इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड और खालसा एड: धर्म जाति और सरहदों को लांघकर मानवता की सेवा करने वाले संगठन

इसी सप्ताह यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान एक बार फिर से खालसा एड का नाम सुर्ख़ियों में है, जिसने वहां फंसे भारतीय स्टूडेंट्स के लिए ट्रेन में लंगर खिलाया था और उसके बाद पोलैंड, रोमानिया और हंगरी जैसे सीमावर्ती देशों में भी भारतीय नागरिकों और स्टूडेंट्स को हर तरह की मानवीय मदद उपलब्ध कराई थी जो अभी भी जारी है।

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खालसा एड संस्था का गठन ब्रिटेन के बर्कशायर से 1999 में आपदाओं में मानवीय सेवा के लिए किया गया था। रवि सिंह इसके फाउंडर सीईओ हैं। ये संगठन इराक़, मिश्र, मयंमार, यमन, सीरिया जैसी जगहों पर युद्ध पीड़ितों के लिए राहत पहुंचाने, शरणार्थी शिविरों में पुनर्वास करने, दवाईयां तथा खाने के लिए लंगर लगाने जैसे नेक काम करती रही है।

खालसा एड (Khalsa Aid)

इससे पहले इस संस्था ने ग्रीस के शरणार्थियों, नेपाल भूकंप, मलावी, लेबनान, हैती भूकंप में भी मानवीय सहायता उपलब्ध कराई थी। बांग्लादेश में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए की गईं इनकी मानवीय सेवा दुनिया ने देखी थी। दुनिया के किसी भी कोने में कोई कुदरती कहर या फिर आफ़त हो तो इस संस्था के सिपाही सबसे पहले मदद करन के लिए पहुँचते हैं।

सीरिया युद्ध के दौरान से सीमावर्ती देशों में आये शरणार्थियों के लिए खालसा एड 2014 से ही सीरिया के सीमावर्ती देशों, तुर्की, लेबनान, जोर्डन और इराक में हर तरह की मानवीय मदद करती आ रही है। इनके इसी जज़्बे को देखकर अक्टूबर 2017 में लुधियाना की जामा मस्जिद के शाही इमाम ने संगठन को रोहिंग्या रिफ्यूजी रिलीफ फंड के लिए 8,32,000 रूपये दिए थे और उनके इस इंसानियत के जज्बे के लिए शुक्रिया अदा किया था।

खालसा एड अमरीका, यूरोप सहित अफ्रीका एशिया महाद्वीप में साल भर ही सक्रीय रहता है, कहीं सूखा, कहीं भूकंप, कहीं गृह युद्ध तो कहीं युद्ध से पलायन किये गए शरणार्थियों की मदद करने तो तत्पर। शायद ही दुनिया का कोई ऐसा देश होगा जहाँ खालसा एड ने अपने शानदार नेटवर्क के ज़रिये तुरंत मानवीय सहायता नहीं पहुंचे हो। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूक्रेन में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स और नागरिकों को दी गयी मदद है। यूक्रेन में भारतीय दूतावास के अधिकारियों से ज़्यादा यूक्रेन में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स और नागरिकों की मदद खालसा एड ने की थी, हेल्पलाइन नंबर जारी किया था और सोशल मीडिया पर इन सभी से लगातार संपर्क में था।

खालसा एड की आधिकारिक वेबसाइट https://www.khalsaaid.org/ है, यहाँ इसके बारे में अधिक जान सकते हैं, फेसबुक, ट्वीटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो भी कर सकते हैं।

इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड (Islamic Relief Worldwide)

वहीं दुनिया में खालसा एड से भी 15 साल पुराना और उस जैसा ही एक और विश्वप्रसिद्ध मुस्लिम मानवीय सहायता समूह है जिसका नाम है ‘इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड‘ ‘Islamic Relief Worldwide. इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड एक अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी है जो 50 से अधिक देशों में मानवीय राहत और विकास कार्यक्रम प्रदान करती है, जाति, राजनीति, धर्म, सरहदों और ख़तरों की परवाह किए बिना जरूरत मंद समुदायों की सेवा करती है।

इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड की स्थापना 1984 में अफ्रीका में पड़े अकाल में मदद की कोशिश के तहत डॉ. हनी एल-बन्ना और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा की गई थी। इसका पहला दान 20 पाउंड था, जिसे डोर-टू-डोर संग्रह से इकठ्ठा किया गया था। इस कार्य को सराहा गया और इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड अपने मानवीय कार्यों की वजह से मजबूत जमीनी स्तर पर सामुदायिक समर्थन के साथ आगे बढ़ती रही।

