नई दिल्ली: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, “जमाअत -ए-इस्लामी हिंद समलैंगिक विवाह के खिलाफ है। हम समझते हैं कि विवाह का सही और सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत अर्थ एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को संदर्भित करना है। इसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ हमारे सभ्यतागत मूल्यों के खिलाफ होगी और साथ ही देश के कई निजी कानूनों को भी बाधित करेगी।
जमाअत आईपीसी की धारा 377 के डिक्रिमिनलाइजेशन का भी विरोध करती है, जो वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक यौन संबंध की अनुमति देता है। समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं के जवाब में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपने हलफनामे में अभिव्यक्त किए गए समलैंगिक विवाहों के संबंध में सरकार की स्थिति से हम सहमत हैं।
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों में दृढ़ता से विश्वास करता है और स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों का प्रबल समर्थक है। तथापि, हम साथी नागरिकों को याद दिलाना चाहते हैं कि स्वतंत्रता के साथ नैतिक जिम्मेदारी आती है, और कोई भी समाज स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर अपराध, दोष और अराजकता को स्वीकार नहीं कर सकता है।
हमें लगता है कि समान-सेक्स विवाहों को अनुमति देना और बढ़ावा देना समाज में अच्छी तरह से स्थापित परिवार व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा होगा। यह पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करेगा और समाज के नैतिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाएगा। जमाअत इस देश के नागरिकों, सरकार और सभी राजनीतिक दलों से अपील करती है कि इस देश को यौन अराजकता, विकृति और विचलन में गिरने से बचाएं।”