शीतल पी. सिंह
भारत 2021 में भूख से मारे देशों की तालिका में 101 वें नंबर पर जा पहुँचा है । दुनियाँ की सबसे बड़ी भूखी और कुपोषित आबादी हमारे देश में ही है, महाराष्ट्र बिहार और गुजरात देश के उन पहले तीन राज्यों में से एक हैं जहां देश के सबसे कुपोषित बच्चे रहते हैं ।
आबादी के प्रतिशत के हिसाब से सबसे ज़्यादा कुपोषित बच्चों की संख्या गुजरात में है जहां दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति (सरदार पटेल की) बनवाई/लगाई गई है । जहां साबरमती नदी पर देश का सबसे बड़ा आरटिफिसियल घाट तैयार किया गया था और उस नदी में पिछले विधानसभा के चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन पानी में लैंड कर सकने वाले जहाज़ पर खड़े होकर प्रधानमंत्री मोदी जी ने गुजराती मतदाताओं से कहा था कि जल्द ही साबरमती नदी से फ़्लाइट टेक आफ किया करेंगी हालाँकि अगले बरस जब वे फिर विधानसभा का वोट माँगने जाएँगे तब तक ऐसी किसी संभावना का निशान अभी काग़ज़ों में ही मिलेगा!
प्रधानमंत्री बनारस में हैं, सारे टीवी चैनल यूपी चुनाव के पहले काशी विश्वनाथ कारीडोर के उनके उद्घाटन के दृश्य/रिपोर्ट्स से मतदाताओं को तिलिस्म में बांध लेने का हर मर्यादा की धज्जियाँ उड़ाता प्रचार करने में व्यस्त हैं । प्रधानमंत्री के प्रिय गुजराती आर्किटेक्ट बिमल पटेल की देखरेख में चल रहे इस कारीडोर पर क़रीब चार सौ करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं पर पड़ोस के तीन ज़िलों में बन रहे मेडिकल कालेजों में बीते छ: महीनों से बिलों के भुगतान विलंबित हैं । जौनपुर के मेडिकल कॉलेज में हास्टल की ज़मीन का प्रस्ताव बरसों से धन के अभाव में डीएम की रद्दी की टोकरी में है ।प्रदेश के हर निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में धन का नितांत अभाव है और नब्बे फ़ीसदी प्रोजेक्ट्स विलंबित चल रहे हैं ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास हर दिन गगनविहार का समय है पर राज्य के विधायक/ सांसद / मंत्री उनसे वीडियो डालकर मिल पाते हैं । चौबीस करोड़ आबादी का पूरा राज्य अफ़सरों की एक बेहद छोटी कोटरी के हवाले है जो सिर्फ़ मीडिया मैनेजमेंट और प्रचार पर अंधाधुंध खर्च के बलबूते मुख्यमंत्री के कार्यकाल की काल्पनिक सफलताओं के पोस्टर बेच रही है ।आलोचना को पुलिस के डंडों / मुक़दमों के हवाले कर दिया गया है , सैकड़ों बेक़सूर जेलों में निरुद्ध हैं और पौराणिक कथाओं / पात्रों और व्हाट्सएप पर झूठ से लोगों को बहलाने का दौर चरम पर है ।
विश्वनाथ कारीडोर के बग़ल के विश्वविख्यात काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्रसंघ निलंबित है और विश्वविद्यालय सवर्ण ग़ैर सवर्ण और सवर्णो में भी ब्राह्मण ग़ैर ब्राह्मण परिसंवाद में सड़ रहा है ।ज्ञान के केंद्र से अनवरत जातिवाद और संप्रदायवाद की धाराएँ विस्तार और आकार ले रही हैं ।
प्रधानमंत्री के उत्तर प्रदेश में हो रहे हर कार्यक्रम के लिए (दर्जन भर इधर हाल में ही हो चुके हैं ) औसतन तीन हज़ार रोडवेज़ बसें हड़पकर और गरीब देहाती लोगों की भीड़ प्रशासन के ज़रिये पकड़वा/लदवाकर साबित कराया जाता है कि वे कितने लोकप्रिय हैं इससे यूपी में ग़रीबों के लिए उपलब्ध पूरी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था चौपट हो गई है और लोगों को तीन चार गुने से ज़्यादा टैंपो/टैक्सी पर व्यय करके गंतव्य हासिल हो रहा है ।
लेकिन हमारे बीच का एक प्रिविलेज्ड परजीवी समाज तालियाँ बजा रहा है । सामंती ढाँचे में स्वत: प्रदत्त प्रिविलेज की वजह से कामकाजी मेहनतकश लोगों को सदा उपेक्षा से देखना उसकी विरासत है । औद्योगिक क्रांति न होने से सामंती ढाँचा अवशेषों में बचा रह गया, जिसका लाभ कुछ हद तक उसे है । उसी की हिफ़ाज़त में वह देश की अर्थव्यवस्था और समाज व्यवस्था के बरबाद किये जाने पर भी तालियाँ बजा रहा है और अपने चारों तरफ़ प्रचुरता से उपलब्ध विपन्न सहोदरों को देखकर खुद को विशिष्ट समझ रहा है, जबकि एकाधिकार वादी पूँजी की लपलपाती जीभ उसका भोजन करने की नित नई नीतियों के साथ मैदान में है। हर सेवा हर व्यवस्था उसकी जेब से पहले से ज़्यादा निकाल रही है और उसकी जेब में पहुँचने वाले वेतन/ पेंशन/ व्यापारिक लाभ में से कुछ न कुछ नया काट ले रही है। पर वह व्हाट्सएप पर मुल्ले टाइट करने में सफल है!
मुझसे पूछा गया था कि कारीडोर प्रकरण पर आपकी क्या राय है? मेरे हिसाब से मध्ययुगीन मायथालाजिकल स्कोर सेटल करने की जगह भुखमरी और कुपोषण से स्कोर सेटल करना पहले ज़रूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)