आज इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड का 50 देशों में फैले राष्ट्रीय कार्यालयों, संबद्ध भागीदारों, पंजीकृत शाखाओं और क्षेत्रीय कार्यालयों का एक नेटवर्क है। 2020 में इसकी आय £149 मिलियन थी, और आज ये दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामी मानवीय मूल्यों से प्रेरित स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय सहायता एजेंसी है। इसके वतर्मान सीईओ वसीम अहमद और ट्रस्टियों के अध्यक्ष डॉ. इहाब साद हैं।

इस्लामिक रिलीफ की वैश्विक रणनीति 2017-2021 के दस्तावेज़ों के अनुसार संगठन के चार वैश्विक लक्ष्य – युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के जान माल के नुकसान को कम करना, गरीबी और भेदभाव से उभरने के लिए समुदायों को सशक्त बनाना, इस्लामिक रिलीफ के काम का समर्थन करने के लिए लोगों और धन को जुटाना, और इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड को मजबूत करना।

इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद का सदस्य है और यह आपदा राहत में अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट मूवमेंट और गैर सरकारी संगठनों के लिए आचार संहिता का एक हस्ताक्षरकर्ता है। यह बॉन्ड (BOND) (British Overseas NGOs for Development) का सदस्य भी है और यूके में, आपदा आपातकालीन समिति (DEC) के सदस्य के साथ-साथ 14 अन्य चैरिटी के साथ भी हैं।

इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड (IRW) इंटरनेशनल सिविल सोसाइटी सेंटर का सह-मालिक है, जो एक वैश्विक एक्शन प्लेटफॉर्म है, और INGO एकाउंटेबिलिटी चार्टर कंपनी का एक संबद्ध सदस्य है।संगठन का कहना है कि इसके प्रमुख भागीदारों में WFP, IDB, UNHCR, UNOCHA, EC, DFID, UNDP, OIC, Sida, बहरीन RCO, START नेटवर्क, ROTA और CAFOD शामिल हैं ।  इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड पिछले 37 वर्षों से दुनिया भर में मानवीय त्रासदियों में मदद करती रही है। युद्धरत देशों में तुरंत मानवीय सहायता प्रदान करने, आपातकालीन राहत प्रदान करने के लिए आगे रही है।

अपने 37 साल के इतिहास में इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड के प्रमुख मानवीय सहायता कार्यों में 1990 के दशक में बोस्निया और कोसोवा में युद्ध के दौरान जीवन रक्षक सहायता प्रदान करना, अफगानिस्तान और इराक में युद्धों के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करना और प्रबंधन करना शामिल है। दारफुर, सूडान में शरणार्थी शिविर। 2004 एशियाई सूनामी, 2005 में कश्मीर भूकंप और 2011 में अफ्रीका में पड़े सूखे में मानवीय सहायता प्रदान की है।

इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड की वर्तमान आपातकालीन मानवीय सहायताओं में यमन में अकाल और बीमारी के जोखिम में 25 लाख लोगों की सहायता करना, म्यांमार में हुई हिंसा और नर संहार से प्रभावित रोहिंग्याओं की सहायता करना, और युद्धग्रस्त सीरिया में 14 लाख लोगों को सहायता पहुंचाना शामिल हैं। इदलिब में जहां यह कुछ सहायता एजेंसियों में से एक है जो अभी भी सीधे काम कर रही है।

इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड की आधिकारिक वेबसाइट ये है, यहाँ इसके बारे में अधिक जान सकते हैं, फेसबुक, ट्वीटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो भी कर सकते हैं :

ईधी फाउंडेशन (Edhi Foundation)

पाकिस्तान में एक ‘भारतीय’ लोगों के घावों पर मरहम लगाता था। जब भी कहीं आतंकवादी हमला होता या कोई आपदा आती, सबसे पहले उनके एम्बुलेंस मौके पर पहुंचकर लोगों की मदद करते थे। वो थे ईधी फाउंडेशन के संस्थापक मरहूम अब्दुल सत्तार ईधी।

पाकिस्तान से गीता नमक युवती की भारत वापसी के बाद एक नाम उभर कर सामने आया था, वो थे ईधी फाउंडेशन और उसके संस्थापक अब्दुल सत्तार ईधी साहब का, गीता उसका असली नाम नहीं था, ईधी फाउंडेशन के संस्थापक अब्दुल सत्तार ईधी की पत्नी बिलक़ीस ईधी ने ही उनका नाम गीता रखा था।.

