इस दुनिया में जब-जब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर दुनिया भर में जलसे होंगे, तब विभिन्न मुल्कों में औरतों के हक-हुकूक के नारे लगाए जाएंगे, उनसे हमदर्दी जताई जाएगी, उनकी मदद के वास्ते कुछ संकल्प भी उठाए जाएंगे; ये सब जरूरी हैं, लेकिन 21वीं सदी के तीसरे दशक में खडे़ संसार के वे देश, जो किसी जंग के शिकार नहीं, क्या अपने यहां की आधी आबादी की स्थिति से संतुष्ट हैं? जलीला हैदर जैसी महिलाएं उन्हें आईना दिखा रही हैं।
इस धरती की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक क्वेटा, पाकिस्तान में 10 दिसंबर, 1988 को जलीला पैदा हुईं। वह जिस समुदाय (हाजरा) से आती हैं, उसके साथ हमेशा से ही पाकिस्तान में दोयम दर्जे के नागरिक-सा सुलूक होता रहा है। फिर तालिबान के उभार और इस समुदाय के प्रति उसके नफरती रवैये ने क्वेटा को कभी राहत की सांस नहीं लेने दी। आए दिन शिया समुदाय, खासकर हाजरा लोगों को लक्षित करके खूनी हमले होते रहे। ऐसे माहौल में जलीला का बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी तक का सफर कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। उन्हें न केवल बहुसंख्यक समुदाय के भेदभाव और उसकी हिकारत का सामना करना पड़ा, बल्कि खुद अपने तबके के रूढ़िवादियों की फब्तियां और धमकियां झेलनी पड़ीं। मगर माता-पिता अपनी बेटी के पीछे लगातार मजबूती से खड़े रहे और जलीला ने भी उन्हें कभी मायूस नहीं किया। वह पढ़ती गईं, बढ़ती गईं।
बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स की डिग्री लेने वाली जलीला ने छोटी उम्र में ही वकील बनने का सपना देखा था, लेकिन परेशानकुन बात यह थी कि उनके तबके की कई लड़कियां कानून की डिग्री लेने के बावजूद बार कौंसिल से जुड़ने का साहस नहीं जुटा सकीं। इस पेशे में पुरुषों का किस कदर दबदबा रहा है, इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज की नियुक्ति इस बरस जाकर हुई है और वह भी वकीलों की जबर्दस्त मुखालफत के बीच।
बहरहाल, 13 फरवरी, 2013 को हुए हाजरा टाउन विस्फोट ने जलीला को गहरे आहत किया। हाजरा समुदाय को निशाना बनाने के इरादे से क्वेटा के सब्जी बाजार में एक टैंकर में भारी मात्रा में विस्फोटक लगाए गए थे। उस धमाके में 84 लोग मारे गए और 160 बुरी तरह जख्मी हुए थे। जलीला अपने एक परिजन को तलाशती हुई जब इमाम-बारगाह की तरफ बढ़ीं, तो उनकी नजर एक लाश पर पड़ी। पहले तो लगा कि यह किसी पुरुष का शव है, मगर गौर से देखा, तो वह बुरी तरह सहम उठीं। वह एक महिला थी, जो अपने गर्भस्थ शिशु के साथ जल मरी थी।
बलूचों, अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली ज्यादतियां जलीला के भीतर के डर को मारती गईं और फिर एक दिन वह बलूचिस्तान बार कौंसिल की दहलीज पर थीं। इस तरह, हाजरा समुदाय की पहली महिला वकील के तौर पर उनका नाम पाकिस्तान के इतिहास में दर्ज हो गया। अब वह खास तौर से अपने समुदाय के लोगों को मुफ्त कानूनी मदद मुहैया कराने लगीं। यही नहीं, पहचान पत्र से लेकर दीगर सरकारी दस्तावेज हासिल करने के लिए भी वह अल्पसंख्यकों को प्रेरित करने लगीं।
जाहिर है, इस काम ने मजलूमों में तो उनकी पहचान स्थापित कर दी, मगर दहशतगर्द जमातों और सरकारी ओहदेदारों को उनका दुश्मन बना दिया। जलीला को जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं। इसके कारण उन्हें कई बार कोर्ट से लंबे-लंबे अंतराल के लिए दूरी बनानी पड़ी, मगर उन्होंने शिकस्त नहीं मानी और इंसाफ की लड़ाई के लिए वह अदालतों में लौटती रहीं।
अप्रैल 2018 में हाजरा समुदाय को लक्षित करके चार हमले हुए। कई लोग मारे गए। यतीम बच्चों, बेसहारा विधवाओं की पीड़ा से दुखी जलीला क्वेटा प्रेस क्लब के सामने इस मांग के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गईं कि सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा क्वेटा आकर गमजदा माओं और विधवाओं के आंसू पोछें और उन्हें इंसाफ दिलाएं। उस भूख हड़ताल ने इस्लामाबाद की नींद उड़ा दी, क्योंकि दुनिया भर का मीडिया उसे कवर करने लगा था। अंतत: पांचवें दिन बाजवा को आना पड़ा। फिर पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश ने भी बलूचों की उन हत्याओं का संज्ञान लिया और जांच एजेंसियों से फौरन रिपोर्ट तलब की।
इस वाकये के बाद कई लापता नौजवानों की माओं के सरकारी दस्तावेज दुरुस्त हुए, उन्हें मुआवजे देने पड़े और प्रशासनिक अफसरों पर भी गाज गिरी। जलीला की इस दिलेरी को देखते हुए बीबीसी ने उन्हें साल 2019 में दुनिया की 100 प्रभावशाली स्त्रियों में शुमार किया, तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 2020 में उन्हें ‘इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज’ अवॉर्ड से नवाजा। अब तो काफी सारे लोग उन्हें ‘आयरन लेडी ऑफ बलूचिस्तान’ कहते हैं।
(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह, सभार हिंदुस्तान)