बुलडोजर कार्रवाई मामला: जमीयत ऐसे अत्याचारों पर मूक दर्शक बन कर नहीं रह सकती: मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली: यूपी के विभिन्न जिलों में एक सप्ताह से चल रहे अवैध तोड़फोड़ अभियान के ख़िलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, इस दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए सुनवाई अगले मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी । हालांकि जमीयत उलेमा के वकीलों ने कोर्ट से स्टे की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यूपी सरकार अब अवैध रूप से बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं करेगी और अगर किसी ग़ैर क़ानूनी इमारत को गिराना ही है तो क़ानूनी कार्यवाही पूरी किए बिना कोई कार्रवाई  नहीं की जानी चाहिए।

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आज करीब आधे घंटे तक चली बहस के दौरान दोनों पक्षों के बीच गरमागरम बहस हुई दो सदस्यीय अवकाश पीठ के न्यायमूर्ति ए एस बोपना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ के समक्ष जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामा कृष्णन और सीयू सिंह पेश हुए. जिन्होंने कोर्ट को बताया कि  पिछली कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा  नोटिस जारी किए जाने के बाद भी यूपी में अवैध रूप से तोड़फोड़ की कार्रवाई की जा रही है जिसे रोका जाना चाहिए और इन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए. जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है और मुसलमानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।

वरिष्ठ वकीलों ने अदालत को बताया कि आपातकाल के दौरान और आजादी के पहले भी ऐसी बर्बरता नहीं थी, जैसी आज यूपी में हो रही है. यूपी राज्य के शीर्ष अधिकारियों ने मीडिया में सार्वजनिक रूप से कहा है कि बुलडोजर का इस्तेमाल दंगों का बदला है जो हर आरोपी से लिया जाएगा। अदालत को येह भी बताया गया कि जावेद नामी एक व्यक्ति का मकान तोडा गया जो इस के नाम था ही नहीं, उसकी पत्नी के नाम पर था, बल्कि अन्य घरों को भी अवैध रूप से निशाना बनाया गया है ।

वकीलों ने अदालत को आगे बताया कि कई जगहों पर नोटिस एक रात पहले ही लगाए थे और अगले दिन ही पुलिस के कड़े बंदोबस्त के तहत तोड़फोड़ अभियान चलाया गया, जिसके चलते पीड़ित अदालत तक नहीं जा सके.यहाँ तक कि अब भी डर के माहौल पीड़ित सीधे अदालत नहीं जा रहे हैं

यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि पीड़ितों के बजाय आज अदालत मैं जमीयत उलेमा-ए-हिंद आई है  जिनकी संपत्ति को  क्षतिग्रस्त नहीं किया गया है ।जिस पर पीठ ने कहा कि कोई अराजकता नहीं होनी चाहिए, इसको मुद्दा नहीं बनाना चाहिए कि अदालत के सामने कौन आया है, जमीयत उलेमा भी समाज का हिस्सा है ।

अदालत आगे कहा कि अक्सर ऐसा होता है कि जिस के घर पर बुलडोज़र चलाया जाता है वह हमेशा अदालत तक नहीं पहुंच नहीं पाता। न्यायमूर्ति बोपना ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से कहा कि अदालत के लिए ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना आवश्यक है और अगर अदालत हस्तक्षेप नहीं करती है तो यह उचित नहीं होगा

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के तत्काल हस्तक्षेप और तीन दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश सरकार को अदालत द्वारा हलफनामा प्रस्तुत करने के फैसले का स्वागत किया और कहा कि अदालत का यह अंतरिम आदेश स्वागत योग्य है। और हम आशा करते हैं कि अंतिम फैसला भी पीड़ितों के पक्ष में होगा,इंशा अल्लाह। 

मौलाना मदनी ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां संविधान और क़ानून है, कानून का पालन करना सभी की प्राथमिक जिम्मेदारी है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि क़ानून पर अमल करने वाली एजेंसियां खुद असंवैधानिक कदम उठा रही हैं। शांतिपूर्ण विरोध लोगों का मूल अधिकार है,और उसकी अनुमति नहीं देना सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करना , उन्हें गिरफ्तार करना, उनके घरों को तोड़ना खुली जबरदस्ती और ज़ुल्म  है। उन्होंने कहा कि यह लोगों को उनके लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की साजिश है।

मौलाना मदनी ने कहा की सॉलिसिटर जनरल  तुषार मेहता का यह बयान जमीअत उलमा ए  हिन्द को सुप्रीम कोर्ट आने का क्या हक़ है पूरी तरह से गलत है क्योंकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का मिशन हमेशा शोषितों को न्याय दिलाना और धर्म की सेवा करना रहा है और बिना किसी भेदभाव के मानवता के आधार पर इसी  मिशन के तहत जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस  मैदान में आई हैं. जिन इलाकों में तोड़फोड़ की कार्रवाई हुई है वहां के लोग डरे और सहमे हुए हैं. हमें उम्मीद है कि कोर्ट धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए कड़ा फैसला करेगी ताकि देश धर्म के आधार पर बिना किसी भेदभाव के शांति से चल सके।

 उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग जमीयत उलेमा-ए-हिंद के इतिहास से परिचित नहीं हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने देश की आजादी की लड़ाई में सबसे आगे हो कर  काम किया था और हमारे बुजुर्गों ने आज़ादी क लिए हंस हंस कर अपनी जानों  का बलिदान दिया था।  इसलिए, जमीयत उलेमा-ए-हिंद देश के संविधान को नष्ट होते नहीं देख सकती और न ही इस तरह के उत्पीड़न पर  मूक दर्शक बनी रह सकती है वकीलों ने कोर्ट को बताया कि कानून के मुताबिक कोई भी विध्वंस कार्रवाई शुरू होने से पहले 15 दिन का नोटिस देना जरूरी है.इसी तरह उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की धारा 27 के तहत 15 दिन पहले नोटिस देना जरूरी है.इसी के साथ साथ ऑथॉरटी के फैसले के खिलाफ अपील का भी हक़ है उस के बावजूद बुलडोज़र चलाया जा रहा है 

यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए वकीलों ने कहा कि कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद ही विध्वंस का काम किया गया था और सरकार द्वारा कोई आपत्ति भी दर्ज नहीं की गई है।यूपी सरकार  इस संबंध में एक हलफनामा दायर करने को तैयार है।