बिहार के पटना जिले के बेलछी में 27 मई, 1977 को आठ दलित और तीन सुनार जाति के लोगों का नरसंहार हुआ था। 13 अगस्त की सुबह इंदिरा गांधी हवाई जहाज से पटना पहुंचीं। तब वह प्रधानमंत्री नही थीं। इमरजेंसी के कारण उनकी पार्टी बुरी तरह पराजित हो गई थी। इंदिरा गांधी खुद भी हार चुकी थीं। जब वे 13 अगस्त को पटना पहुंचीं तो उनका कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ज़ोरदार स्वागत किया, इंदिरा गांधी का मकसद बेलछी पहुंचना था। लेकिन वे पहले वह बिहारशरीफ चली गईं। जहां उन्हें बताया गया कि ऐसा कोई रास्ता नहीं है, जिससे बेलछी पहुंचा जा सके, तब इंदिरा ने तय किया कि ग्रामीण जिस रास्ते से जाते हैं, उसी रास्ते से जाऊंगी। लिहाजा बिहारशरीफ से हरनौत लौटीं, हरनौत से करीब 15 किलोमीटर दूर बेलछी गांव था। शाम हो चुकी थी। बारिश भी हो रही थी। सड़क नहीं थी, नदी और रास्ते में पानी और कीचड़ भरा था। नौबत तो कार्यक्रम को रद्द करने की आ गई। लेकिन इंदिरा अपने फैसले पर डटी रहीं।
इंदिरा गांधी अपनी जीप पर बैठकर बेलछी के लिये रवाना हुईं, लेकिन कुछ दूर जाते ही जीप कुछ उनकी गाड़ी कीचड़ में फंस गई। तब इंदिरा बोलीं-हम वहां पैदल जाएंगे। लेकिन तभी उनके लिए हाथी मंगवाया गया। जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनसे पूछा, ‘आप हाथी पर चढ़ेंगी कैसे?‘ तो इंदिरा ने कहा, ‘मैं चढ़ जाउंगी, मैं पहले भी हाथी पर बैठ चुकी हूं।’ लिहाजा, इंदिरा बिना हौदे के हाथी की पीठ पर सवार हो गईं। और इस तरह वे बेलछी में पीड़ित परिवारों के बीच पहुंचीं। इसके बाद वह सुर्खियों में छा गईं। हाथी पर सवार तस्वीर देश और दुनिया में छा गई। ढाई साल बाद ही 1980 में वे सत्ता में वापसी में उनकी बेलछी यात्रा बड़ी वजह बनी।
आज प्रियंका गांधी को खुद कार ड्राइव करके हाथरस जाते देख वह घटना ताजा हो गई। हालांकि हाथरस पहुंचना के लिये रास्ता टूटा हुआ नहीं है, कीचड़ भी नहीं है, लेकिन वह जिस ‘कीचड़’ में ‘कमल खिला’ है। तमाम अवरोध उस सरकार के कारण हैं। क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? क्या इंदिरा की कार्बन कॉपी दिखने वालीं प्रियंका अपने ख़िलाफ चलने वाली हवाओं को रुख मोड़ पाएंगी? ये वो सवाल हैं जिनका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं)