मालेगांव बम धमाके की अदालत कार्यवाही जिस दिशा में जा रही है उससे साफ़ है कि इस मामले को महाराष्ट्र एटीएस से छुडा कर एनआईए को सौपने का असली मकसद ही इसके अभियुक्तों की रिहाई का मार्ग खोलना था। हालांकि यह कांग्रेसी सरकारों का पाप है जिसके चलते समझोता एक्सप्रेस, हैदराबाद धमाके, मालेंगांव और अजमेर दरगाह धमाकों की एक साथ सलीके से जांच नहीं करवाई – यह किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस में बैठे संघ के स्लीपर सेल ने जांच को भटकाया, उसे अलग दिशा दी। शायद ही कोई इस बात पर चर्चा करे कि अजमेर धमाके में जिन दो लोगों को सजा हुई और बाद में उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिली वे दोनों ही राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ के पदाधिकारी हैं और आज भी झारखण्ड में संघ का काम कर रहे हैं।
29 सितंबर 2008 में नासिक के मालेगांव कस्बे में शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के ठीक सामने एक मस्जिद के पास खड़ी एल एम एल मोटर साइकिल में रखे बम के रात नौ बजकर 35 मिनट फटने पर 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 लोग जख्मी हुए थे। इस घटना में मौजूदा लोकसभा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, सुधाकर द्विवेदी, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी का नाम सामने आया था। फिलहाल ये सभी लोग जमानत पर हैं। इन सभी लोगों के खिलाफ यूएपीए और आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के तहत केस चल रहा है। जिस मोटर साईकिल में विस्फोटक रखा गया था वह प्रज्ञा ठाकुर के नाम पंजीकृत थी,
यह आज़ाद देश का सबसे सनसनीखेज ऐसा काण्ड है जिसमें आर्मी की मिलेट्री ख़ुफ़िया शाखा का बड़ा अफसर सीधे शामिल था, उसने सेना के मालखाने से जब्त आर डी एक्स चुराया और इस आतंकी घटना के लिए इस्तेमाल किया। इतने गंभीर मामले में जेल में रहने की बावजूद कर्नल पुरोहित को फिर से सेवा में ले लिया गया। सेना में कमीशंड अफसर बन्ने के बाद मराठा लाइट इंफ़ेंट्री के लिए नियुक्त किए गए कर्नल पुरोहित बाद में सेना की मिलिट्री इंटेलिजेंस फ़ील्ड यूनिट का हिस्सा बन गए थे। जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया तब वो सेना की मिलिट्री इंटेलिजेंस के लिए ही काम कर रहे थे। वैसे 5 नवंबर 2008 को गिरफ़्तार किए गए कर्नल पुरोहित को 21 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी थी, जिसके बाद नौ साल से जेल में बंद पुरोहित की रिहाई का रास्ता साफ़ हुआ था।
मामले में दायर एटीएस की पहली चार्जशीट के मुताबिक अभियुक्त कर्नल पुरोहित ने साल 2007 में ‘अभिनव भारत’ नाम का एक संगठन बनाया जिसका उद्देश्य एक “पृथक हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना था” जिसका अपना अलग संविधान और अलग भगवा ध्वज हो। एटीएस के मुताबिक़ ‘अभिनव भारत’ संगठन के लोगों ने फ़रीदाबाद, कोलकाता, भोपाल, जबलपुर, इंदौर और नासिक शहरों में बैठकों की और धमाके करने की आपराधिक साज़िशें रचीं। संगठन के नाम पर बड़े पैमाने पर धन इकट्ठा किया और उसके जरिए हथियार और बारूद की व्यवस्था की। 25 और 26 जनवरी 2008 को फरीदाबाद की मीटिंग में कर्नल ने अलग हिन्दू राष्ट्र के संविधान और केसरिया झंडे का प्रस्ताव रखा था। उस मीटिंग में मुस्लिमों से बदला लेने पर भी चर्चा हुई थी।
उसके बाद अप्रैल 2008 में भोपाल में हुई गुप्त बैठक में मालेगांव में बम धमाका कराने की चर्चा हुई। एफएसएल की रिपोर्ट में आरोपी सुधाकर द्विवेदी के लैपटॉप में रिकॉर्ड साजिश की मीटिंग की आवाज कर्नल पुरोहित, सुधाकर द्विवेदी और रमेश उपाध्याय की आवाज होने की पुष्टि हुई है।
धमाके के बाद कर्नल पुरोहित और रमेश उपाध्याय की बातचीत भी इंटरसेप्ट हुई है, जिसमें कर्नल बातचीत के लिए उपाध्याय को अलग सिम कार्ड लेने के लिए कह रहे हैं और बातचीत के दौरान सावधान रहने को कह रहे हैं, जो उनके मन मे छुपे अपराधबोध को बताता है। प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद कर्नल पुरोहित ने आरोपी समीर कुलकर्णी को एसएमएस कर बताया था कि पुणे में उसके घर पर एटीएस आई थी। कर्नल ने उसे तुरंत टेलीफोन से सभी नबंर को डिलीट कर भोपाल छोड़ने को कहा था। कर्नल पर धमाके के लिए आरडीएक्स के इंतजाम और सप्लाई का भी आरोप है।
सभी जानते हैं कि इस मामले की जांच करने वाले एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे मुंबई आतंकी हमले में कथित रूप से शहीद हो गए थे और उसक बाद केंद्र में सरकार बदली और मालेग्नाव धमाके की जांच और अदालती कार्यवाही की दिशा ही बदल गई।
एनआईए ने अपनी जांच के बाद 13 मई 2016 को दूसरी सप्लिमेंट्री चार्जशीट में मामले में मकोका लगाने का आधार नहीं होने की बात कह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित 6 लोगों के खिलाफ मुकदमा चलने लायक सबूत नहीं होने दावा किया था।जबकि कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित 10 लोगों के खिलाफ धमाके की साजिश, हत्या, हत्या की कोशिश, आर्म्स एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट और यू ए पी ए के तहत मुक़दमा चलाने लायक सबूत होने का दावा किया था। यह अलग बात है कि ट्रायल कोर्ट एनआईए की राय से सहमत नहीं दिखी, जिसके बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित ने बॉम्बे हाई कोर्ट में जमानत अर्जी दी थी।
हाई कोर्ट में भी जांच एजेंसी एनआईए ने साध्वी की अर्जी पर कोई आपत्ति नहीं दिखाई, लेकिन कर्नल पुरोहित की अर्जी का विरोध किया है। अदालत में सुनवाई के दौरान साजिश की मीटिंग की वह सीडी भी टूटी पाई गई, जिसमें साध्वी के होने का दावा किया गया था। मामले में जज के सामने दर्ज करवाए गये १६४ के तहत गवाहों के बयानों में से तकरीबन 7 प्रमुख गवाहों के बयान की मूल प्रति गुम हो गई ।
हाल ही में इस मामले का एक और गवाह पलट गया । यह इस तरह मुकरने वाला 17वां गवाह था । इतना ही नहीं उसने अदालत में महाराष्ट्र एटीएस पर गंभीर आरोप लगाए। उसने कहा कि महाराष्ट्र एटीएस ने उसका अपहरण कर लिया था और उसे तीन-चार दिनों तक अवैध हिरासत में रखा। उसने कहा कि इस मामले में उसे आरएसएस नेताओं का नाम लेने के लिए जबरन मजबूर किया गया था। यह भी सुनने में आया है कि एन आई ए बहुत से गवाहों को अब अदालती परिक्षण के लिए बुलाना ही नहीं चाहती, कोई बीस दिन पहले महाराष्ट्र के गृह मंत्री के निर्देश पर इस मामले की सुनवाई के दौरान एटीएस के वकील भी उपस्थित हुए थे क्योंकि वे जाँच का हिस्सा थे, इस पर एन आई ए के वकीलों ने इस पर विरोध दर्ज करवाया और राज्य सरकार के वकीलों को कोर्ट में उपस्थित होने से रुकवा दिया था ।
याद करें अक्तूबर 2014 में एनआईए की वकील रोहिणी सालियान इस मामले से बाहर हो गई थीं। उन्होंने एक ऐफाडेविट में कहा था- जिस अफसर ने इस अममले में सॉफ्ट बने रहने को कहा था, मैं उस एनआईए ऑफिसर का नाम का खुलासा कर रही हूं जिन्होंने एक मैसेंजर के तौर पर न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए हस्तक्षेप करने की कोशिश की है। उनका नाम सुहास वर्के है और वह एनआईए की मुंबई ब्रांच में एसपी हैं।
हालांकि जिस दिन मालेगांव में चार धमाके हुए उसी दिन गुजरात के मोडासा में भी ऐसे ही बम फटे थे। गुजरात पुलिस ने तो उसकी जांच तक नहीं की, हालांकि शुरूआती सूत्र इन सभी धमाकों के कनेक्सन की तरफ इशारा कर रहे थे।
आज स्पष्ट है कि हम बम धमाको और आतंकी घटनाओं को सांप्रदायिक नज़रिए से देखते हैं – आतंकी घटना की एक आरोपी सांसद है और एक सेना की वर्दी में – बहुत लोगों तक तो कानून पहुँच ही नहीं पाया, समाज हर दिन की आपाधापी, महंगाई, बेरोजगारी, लम्पत्गेरी से जूझ रहा है और दूसरी तरफ आतंक से लड़ने के लिए बनी एन आई ए आरोपियों के प्रति हमदर्द बनी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, विचार व्यक्तिगत हैं)