हाथरस में हुई वीभत्स घटना ने जनमानस को झकझोर दिया। देशभर में हाथरस की बेटी के लिए इंसाफ की मांग उठी। मुस्लिम महासभा द्वारा भी देश भर में विरोध जताया गया। मुस्लिम महासभा राष्ट्रीय प्रमुख एवं राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष फरहीन युनुश शेख़ से हमारे संवाददाता शरीफ मोहम्मद ख़िलजी ने महिला सुरक्षा के विभिन्न मुद्दों पर बात की। महोतरमा फरहीन युनुश शेख़ मुस्लिम महासभा की राष्ट्रीय प्रमुख है एवं राजस्थान की एक मुख्य समाजसेविका है जो अपने शौहर मुस्लिम महासभा के संस्थापक मरहूम युनुश शेख़ के इंतकाल के बाद मुस्लिम महासभा राष्ट्रीय अध्यक्ष ईमरान खान के नेतृत्व में सामाजिक मुद्दों पर हरदम अग्रणी रही। आप राजस्थान के उदयपुर शहर से रहनी वाली है। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश-
प्रश्न – 2012 में दिल्ली में निर्भया कैस हुआ और हाल ही में हाथरस घटना हुई। महिला सुरक्षा पर कितना बदलाव हो पाया है?
जवाब – देखिए निर्भया कैस से पहले भी और आज भी महिला सुरक्षा के मुद्दे पर कोई बदलाव नहीं आया। आजादी के बाद से कई सरकारें आई और गई लेकिन राजनैतिक प्रतिनिधित्व एवं नौकरियों में महिलाओं की पचास प्रतिशत भागीदारी पर किसी भी सरकार ने काम नहीं किया। महिला सुरक्षा राजनैतिक दलों के लिए एक चुनावी मुद्दा रहा है जो चुनावों के वक्त तेजपत्ते की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। रेप के मुकदमों के लिए अलग से फास्ट ट्रैक बनने चाहिए। कम से कम रेप के मामलों में शरियत कानून लागू होना चाहिए। जब सत्ताधारी दल के नेता रेप आरोपियों के पक्ष में रैली निकाले, सभाएं करे तो न्याय की उम्मीद तो बेमानी है।
प्रश्न – फिर महिला सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है?
जवाब – देखिए महिलाओं का शोषण सिर्फ शारीरिक ही नहीं होता बल्कि मानसिक भी होता। इसलिए समाज का अहमं रोल है।हमें सभ्य समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए। सभ्य समाज के लिए शिक्षा अतिआवश्यक है। आप देखोगे कि बहुत से लोग कथित समाजसेवी बने फिरते है लेकिन दिन की शुरुआत मॉ बहिन की गालियों से करते है। तो आप ऐसे जाहिल लोगों से जो दिन रात मॉ बहिन की गालियां बकते है उनसे समाज सुधार की क्या उम्मीद करोगे?
महिलाओं का सिर्फ़ शारीरिक बलात्कार ही नहीं बल्कि मानसिक बलात्कार भी होता है। खुद को कथित समाजसेवी कहने वाले लोगों को अपने बीबी बच्चों की फ्रिक नहीं होती लेकिन दुसरों की बहिन बेटी ने क्या पहना, कहां गई, कहां आई, किससे बात की इसकी फ्रिक होती है।
वो लोग जो महिलाओं के अपमान को अपनी शान समझते है दरअसल ऐसे लोग ही असली दरिन्दे होते है। दुसरों की बहिन बेटियों पर जो अभद्र टिका टिप्पणी करते है ऐसे लोग महिलाओं का हर रोज मानसिक बलात्कार करते है।
जब तक समाज स्वयं आगे आकर इन दरिन्दों का सामाजिक बहिष्कार नहीं करेगा तब तक महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा की स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा।इसलिए महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने में समाज का अहम रोल है। सभ्य समाज बनाने के लिए शिक्षा भी बेहद जरूरी है। कठोर कानून की अतिआवश्यकता है। महिला अत्याचार के मुकदमे फास्ट ट्रैक कोर्ट में चले एवं निश्चित समयावधि में निपटारा हो। जो लोग आरोपियों के पक्षधर बने उन्हें भी आरोपी बनाया जाए। सबसे महत्वपूर्ण है महिलाओं को राजनैतिक, सामाजिक एवं प्रशासनिक प्रतिनिधित्व जो कम से कम पचास प्रतिशत हो।
प्रश्न – आपने सभ्य समाज का बार बार जिक्र किया। सभ्य समाज से क्या तात्पर्य है?
