कृष्णकांत
उत्तर प्रदेश में बीजेपी का टकराव अभी सतह पर नहीं आया है, लेकिन इतना तय है कि टकराव जबरदस्त है। पंचायत चुनाव में मिली हार और कोरोना मैनेजमेंट में भयानक त्रासदी से बीजेपी की घबराहट बढ़ी है और इस महामारी के बीच ही चुनावी कवायदें शुरू हो गई हैं। लेकिन जिन योगी आदित्यनाथ को अप्रत्याशित तौर पर सीएम की कुर्सी सौंपी गई थी, अब वे उसपर से उतरने को तैयार नहीं हैं।
कल दिन भर इस बात की चर्चा रही कि मोदी-शाह ने योगी को जन्मदिन की बधाई नहीं दी। इससे पहले दिल्ली में यूपी को लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, बीजेपी अध्यक्ष के साथ आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की अहम बैठक हुई थी। इस बैठक में यूपी बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल तो शामिल हुए थे लेकिन सीएम योगी और यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को नहीं बुलाया गया था। खबरें हैं कि ये बात योगी को बुरी लगी।
इसके बाद दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ पहुंचे। योगी ने होसबोले को लखनऊ में दो दिन इंतजार कराया और फिर भी उनसे नहीं मिले। कार्यक्रम न होने के बावजूद होसबोले दो दिन रुके रहे लेकिन योगी सोनभद्र, मिर्ज़ापुर और गोरखपुर के दौरे पर निकल गए। होसबोले से योगी नहीं मिले और वे वापस मुंबई लौट गए।
पिछले चार साल में ये पहली बार हुआ है जब आरएसएस और बीजेपी की बैठकों में मंत्रियों को अकेले-अकेले बुलाकर फीडबैक लिया जा रहा है। लेकिन मीडिया में मुख्यमंत्री बदलने समेत बड़े बदलाव की चर्चाओं ने यहां आकर दम तोड़ दिया कि केंद्र से भेजे गए पैराशूट कंडीडेट एके शर्मा को योगी ज्यादा से ज्यादा राज्यमंत्री बनाने को तैयार हैं।
खबरें हैं कि केंद्रीय नेतृत्व योगी को रबर स्टांप जैसा रखना चाह रहा है लेकिन योगी की महत्वाकांक्षाएं अब सातवें आसमान पर हैं। संघ और बीजेपी के जिस तबके को कट्टरतम हिंदू नेता चाहिए, उनके लिए योगी भविष्य की आशा हैं। उनके समर्थक जब तब ’हमारा पीएम कैसा हो, सीएम योगी जैसा हो’ ट्रेंड कराते रहते हैं।
लाख पर्देदारी और मीडिया मैनेजमेंट के बावजूद उत्तर प्रदेश की जनता के बीच ये बात फैल गई है कि योगीराज में ठाकुरवादी जातिवाद हावी है और बाकी जातियों के लोगों को किनारे लगा दिया गया है। प्रदेश का शासन अधिकारी चला रहे हैं, मंत्रियों और विधायकों की कोई पूछ नहीं हैं। ये धारणा पार्टी के नेताओं ने ही फैलाई है कि जैसे केंद्र में मंत्रियों और सांसदों की कोई हैसियत नहीं है, वैसे ही यूपी में विधायक और मंत्रियों की कोई नहीं सुनता।
दो हफ्ते से लगातार संघ और बीजेपी के बड़े नेताओं की बैठकों का दौर चल रहा है लेकिन इन बैठकों का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। बाहर कहा जा रहा है कि पार्टी और सरकार के बीच सब ठीक है लेकिन खामोश तनातनी जबरदस्त हलचल की ओर इशारा कर रही है।
योगी को लेकर बीजेपी की हालत अब वैसी हो गई है कि न उगलते बन रहा है, न निगलते बन रहा है। बीजेपी योगी को हटा भी नहीं पा रही है और उनके नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही है।
सबसे दिलचस्प ये है जिन योगी आदित्यनाथ को हटाने के प्रयास की चर्चाएं हैं, उनके समर्थक उन्हें पीएम कैंडिडेट के रूप में देख रहे हैं। कभी कद्दावर नेता और बीजेपी के संस्थापक लालकृष्ण आडवाणी को किनारे करते हुए नरेंद्र मोदी दिल्ली के आसमान पर छा गए थे। क्या आज योगी आदित्यनाथ भी उसी रास्ते पर हैं? ये उदाहरण तो नरेंद्र मोदी ने ही पेश किया था। अगर योगी आदित्यनाथ इस पर अमल कर लेते हैं तो इतिहास बहुत कम समय मे ही खुद को दोहराएगा।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)