क्या आप यह बात जानते हैं कि 2009 में भारत के विदेश मंत्रालय ने आपदा और युद्ध की स्थिति में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए एक फंड बनाया था? इस फंड का नाम है इंडियन कम्युनीटी वेलफेयर फंड ICWF, यह फंड भारतीयों के लिए ही है। जब आप दूतावास या पासपोर्ट कार्यालय से दस्तावेज़ बनाते हैं तो इस फंड के लिए शुल्क लिया जाता है। यानी विदेशों में रहने वाली भारत की जनता के पैसे से ही यह फंड बना है। जिसके लिए वह दो या तीन डॉलर देती है। तो उसका हक बनता है कि इस पैसे से आपदा या युद्ध की स्थित में सरकार किराए पर विमान लेकर मुफ्त में सुविधा दे, नहीं तो यह पैसा किस काम का है। इसका इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ? कोविड के समय 44 करोड़ खर्च कर वाहवाही क्यों लूटी गई थी, अब जब देरी हुई है और सरकार सोती हुई पकड़ी गई है तो छात्रों पर ही हमला किया जा रहा है।
पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में भारत सरकार ने बताया है कि ICWF के पास 474 करोड़ का फंड है। कोविड के समय से लेकर अक्तूबर 2021 तक सरकार ने इस फंड से 44 करोड़ खर्च किया है। 400 करोड़ का फंड होते हुए भी इसका इस्तेमाल समय से नहीं हुआ। इस पैसे से ज्यादा विमानों का इंतज़ाम हो सकता था और छात्रों के टिकट पर सब्सिडी दे गई होती तो वे दोहा और दुबई होते हुए भारत पहुंच जाते। इन सब जानकारियों को छिपा कर इन छात्रों पर ही हमला किया गया कि विदेश क्यों गए पढ़ने।छात्रों ने कभी नहीं कहा कि मुफ्त विमान भेजें। उन्होंने एयर इंडिया का टिकट तो कटाया ही था जिसका दाम भी काफी महंगा था। डेढ़ लाख से पौने दो लाख। आई टी सेल अपनी सरकार से पूछ कर बताए कि पहले जो उड़ाने यूक्रेन जाती थीं उनका क्या हुआ। क्या सीधी उड़ान नहीं थी, थी तो क्यों बंद हुई?
जब एयर इंडिया ने विमान भेजने का फैसला किया तब भी टिकट काफी महंगा था। छात्रों ने चालीस से पचास हज़ार का टिकट कटाया ही। तो साफ रहना चाहिए कि विमान नहीं था और टिकट बहुत महंगा था।25 जनवरी से ही छात्र ट्विटर पर गुहार लगाने लगे थे कि यूक्रेन की क्या हालत है, हमारे लिए क्या एडवाइज़री है, कमर्शियल फ्लाइट नहीं है, टिकट महंगे हैं, कुछ कीजिए। साफ है कि सरकार ने देरी की। 18 फरवरी को एयर इंडिया ने ट्विट किया कि एयर इंडिया 22, 24 26 फरवरी को तीन विमान चलाएगा। 18 फरवरी को ट्विट हो रहा है कि चार दिन बाद 22 फरवरी को विमान जाएगा? वो भी एक दिन एक विमान? फिर दो दो दिनों के अंतर पर एक विमान? ये थी भारत की गंभीरता?
सरकार ने 22, 24, 26 फरवरी के लिए एयर इंडिया के तीन विमान भेजने की घोषणा की थी। यह फ्री नहीं था। 25 फरवरी को सरकार ने कहा कि विमान सेवा मुफ्त होगा लेकिन तब तक उस सेवा का खास मतलब नहीं रह गया था। और ज़रा दिमाग़ भी लगाएं। क्या तीन विमान से 20,000 छात्र आ जाते? इन तीन विमानों से तो 900 छात्र ही आ पाते। देर से जागने के बाद भी सरकार का यह हाल था। 22 फरवरी को ही अगर कई विमान यूक्रेन और आस-पास के देशों में भेज दिए जाते और छात्रों से कहा जाता कि वे सीमाओं तक पहुंचे तो इसे कहा जाता कि सरकार ने रणनीति बनाकर इंतज़ाम किया है। अभी तो छात्र खुद अपनी जान जोखिम में डालकर, पचास पचास किलोमीटर पैदल चल कर सीमाओं की तरफ पहुंच रहे हैं। क्या यह बात झूठ है?