जवाब – सभ्य समाज से मतलब है जहां इंसान इंसान बनकर रहे नाकि दरिंदा बनकर। समाज सुधार की या सभ्य समाज बनाने की बात आती है तो पहल खुद से की जाती है। जब कोई व्यक्ति किसी बुराई से ग्रसित है और दुसरों को वो बुराई छोडने का उपदेश देता है तो लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते। इसलिए शुरूआत खुद से करनी चाहिए। जो लोग खुद को समाजसेवी कहते है लेकिन दिन की शुरुआत मॉ बहिन की गालियां से करते है दरअसल ये लोग ढोंगी होती है।
जब हम अपने बच्चों को शिक्षित बना नहीं पाए और दुसरों के बच्चों को प्रतिभा सम्मान की ट्राफियॉ बांटे तो ये तो ढोंग ही हुआ। आजकल ये ही हो रहा। ढोंगी लोगों से अपना घर संभलता नहीं है और दुनिया को सुधारने चलते है। इसलिए मेरा मानना है कि हर व्यक्ति को शुरूआत अपने परिवार से करनी चाहिए। बच्चों को बेहतर शिक्षा और संस्कार दे। खुद भी महिलाओं की इज्जत करें और अपने बच्चों को भी महिलाओं की इज्जत करना सिखाएं। इंसान में संस्कार का निर्माण तभी हो पाएगा जब किसी दुसरे की बहिन को भी अपनी बहिन समझेगा।
जब कोई गंदी नस्ल का अय्याश वहशी दरिन्दा किसी बहिन बेटी की इज्जत सोशल मीडिया पर उछाल रहा होता है या शारीरिक, मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है तो ये सभ्य समाज की जिम्मेदारी बनती है कि उसे सलाखों के पीछे पहुंचाया जाए।
प्रश्न – क्या ज्यादा रूढिवादी होना इसके लिए जिम्मेदार है?
जवाब – अगर आप रूढ़िवादी को धार्मिक कट्टरता से जोड़ते है तो कतई नहीं। हर धर्म में महिलाओं को बहुत सम्मान है। इस्लाम में कहा जाता है मॉ के पैरों में जन्नत है इससे आप महिलाओं के प्रति इस्लाम में सम्मान देख सकते है। दूसरा हिंदू धर्म में भी कहा गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” तो आप देखोगे हर धर्म में महिलाओं का सम्मान सर्वोपरि है।
प्रश्न – महिला स्वावलंबन के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है?
जवाब – स्वावलंबन का अर्थ आत्मनिर्भरता से है। इसके लिए महत्वपूर्ण है शिक्षा और रोजगार। हर क्षेत्र में महिलाओं का कम से कम पचास प्रतिशत आरक्षण निर्धारित होना चाहिए। शैक्षणिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं प्रशासनिक प्रतिनिधित्व कम से कम पचास प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित हो। शत प्रतिशत बालिका शिक्षा अति आवश्यक है। जब तक शत प्रतिशत बालिका शिक्षा का आकड़ा हासिल नहीं होता आगे हम आगे नहीं बढ सकते। रोजगार की उपलब्धता भी जरूरी है। एक सुविधाजनक माहौल पैदा करने की आवश्यकता है जिसमें कोई भी महिला रोजगार और बीजनेस दोनों आसानी से कर सके।
प्रश्न – राजनैतिक प्रतिनिधित्व से आपका क्या तात्पर्य है?
जवाब – पार्टी की कार्यकारिणी, टिकट वितरण से लेकर मंत्रीमंडल में महिलाओं की पचास प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। महिलाओं का हित एक महिला ही बेहतर जानती है इसलिए महिला अधिकार एव हित तभी संभव हो सकता है जब महिलाओं की राजनैतिक हिस्सेदारी बराबर की हो।
प्रश्न – आपने राजनैतिक प्रतिनिधित्व की बात की। क्या आप राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक है?
जवाब – देखिए फिलहाल इस बारे में नहीं कह सकते। लेकिन कई बार महसूस होता है राजस्थान विधानसभा में महिलाओं के हितों पर कोई मुखर आवाज नहीं है इसलिए समय और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा कि मैं चुनाव लडूंगी या नहीं।
प्रश्न – अगर आप चुनाव लड़ते है तो किस पार्टी से लड़ने की कोशिश होगी?
जवाब – देखिए राजस्थान में अब तक दो दलों की सरकार रही है। बीजेपी और कांग्रेस। एक नागनाथ है और दूसरा सांपनाथ । दरअसल ये दोनों एक ही है। मेरी विचारधारा बहुजन विचारधारा है। मैं सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास करती हू।मैं गरीब, शोषित, पीडित की बात करना चाहती हू। महिला, विद्यार्थी, किसान, नौजवान, मजदूर की बात करना चाहती हू। इस देश के मूलनिवासियों की बात करना चाहती हू। इसलिए जो भी बहुजन हित की बात करेगा मैं उनके साथ हूँ
प्रश्न – महिलाओं के लिए कोई खाश संदेश?
जवाब – मेरी महिलाओं से अपील है कि अपनी बेटियों को जरूर पढाए। अन्याय को सहन कतई ना करें। अन्याय सहन करना भी जुर्म है इसलिए अबला नहीं सबला बने। मेरा स्पष्ट मानना है कि जिंदगी स्वयं के दम पर जी जाती है, दूसरो के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते है।