नई दिल्ली: हिन्दुस्तान में जिस तरह से चुनावों को हमारे राजनीतिक दलों द्वारा फंडिंग की जाती है और चुनाव लड़े जाते हैं। वे चिंता का विषय हैं। ये बातें जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने प्रेस सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए यहां कहीं। उन्होंने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनावों में कई हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हुए जो दुनिया का अब तक का सबसे महंगा चुनाव था। इलेक्टोरल बॉन्ड पर संशय व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे राजनेताओं द्वारा अपना ख़ज़ाना भरने के लिए सरल तरीका इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए फंडिंग का है। चुनावी बॉन्ड गुमनाम होते हैं।
जमात ने कहा कि वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन करके सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त चंदे का खुलासा करने से छूट दे दी है। लेकिन चूंकि ये बॉन्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंक (एसबीआइ) द्वारा बेचे जाते हैं इसलिए सरकार के लिए यह जानना आसान होता है कि विपक्ष को कौन फंडिंग कर रहा है। प्रोफेसर सलीम ने राजनीतिक दलों से अपील की कि उन्हें एक साथ आना चाहिए। उन्होंने मांग की कि पूरी प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बना कर चुनावों में धन बल के बढ़ते दबदबे को रोकन के लिए क़ानून लाना चाहिए।
जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में मासिक प्रेस सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 341 में उपयुक्त संशोधन किया जाए ताकि दलित हिन्दुओं, बौद्धों और सिखों के अलावा ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ मिले। ये बातें उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहीं। उन्होंने रंगनाथ मिश्रा आयोग के सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति का दर्जा धर्म से पूरी तरह अलग किया जाना चाहिए। सच्चर समिति की रिपोर्ट से उद्धृत करते हुए प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने बताया कि धर्मांतरण के बाद दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्प्णी का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि जमाअत अदालत के आदेश की सराहना करती जिसमें कहा गया है कि संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करने वाले बंधुत्व की परिकल्पना करता है और देश की एकता और अखंडता प्रस्तावना में निहित मार्गदर्शक सिद्धांतों में से एक है।
प्रेस सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय मीडिया सचिव सैयद तनवीर अहमद ने बहु प्रतिक्षित चार एनसीएफ (राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा) में से पहले दस्तावेज़ के प्रकाशन का स्वागत किया। हालांकि इस पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि स्कूलों के फाउंडेशन स्टेज (2022) के लिए एनसीएफ को महत्वपूर्ण समीक्षा और परामर्श प्रक्रिया की गहनता की आवश्यकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि वर्तमान दस्तावेज़ और भविष्य के एनसीएफ को अधिक समावेशी, सामाजिक रूप से न्याय संगत और साझा सहमति वाले संवैधाकि मूल्यों को पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित किया जाएगा।
सैयद तनवीर अहमद ने एनसीएफ के गठन से पहले की परामर्शी प्रक्रिया की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर भी चिंता व्यक्त की। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि जमाअत इस्लामी हिन्द ने शिक्षा मंत्रालय से संपर्क करने के साथ साथ एनसीएफ के लिए राष्ट्रीय संचालन समिति को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के साथ निकट भविष्य में इन सिफारिशों को सार्वजनिक रूप से एकजुट होकर प्रस्तुत करने की भी योजना है। सैयद तनवीर अहमद जमाअत इस्लामी हिन्द के मर्कज़ी तालीमी बोर्ड के निदेशक भी हैं।