अब आते उस सवाल पर कि क्या यह evacuation है?क्या भारत सरकार यूक्रेन में फंसे छात्रों को निकाल रही है? Evacuation का यही मतलब होता है कि किसी आपात स्थिति में फंसे लोगों को उस जगह से निकालना। तो क्या भारत सरकार यूक्रेन में फंसे छात्रों को यूक्रेन के भीतर से निकाल रही है? जवाब है नहीं। सोमवार तक छह विमानों से कुल 1200 छात्रों को भारत लाया गया लेकिन वो evacuation नहीं है। ये वो छात्र हैं जो अपनी जान जोखिम में डाल कर यूक्रेन के सीमावर्ती देशों में पहुंचे हैं और वहां से इन्हें सीमा पार कराया गया है। यानी सारा काम छात्रों ने किया है। मगर प्रचार हो रहा है कि भारत सरकार बचा कर ला रही है।
तब फिर खारकीव, लविव, कीव में जहां युद्ध हो रहा है। जहां हज़ारों छात्र बंकर में छिपे हैं। उनको क्यों नहीं बचा कर ला सकी? वहां से भी छात्रों का समूह चार से पांच लाख रुपये जमा कर खुद से बस किराये पर ले रहा है। हज़ार से पंद्रह सौ किमी की यात्रा पर निकल चुका है। यानी छात्र ख़ुद को evacuate कर रहे हैं। हंगरी, पोलैंड से इन छात्रों को लाना evacuation नहीं है। रुस के राष्ट्रपति से बातचीत को लेकर हंगामा मच गया जैसे यही एक बड़ी बात हो गई है ग्लोबल लेवल पर लेकिन इस बातचीत का क्या नतीजा निकला? क्या रुस से कोई मदद मिल गई?
गोदी मीडिया यूक्रेन के छात्रों के उन बयानों को दिखाने से कतरा रहा है। जब तक उसका कैमरा हटता है वहां फंसे छात्र बोल ही देते हैं कि सरकार ने कुछ नहीं किया है। दूतावास ने कुछ नहीं किया है। ऐसी आवाज़ों को अब रणनीति बना कर गोदी मीडिया और अर्ध गोदी मीडिया के चैनलों पर कम किया जा रहा है। छात्रों से ज़बरन बुलवाया जा रहा है कि मोदी सरकार का धन्यवाद करें। जबकि इस मामले में सरकार सोती रही। गनीमत है कि अभी तक जान माल का नुकसान नहीं हुआ है लेकिन साफ है कि सरकार ने इतना कुछ नहीं किया जितना वह प्रचार के ज़रिए हासिल करना चाहती है। इन कोशिश से वह अपनी छवि की रक्षा की चिन्ता ज़्यादा कर रही है, बच्चों की कम।
सरकार बताए कि भारतीय दूतावास ने कब सरकार को अलर्ट किया या सरकार ने क्या पहल की? यूक्रेन पर हमला होने वाला था, वहाँ शहर शहर में हज़ारों छात्र फँसे हुए थे। उनकी जान की चिन्ता किस तरह से की गई? क्या तब पता नहीं था कि इतने छात्रों को निकालना असंभव हो जाएगा? कम से कम इन्हें सीमावर्ती इलाक़ों में ही पहुँचने के लिए कह दिया जाता? जो एडवाइज़री जारी की उसमें कुछ भी ठोस नहीं था। आप पढ़ें। अगर ठोस होता तो लिखा होता कि पूर्वी क्षेत्र में रहने वाले भारतीय ही कम से कम अपना ठिकाना बदल लें। पूर्वी क्षेत्र से ही रुस ने हमला किया है। जिस तरह से भारत सरकार ने 25-26 के बाद यूक्रेन से सटे देशों के दूतावास को अलर्ट किया है उससे साफ है कि किसी भी आपात स्थिति की कल्पना पहले से नहीं की गई थी। कोई तैयारी नहीं थी कि इन दूतावासों की क्या भूमिका होने जा रहा ही है।
अब जब बम गिरने लगे और भारतीय छात्रों ने अपनी हालत का वीडियो बनाकर भारत भेजना शुरू किया तब सरकार की सांस फूल गई। सब कुछ ऐसा किया जाने लगा जिससे सबसे पहले यही लगे कि सरकार कर रही है। विमान से आने वाले छात्रों के स्वागत में मंत्री एयरपोर्ट पहुंचने लगे। इन्हीं की फोटो चलने लगी। तब भी हाहाकार नहीं रुका। यह बात सामने आने लगी कि हज़ारों छात्र खुले आसमान के नीचे माइनस दस डिग्री सेल्सियस में रात गुज़ार रहे हैं। उनकी हालत कभी भी बिगड़ सकती है। तब सारी ताकत इस बात पर लगा दी गई है कि प्रोपेगैंडा करो कि मोदी सरकार महान है। वह छात्रों की चिन्ता में बैठक कर रही है।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)