नई दिल्लीः शामली में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली पश्चिमी यूपी की सबसे हॉट सीट मानी जाने वाली कैराना विधानसभा से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नाहिद हसन ने भाजपा की मृगांका सिंह को पटखनी दी है। नाहिद हसन ने इस चुनाव को 26800 से जीता है। नाहिद हसन की जीत में उनकी बहन इक़रा हसन को हीरो बना दिया है। दरअस्ल नाहिद हसन को यूपी पुलिस द्वारा गुंडा एक्ट के मामले में चुनाव से ऐन पहले गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। जिसके बाद उनके चुनाव प्रचार का ज़िम्मा उनकी बहन इक़रा हसन ने संभाला।
पिता के निधन के बाद नाहिद हसन कम उम्र में ही 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सहारनपुर की गंगोह सीट से बसपा ने प्रत्याशी बनाया, लेकिन चुनाव से ऐन पहले बसपा ने नाहिद का टिकट काट दिया और शगुफ्ता खान को दे दिया। नाहिद हसन ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। वो चुनाव हार गए। कांग्रेस के प्रदीप कुमार यहां से जीते। नाहिद हसन को 33,288 वोट मिले और वो चौथे नंबर पर रहे। इस तरह नाहिद हसन अपना पहला ही चुनाव ही बुरी तरह हार गए।
2014-15 में कैराना से उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक बनने वाले नाहिद हसन की जीत की हैट्रिक लगा दी है। नाहिद के पिता चौधरी मुनव्वर हसन एक दिग्गज नेता था। वे विधानसभा, विधानपरिषद, लोकसभा और राज्यसभा यानी चारों सदनों के सदस्य रहे थे। एक सड़क दुर्घटना में निधन होने के बाद उनकी सीट से उनकी पत्नी तबस्सुम हसन ने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की, इसके बाद 20118 के लोकसभा उपचुनाव में तबस्सुम हसन ने एक बार फिर जीत दर्ज की, लेकिन वे जीत की इस लय को 2019 में बरकरार नहीं रख पाईं।
हसन परिवार का इतिहास
नाहिद और उनके परिवार का लंबा राजनीतिक इतिहास है। नाहिद के दादा से लेकर माता-पिता, चाचा-चाची और कजिन तक, सब लोकल चुनाव से लेकर सांसद और विधायक तक निर्वाचित होते रहे हैं। पूरा कुनबा सियासी है। यूपी से हरियाणा तक की राजनीति में नाते-रिश्तेदारों का दबदबा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने वाले नाहिद हसन के पिता चौधरी मुनव्वर हसन की शादी सहारनपुर की बेगम तबस्सुम से 1986 में हुई थी। नाहिद अपने घर में बड़े हैं। उनकी एक छोटी बहन चौधरी इकरा हसन हैं, जो 2021 में ही इंटरनेशनल लॉ में लंदन से पढ़ाई करके लौटीं हैं।
34 साल के नाहिद हसन ने जिस मुस्लिम गुर्जर परिवार में जन्म लिया, वहां राजनीति उनसे पहले ही दस्तक दे चुकी थी। नाहिद हसन के दादा चौधरी अख्तर हसन कैराना लोकसभा सीट से 1984 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे। वो नगरपालिका के चेयरमैन भी रहे थे। चौधरी अख्तर की विरासत को नाहिद के पिता चौधरी मुनव्वर हसन ने आगे बढ़ाया।
चारों सदन में रहे चौधरी मुनव्वर हसन
चौधरी मुनव्वर हसन ने 1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में कैराना सीट पर जीत दर्ज की। उन्होंने दोनों चुनाव में जनता दल के टिकट पर लड़ते हुए हुकुम सिंह को हराया। हुकुम सिंह तब कांग्रेस में हुआ करते थे। इस सबके बीच यूपी में हालात बदल गए और मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया। लगातार कैराना विधानसभा से दो बार विधायक निर्वाचित होने के बाद अब मुनव्वर हसन सपा में आ गए और 1995 में कैराना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता।
हालांकि, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में वो लगातार दो बार हारे। इस बीच वो 1998-2003 तक राज्यसभा सांसद रहे और फिर MLC रहे। 2004 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो मुनव्वर हसन को सीट बदलनी पड़ी। कैराना सीट से आरएलडी के टिकट पर अनुराधा चौधरी लड़ीं और जीत गईं। जबकि मुनव्वर हसन सपा के टिकट पर मुजफ्फरनगर सीट से विजयी हुए।