर्क करती है कि वह आंतरिक और बाहरी देशद्रोही तत्वों के सीधे निशाने पर हैं। उन्हें हताश करनेए उकसाने और भटकाने के हर हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इसलिए परिस्थितियों से बिलकुल भी निराश न हों और धैर्य न खोएं। जो तथाकथित शक्तियां इस्लाम के नाम पर जिहाद की व्याख्या आतंकवाद और हिंसा फैलाने के लिए करती हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से एजेंसियों की नजर में संदेहास्पद और संदिग्ध हैंए उनसे असहमति और दूरी बनाए रखना हमारे युवाओं और छात्रों की सुरक्षा और भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। जाने.अनजाने में थोड़ी सी लापरवाही उनके पूरे परिवार को बर्बाद कर सकती है।
यह अधिवेशन मीडिया द्वारा चलाए गए इस्लामोफोबिक अभियान की निंदा करता हैए जो पवित्र इस्लामी अनुष्ठानों की छवि को खराब कर रहा है और इस्लामी शब्दों की गलत व्याख्या कर रहा है।
मीडिया का इस्लाम विरोधी रवैया और …
देशव्यापी स्तर पर इस्लामी शिक्षाओं और मुसलमानों की छवि को धूमिक करने के संगठित प्रयास किए जा रहे हैं और उन्हें लोगों के दिमाग पर थोपने के लिए मीडिया और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। सोशल मीडिया ऐसे समूहों और संगठनों का साधन बना हुआ है जो इस्लाम और पैगंबर के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। कुछ खबरिया चैनल जानबूझकर मुसलमानों के धार्मिक मामलों को एजेंडा बनाकर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं और पक्षकार बन कर इस्लाम और मुसलमानों को नीचा दिखाने का कौशल दिखाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किया जाता है जो झूठ फैलाने वालों के हाथों की कठपुतली बन चुके हैंए जो जानबूझकर कुरान और हदीस की गलत व्याख्या प्रस्तुत करते हैं और इस्लाम की एक ऐसी छवि पेश करते हैं जिसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं होता हैए ताकि लोगों में इस्लाम विरोधी प्रोपेगंडा सफल हो सके।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का यह महाधिवेशन ऐसे सभी प्रयासों की कठोर शब्दों में निंदा करता है। वह मीडिया चैनलों यह आशा करता है कि वह ऐसे मुद्दों में अपनी रुचि दिखाएंगे जो देश के विकास से संबंधित हो। किसी भी धर्म-विरोधी मिथ्या फैलाने वाले कार्यक्रम से सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है जो देश के विकास के लिए अत्यधिक हानिकारक है। इस संबंध में 14 जनवरी 2023 को संबंधित विषय पर जस्टिस जोसेफ की सलाह को ध्यान में रखें कि श्मीडिया के लोगों को यह समझना होगा कि वह मजबूत पदों पर आसीन हैं। जो भी चैनल में जाकर बैठता हैए उसकी गलत बयानबाजी पूरे राष्ट्र को प्रभावित कर रही है। क्योंकि जो लोग उन्हं2 देखते हैंए वह तुरंत यह पता लगाने की स्थिति में नहीं होते हैं कि सच्चाई क्या हैए इसलिए जो कुछ भी कहा जाता हैए उसे वह सत्य मानने लगते हैंए उसे अपने मन में बिठा लेते हैं और उसी के अनुसार अपने जीवन को ढाल लेते हैंए जो बहुत खतरनाक है।
यह अधिवेशन मुसलमानों से अपील करता है कि मीडिया और सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे उन अपमानसूचक कार्यक्रमों से प्रभावित न हों और न ही उदास हों। धार्मिक मार्गदर्शन के लिए विश्वसनीय उलेमा से परामर्श करें। यह सच है कि झूठ अपनी मौत मर जाता हैए इसके बावजूद मीडिया या सोशल मीडिया के किसी चैनल, मंच पर अगर ईशनिंदा या धर्म एवं पैगंबर के अपमान संबंधी सामग्री प्रसारित होती है या मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती हैए तो कुछ चुनिंदा लोग ऐसे चैनलों और मंच के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें और एफआईआर दर्ज कराएं। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित किया जाए जो इन झूठी सामग्रियों और धर्म के अपमान का जवाब देते हैं। ऐसे लोगों के लिए प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाए जो मनोवैज्ञानिक रूप से इस अराजकता को समझते हुए ठोस और दृढ़ जवाब देने में सक्षम हों।
देश की सरकारोंए जांच एजेंसियों और साइबर अपराध शाखाओं का ध्यान आकर्षित किया जाता है कि वह किसी की औपचारिक शिकायत की प्रतीक्षा किए बिना घृणा फैलाने वालों के खिलाफ स्वतः आपराधिक मामले दर्ज करें और आतंकवाद की रोकथाम की तरह कोई प्रभावी वॉच डॉग की व्यवस्था करें ताकि ऐसी सामग्रियों को तत्काल हटाया जाए। ऐसे दलों, समूहों और पेजों की पहचान की जाए जिनके द्वारा लगातार धार्मिक रूप से ऐसी भड़काऊ सामग्री प्रकाशित की जाती हैं और उन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
