वीर विनोद छाबड़ा
मशहूर बंगला लेखक शरद चंद्र चैटर्जी के उपन्यास पर आधारित दिलीप कुमार की ‘देवदास’ (1955) के बारे में नयी पीढ़ी की मालूमात बहुत कम है। ज़बरदस्त फिल्म थी। ये केएल सहगल की ‘देवदास’ से एक कदम आगे थे। निराश प्रेमी और दिलीप का देवदास दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची हो गए। बहरहाल, यहां ज़िक्र दिलीप कुमार की ‘देवदास’ की कास्टिंग का है। बड़ा मज़ेदार किस्सा है इसका। प्रोड्यूसर-डायरेक्टर बिमल रॉय शुरू से ही पक्के थे कि हीरो दिलीप कुमार के सिवाए कोई दूसरा नहीं होगा। उन्होंने स्क्रिप्ट राइटर नवेंदु घोष से यह बात पहले ही कह दी थी। पारो की भूमिका के लिए बिमल दा ने मीना कुमारी को चुना। क्योंकि उनका ख्याल था कि इस ट्रैजिक किरदार को ट्रेजडी क्वीन मीना ही कर पाएंगी और फिर सामने होंगे ट्रेजडी किंग दिलीप्। यानि सोने पे सुहागा।
लेकिन ट्रेजेडी यह हुई कि मीना के शौहर कमाल अमरोही ने मना कर दिया। दरअसल, उन दिनों मीना की फिल्मों का हिसाब-किताब कमाल ही देखा करते थे। मीना कौन सी फिल्म करेगी और कौन नहीं करेगी? यह कमाल ही तय किया करते थे। और फिर उनकी कुछ शर्तें भी थीं। इसमें एक शर्त यह भी थी कि वो पारो के किरदार को फिर से देखना चाहेंगे, ताकि वो देवदास के किरदार से उन्नीस न बैठे। बिमल दा को बाहरी दखलअंदाज़ी मंजूर नहीं हुई। और फिर वो देवदास बना रहे थे पारो नहीं। कमाल अमरोही को दिलीप कुमार से कुछ खुंदक भी थी शायद।
यह जानना भी दिलचस्प होगा कि पारो के लिए नरगिस, बीना रॉय और सुरैया ने भी बड़ी शिद्दत से दिलचस्पी ली। लेकिन बिमल दा ने साफ़ मना कर दिया, चाहो तो चंद्रमुखी का किरदार कर लो। लेकिन उन सभी को ख़तरा था कि तवायफ़ चंद्रमुखी की भूमिका से उनकी नायिका की इमेज खतरे में पड़ जाएगी। आख़िर बिमल दा को पारो मिल ही गयी। यह थी बंगाल की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री सुचित्रा सेन। दरअसल, फिल्म की पृष्ठभूमि बंगाल की थी और सुचित्रा इसमें फिट बैठ रही थीं। चंद्रमुखी के लिए तेजी से उभरती वैजयंती माला ने फ़ौरन हां कर दी। दिलीप कुमार के सामने काम करने का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा? आगे चल कर इस भूमिका के लिए वैजयंती माला को श्रेष्ठ सह-नायिका का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला।
इधर ‘देवदास’ हिट हो गयी और उधर एक दिन बिमल दा की मीना से मुलाक़ात हो गई। मीना ने उन्हें देवदास की कामयाबी की बधाई दी। बातों ही बातों में बिमल दा पूछ बैठे कि पारो की भूमिका क्यों ठुकराई? वो भी दिलीप कुमार के अपोजिट! मीना को हैरानी हुई – यह तो मेरे लिए यक़ीनन फ़ख्र की बात होती। लेकिन मुझे बड़े अफ़सोस से कहना पड़ रहा है कि मुझसे इस बारे में कमाल ने कतई डिस्कस नहीं किया।
दुःखी मीना कुछ देर खामोश रही। फिर एक गहरी ठंडी सांस लेते हुए मीना ने कहा – शायद मेरे नसीब में पारो थी नही।