विदाई भाषण में बोले हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, “अफसोस कि‍ सामंती संस्‍कृत‍ि खत्‍म न कर सका”

चेन्नई: उच्चत्तम न्यायालय के आदेश के बाद यहां से मेघालय के रवाना होने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी ने बुधवार को अफसोस जताया कि वह सामंती संस्कृति को पूरी तरह से ध्वस्त नहीं कर सके। न्यायमूर्ति बनर्जी ने उच्च न्यायालय के सभी कर्मचारियों को यहां अपने विदाई संदेश में कहा, “मुझे खेद है कि आपको मेरे लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा। मैं आपके पूर्ण सहयोग की सराहना करता हूँ। मुझे अफसोस है कि मैं उस सामंती संस्कृति को पूरी तरह से ध्वस्त नहीं कर सका जिसमें आप सेवा अपनी सेवाएं दे रहे हैं।”

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

पीठ में अपने सहयोगियों के लिए न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा, “मैं माफी मांगता हूं। पहले में आपसे दूरी बनाए रखने में असमर्थ रहने के लिए और दूसरा व्यक्तिगत रूप से आपको अलविदा न कहने के लिए।” उन्होंने कहा “अंतत: आप में से कुछ जो मेरे किसी भी कार्य से आहत हुए हों, कृपया यह जान लें कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से आहत नहीं किया गया…मैंने उन कार्यों को करने के लिए संस्था के लिए हित में समझा।”

न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा, “मैं इस खूबसूरत और गौरवशाली राज्य में सभी का हमेशा ऋणी रहूँगा, हमें पिछले 11 महीनों से अपनों के बीच रहने का सौभाग्य मिला है और जिस कृतज्ञता और गर्मजोशी के साथ पूरे कार्यकाल के दौरान आपने साथ दिया, वह स्वागत योग्य है।”

प्रदूषण पर जिम्मेदारी से भाग रहे हैं केंद्र, राज्य और नौकरशाह : सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने जानलेवा स्तर पर पहुंचे वायु प्रदूषण कम करने में नाकाम केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ-साथ नौकरशाहों को अपनी जिम्मेदारी से भागने पर बुधवार को उनकी खिंचाई की और कहा कि वे चाहते हैं कि उन्हें यह भी आदेश दिये जायें कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के लिए पानी के छिड़काव से लेकर वाहनों को कैसे चलाया जाये। शीर्ष अदालत ने कहा कि टीवी अधिक प्रदूषण फैला रहा है। अदालत के छोट ऑब्जरवेशन को कई बार विवाद का बड़ा मुद्दा बना दिया जाता है।

मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की खंडपीठ ने प्रदूषण कम करने में केंद्र, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश सरकारों के सामूहिक प्रयास करने में तालमेल की कमी और नौकरशाहों के टालमटोल रवैये पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए ये टिप्पणियां कीं। खंडपीठ ने कहा कि फाइव एवं सेवेन स्टार सुविधाओं में बैठकर किसानों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन सरकार और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर समेत अन्य के अध्ययनों का हवाला देते हुए तथ्यों से लगता है कि समस्या पराली जलाने से ज्यादा अन्य वाहनों और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के कारण प्रदूषण का स्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

शीर्ष अदालत ने राजधानी की दिल्ली की सड़कों से 10-15 साल पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने का खास तौर पर जिक्र किया। अदालत ने सवाल किया कि उन्हें रोकने के लिए कौन प्रोत्साहित करेगा। सुनवायी के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा कि अगर पड़ोसी राज्यों ने वाहनों पर प्रतिबंध नहीं लगाया तो घर से काम करने का कोई मतलब नहीं है। सुनवायी शुरू होते ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछली सुनवायी का जिक्र करते हुए कहा कि टेलीविजन पर बहस के दौरान उन्हें ‘गैर जिम्मेदार’ बताया गया है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘टीवी पर बहस से अधिक प्रदूषण फैल रहा है। हर कोई अपने एजेंडे पर काम कर रहा है।’

खंडपीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ए एस सिंघवी और केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल श्री मेहता की दलीलों के दौरान कई सख्त टिप्पणियां कीं। श्री सिंघवी ने कहा था कि सर्दियों में वायु प्रदूषण बढ़ने का बड़ा कारण पराली जलाना है, जबकि श्री मेहता ने केंद्र के सभी कर्मचारियों के घर से काम करने पर असमर्थता जतायी थी।