कृष्णकांत
प्रेमकांत ने देखा कि मुस्लिम पड़ोसी का घर जल रहा है तो आग में घुस गए। परिवार में 6 लोगों को बाहर निकाल लिया। बूढ़ी मां बच गई थीं। प्रेमकांत फिर से आग में घुस गए, मां को निकाल लाये लेकिन खुद झुलस गए। झुलस गए तो क्या हुआ? इस घर पर पेट्रोल बम से हमला करने वाले राक्षस तो हार गए न? वे हमेशा हारेंगे। मुस्तफाबाद के एक मोहल्ले में भीड़ हिंदू घरों में घुसने लगी तो आसपास के मुस्लिम युवक आगे खड़े हो गए। बोले मेरी गली में तभी घुस पाओगे जब हमें मार डालो। हमारे रहते हम ये नहीं होने देंगे। भीड़ लौट गई।
भीड़ हमेशा साहस से बहुत डरती है। दंगाई भीड़ बूढ़े कृशकाय गांधी से बहुत डरती थी। दंगाई आज भी बापू से बहुत डरते हैं। सुनील कह रहे हैं कि मेरे ये पड़ोसी न होते तो ये कहानी सुनाने के लिए मैं जिंदा न होता। एक मुहल्ले में मुस्लिमों पर भीड़ हमला करने आई तो दलितों ने कहा भाग जाओ यहां से। यहां कोई हिंदू मुस्लिम नहीं है। पहले मुझसे लड़ना पड़ेगा। भीड़ लौट गई। एक मोहल्ले से हिंदू परिवार भागने की फिराक में थे। मुस्लिमों को पता चला। सब इकट्ठा होकर आए और बोले, हम वैसे जाहिल नहीं हैं। हम गारंटी देते हैं। आपको कहीं नहीं जाना है। कोई कहीं नहीं गया।
बन्ने खान परिवार के साथ हिंदू मोहल्ले में फंस गए। वहां उनके ताऊ का घर है। तो के पड़ोसी हिंदुओं ने सबको घर मे करके बाहर से ताला मार दिया। पिछले दरवाजे से खाना पानी पहुचाते रहे। फिर सब शांत हुआ तो बन्ने के साथ पुलिस आई और सबको वहां से ले गई। एक युवक ने सोशल मीडिया पर अपील की कि मेरे दोस्त के घर मे उसकी मां अकेली है। उसके घर पर अटैक हुआ है. आपसे अपील है कि ऐसा न करें. तीन चार मुस्लिम युवक गए और उस बुजुर्ग मां को अपने घर ले आए।
जिस मौजपुर में बहुतों का नुकसान हुआ, उसी मौजपुर में अगल बगल हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों की दुकानें थीं। दोनों ने मिलकर मोहल्ले भर को इकट्ठा किया और अपने मोहल्ले में किसी को घुसने तक नहीं दिया। इनकी 50 दुकानें सुरक्षित हैं और मोहल्ले के सभी लोग सुरक्षित हैं। जिन सिक्खों ने विभाजन से लेकर 84 तक अथाह हिंसा झेली, उनकी तरफ देखिए। हिंदुस्तान पर भरोसा बढ़ जाएगा। कल ही सिखों ने अपने सभी गुरूद्वारों को पीड़ितों के लिए खोल दिया है। वहां सबके जान माल की सुरक्षा भी होगी, खाना खिलाएंगे, सेवा करेंगे।
मंगलवार को जिस दिन हिंसा बेकाबू थी, मुझे सुबह से करीब दर्जन भर से ज्यादा ऐसी सूचनाएं मिलीं जहां हिंदू और मुसलमानों ने एक दूसरे को बचाया या पनाह दी। मेरे एक बहुत प्यारे दोस्त उसी दिन मिलने आये थे। बेरोजगार हैं। मेरे सामने ही 3-4 कश्मीरी युवकों ने उन्हें फोन किया। उन्होंने भरोसा दिया कि चिंता नहीं है, सब मेट्रो ले लो और लोग मेरे घर आ जाओ। यह देश वारिस पठानों, कपिल मिश्राओं और ऐसे जाहिलों ने नहीं बनाया है, न इनके दम पर यह चल रहा है।
यह देश ऐसे करोड़ों हिंदुस्तानियों के दम पर चल रहा है जिनके बारे में लिखने के लिए भाषाएं कम पड़ रही हैं। इंसानों को बचाने वाली उन हथेलियों पर भरोसा रखिये जो आपके आंसुओं से भीगे चेहरे को पोंछ देती हैं। ये लोग आज मुझे मिल जाएं तो शायद मैं कुछ कह न पाऊँ, बस रो दूं, लेकिन मेरा रोम रोम इनका ऋणी महसूस कर रहा है। यही वे लोग हैं जो देश बनाते हैं। बहुरुपिया हत्यारे देश नहीं बनाते, वे झूठा नारा लगाते हैं। दंगाइयों से कह दो, यह हिंदुस्तान है और हिंदुस्तान कभी नहीं हारेगा!
(लेखक युवा पत्रकार हैं)