उस समय गीता का ख्याल रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब्दुल सत्तार ईदी की पत्नी बिलकिस बानो की सराहना करते हुए ईदी फाउंडेशन को एक करोड़ रूपये की सहायता राशि देने की घोषणा की थी, मोदी ने ट्वीट भी किया था, उस ट्वीट में कहा था कि इधि परिवार ने जो कुछ भी किया, वह काफी बेशकीमती है. इसलिए मुझे इस फाउंडेशन को एक करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है।

मरहूम अब्दुल स्तार ईधी, जिन्होंने गीता नामी एक भारतीय युवती की वर्षों तक परवरिश की, गीता मूकबधिर है।

मगर तब अब्दुल सत्तार ईदी ने नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए विनम्रता से1 करोड़ की वित्तीय मदद स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। मौलाना ईधी का जन्म 28 फ़रवरी 1928 को भारत के गुजरात राज्य के बनतवा शहर में पैदा हुए थे। उनके पिता कपड़े के व्यापारी थे। वह जन्म जात लीडर थे और शुरू से ही अपने दोस्तों की छोटे-छोटे काम और खेल-तमाशे करने पर हौंसला अफ़ज़ाई करते थे। जब अनकी मां उनको स्कूल जाते समय दो पैसे देतीं थी तो वह उन में से एक पैसा खर्च कर लेते थे और एक पैसा किसी अन्य जरूरत मंद को दे देते थे।

सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद उनका परिवार भारत से पाकिस्तान आया और कराची में बस गया। 1951 में आपने अपनी जमा पूंजी से एक छोटी सी दुकान ख़रीदी और उसी दुकान में आपने एक डाक्टर की मदद से छोटी सी डिस्पेंसरी खोली। धीरे धीरे करके ये छोटी सी छोटी सी डिस्पेंसरी लोगों की मदद करते करते एक एनजीओ में बदल गयी।

इस काम में जुटे उनके संगठन ‘ईधी फाउंडेशन’ की शाखाएं 13 देशों में हैं। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो वहां की सरकार एधी की सेवाओं पर बहुत हद तक निर्भर है। ईधी फाउंडेशन 13 देशों में सेवाएं दे रहा है, फाउंडेशन के पास 1,800 एम्बुलेंस हैं और देशभर में 450 केंद्र हैं। ईधी फाउंडेशन ने अब तक 40,000 नर्सों को प्रशिक्षण दिया है। 20,000 परित्यक्त बच्चों को बचाया गया, जबकि करीब 10 लाख बच्चों का जन्म ईधी के मातृत्व केंद्रों में हुआ।

ईधी फाउंडेशन की आधिकारिक वेबसाइट https://edhi.org/ है, यहाँ इसके बारे में अधिक जान सकते हैं, फेसबुक, ट्वीटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो भी कर सकते हैं :

इसके अलावा भी दुनिया भर में 15 बड़े अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी मुस्लिम संगठन Muslim NGOs हैं जिनकी लिस्ट और बजट नीचे देख सकते हैं और उनके बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं।

सीरिया युद्ध के समय तो खालसा एड और इस्लामिक रिलीफ वर्ल्डवाइड दोनों मिलकर काम कर रहे थे, इस्लामिक रिलीफ सीरिया के युद्ध प्रभावित शहरों में मानवीय मदद दे रहा था तो खालसा एड वाले सीरिया के सीमावर्ती देशों में विस्थापित सीरियाई शरणार्थियों के लिए हर तरह की मदद प्रदान कर रहे थे।

इस्लामिक रिलीफ़ हो या खालसा एड या ईधी फाउंडेशन या कोई और सहायता संगठन, ये सभी दुनिया के कोने कोने में जाकर अपने तौर पर इंसानियत की खिदमत कर रहे हैं, इनकी एक दूसरे से तुलना करना या इसे धार्मिक या राजनैतिक आधार पर देखना ठीक नहीं है, जहाँ खालसा एड नहीं पहुँच पाता वहां इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड के मददगार पहुँच जाते हैं और जहाँ इस्लामिक रिलीफ़ वर्ल्डवाइड नहीं पहुँच पाता वहां खालसा एड के मददगार पहुँच जाते हैं, जहाँ ये दोनों नहीं पहुँच पाते ईधी फाउंडेशन पहुँच जाता है, जहाँ ये तीनों नहीं पहुँच पाते वहां कोई चौथा कोई और NGO या मानवीय समूह संगठन पहुँच ही जाता है। मक़सद सभी का एक ही है इंसानियत की बेलौस खिदमत करना और इन सबकी ये खिदमात मज़हब, राजनीति, जाति, सरहदों, फ़िरक़े, रंग, नस्ल जैसी बंदिशों की मोहताज नहीं है।

इस तरह की जो भी संस्थाएं NGOs और संगठन दुनिया भर में मानवीय मदद के लिए कोशिश में लगे हैं हमें धर्म, जाति, नस्ल, देश, रंग और सरहद से ऊपर उठकर उन सबकी हौंसला अफ़ज़ाई करना चाहिए। ऐसे संगठन, NGOs और संस्थाएं ना हों तो दुनिया में हर साल लाखों लोग, युद्ध प्रभावित इलाक़ों में, प्राकृतिक आपदाओं में घायल होकर, बीमारी, भूख, ठण्ड, गर्मी रहने खाने पीने की कमी से मारे जाएँ। सरकारें हर जगह सही समय पर नहीं पहुँच सकती हैं, इसकी बड़ी मिसाल यूक्रेन है।