इस्लामी शिक्षाओं के संबंध में गलतफहमियों को दूर करना और धर्म त्याग की गतिविधियों पर रोक लगाने पर विचार
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के इस महाधिवेशन को ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान समय में हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य यह है कि देश के लोगों में इस्लामी शिक्षाओं के संबंध में जो भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, उनको दूर करने का प्रयास करें। विशेष रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लामी दिशा.निर्देशोंए आस्था और कानूनों के विरुद्ध मिथ्या प्रचार और इस्लामी आंदोलनों के चरित्र हनन का उचित जवाब देना आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस संबंध में निम्नलिखित उपायों की तत्काल आवश्यकता । सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लाम की अच्छाईयों और मुसलमानों की सही भूमिका को उजागर करना और जो गलतफहमियां फैलाई जा रही हैंए मीडिया के विभिन्न माध्यमों से उनके जवाब प्रसारित करना।
आधुनिक शिक्षा युक्त मन में पल रहे नास्तिक विचारों के सुधार के लिए उनके स्वभाव के अनुकूल सामग्री एकत्र करना और समय-समय पर प्रशिक्षण सभाएं आयोजित करना। सभी मस्जिदों और चयनित स्थानों पर व्यवस्थित धार्मिक स्कूलों की स्थापना करना, सीरत के विषय पर इस्लामी क्विज आयोजित करना और उसमें सभी धर्मों के छात्र-छात्राओं को शामिल करना। विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मुसलमानों की छवि एक मददगार और भरोसेमंद बनाकर प्रस्तुत करना ताकि फिल्मोंए टीवी सीरियलों और किताबों से जो छवि बनाई गई है, उसको सुधारा जा सके। आज का यह अधिवेशन विशेष रूप से जमीयत उलेमा के पदाधिकारियों और सामान्यतः इस्लामी मदरसोंए इस्लामी संगठनों और इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से अपील करता है कि वह अपनी उत्तरदायित्वों को निभाएं और गलतफहमियों को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करें।
पर्यावरण संरक्षण से संबंधित प्रस्ताव (मसौदा)
इस्लामी दृष्टिकोण से साफ-सफाई आधा ईमान है। साथ ही पर्यावरण असंतुलनए जलवायु परिवर्तन और असंतुलित विकास के कारण वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के जीने के अधिकार के लिए गंभीर संकट हैं। इसके मद्देनजर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का यह महाधिवेशन देश के जागरूक नागरिकों का ध्यान आकर्षण करता है कि वह स्वयं की सफाईए अपने घर और अपने घर के बाहर वाले हिस्से की सफाई को सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाएं। मस्जिदों के इमामोंए वक्ताओं और प्रभावशाली लोगों का यह नैतिक दयित्व है कि वह इस संदेश को सार्वजनिक करें कि “‘गंदगी केवल गंदगी नहीं बल्कि हजारों संक्रामक रोगों की जड़ है”। वायु प्रदूषण से बचने के लिए बड़ी संख्या में वृक्षारोपण करें। घरोंए छतोंए बॉलकनियों, कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में वृक्षारोपण की व्यवस्था करें। जल प्रकृति का अनमोल उपहार हैए जिससे मनुष्यों समेत सभी प्राणियों का जीवन जुड़ा है। इसलिए पानी की अनावश्यक बर्बादी से बचा जाए। समुद्र, नदियों, तालाबों, कुओं और सभी प्रकार के जलाशयों को गंदगी, प्रदूषकों और रसायनों से बचाया जाए। जल संचयन के लिए रिज़र्व्वेर की व्यवस्था करें। अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक का प्रयोग कम से कम करें। खेती और बागबानी में रसायनों का प्रयोग न करें और यदि मजबूरीवश करना पड़े तो कम से कम रसायनों का प्रयोग करें।
शुक्रवार को पारित किए गए अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों में मुस्लिम अवक़ाफ (वक़्फ संपत्तियों) के संरक्षण के उपायों, चुनावों में मतदाता पंजीकरण और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी उपायों पर विचार (मसौदा प्रस्ताव) शामिल हैं। इस अवसर पर मुख्य रूप से जमीयत के उपाध्यक्ष मौलाना मोहम्मद सलमान बिजनौरी, मौलाना सलमान मंसूरपुरी, जमीयत अहले हदीस हिंद के अमीर मौलाना असगर अली इमाम मेहदी सलफी, मौलाना मुफ्ती सैयद मोहम्मद अफ्फान मंसूरपुरी, मौलाना बदरुद्दीन अजमल क़ासमी, मुफ्ती शमसुद्दीन बायली, हजरत मौलाना रहमतुल्लाह मीर कश्मीरी, जमीयत उलेमा बिहार के अध्यक्ष मुफ्ती जावेद इकबाल साहब, जमीयत उलेमा कर्नाटक के अध्यक्ष मुफ्ती इफ्तिखार अहमद क़ासमी, जमीयत उलेमा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष हाजी हारून साहब, मौलाना नियाज फारूकी उपस्थित रहे।